गेहूँ की बालियों में दानों को बढ़ाने और मोटा करने का उपाय      Publish Date : 24/01/2025

         गेहूँ की बालियों में दानों को बढ़ाने और मोटा करने का उपाय

                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

किसानों के लिए अपनी फसल, विशेष रूप से गेहूँ की फसल की उचित देखभाल करना काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि गेहूँ की फसल के उत्पादन पर विभिन्न कारक अपना व्यापक प्रभाव डालते हैं। अतः सही समय और सही तरीके से की गई देखभाल करने पर गेहूँ की फसल की न केवल उचित वृद्वि होती है, बल्कि गेहूँ का उत्पादन भी बेहतर होता है। गेहूँ की फसल के उचित विकास के लिए फसल के विभिन्न चरणों में विभिन्न स्प्रे और उर्वरकों का प्रयोग करना होता है। स्प्रे से गेहूँ की फसल को सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होते हैं इससे बाली का आकार और उसमें दाने का भराव भी अच्छा होता है।

साथ ही यह गेहूँ की फसल को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाव करने में भी सक्षम होता है। आज की अपनी इस ब्लॉग पोस्ट में किसानों को बता रहें हैं, हमारे विशेषज्ञ कि गेहूँ की फसल में किए जाने वाली कौन सी स्प्रे से कौन से लाभ प्राप्त होते हैं।

गेहूँ की फसल में स्प्रे करने का उचित समय

                                                               

किसान भाईयों जिस समय आपकी गेहूँ की फसल लगभग 60 से 75 दिन की हो जाती है, तो इस समय गेहूँ की फसल का विकास अपनी अधिकतम अवस्था में होता है। इस समय गेहूँ की फसल में बालियां निकलने वाली होती है और इसका तना भी मजबूती प्राप्त कर रहा होता है। अतः इस चरण में गेहूँ की फसल को अतिरिक्त पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिससे कि फसल स्वस्थ हो और इसका उत्पादन भी बेहतर हो। इस अवस्था में आपकी गेहूँ की फसल को सिंचाई की भी बहुत आवश्यकता रहती है। इस दैरान यदि आप अपनी फसल में पीलापन या पत्तियों का फोल्ड होने के जैसे लक्षण देखते हैं तो यह संकेत है कि अब आपको अपनी फसल पर उचित स्प्रे करना चाहिए।

पीजीआर का करें उपयोग

किसान भाईयों पीजीआर का मतलब है प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर। पजीआर का उपयोंग गेहूँ की फसल में पौधों की हाइट के बढ़ते और तने की मोटाई के बढ़ते समय करना उचित रहता है। इसके लिए पीजीआर को 200 मिली. प्रति एकड़ की दर से 100 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करना चाहए। इसका प्रयोग करने से गेहूँ की फसल का गिरने से भी बचाव होता है। इसके साथ ही पीजीआर इंटरनोड की दूरी को कम कर देता है जिससे आपकी गेहूँ की फसल का उत्पादन भी अच्छा होता है।

गेहूँ की फसल में फॉस्फोरस और पोटाश का महत्व

                                                                

गेहूँ की फसल के लिए यह दोनेां ही तत्व अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। फॉस्फोरस का मुख्य काम गेहूँ के पौधों की जड़ एवं उसके तने का विकास करना होता है और यह तत्व बाली बनने के बाद भी फसल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वहीं पोटाश गेहूँ के पौधों में ऊर्जा का संचयन कर उसके दानों के आकार में वृद्वि करता है। अतः जब गेहूँ की फसल में बालियां निकलने वाली होती हैं तो उस समय पोटाश और फॉस्फोरस का संतुलन बहुत मायने रखता है।

इसके लिए 1 कि.ग्रा. एनपीके को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। गेहूँ की फसल में पहला स्प्रे बुवाई के 60 दिन बाद, दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 20 दिन बाद और तीसरा छिड़काव इसके 15 दिनों के बाद किया जा सकता है।

गेहूँ की फसल में माइक्रोन्यूट्रीएंट्स का महत्व

                                                        

गेहूँ की फसल में कभी-कभी सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी हो जाती है और इन तत्वों की कमी होने से फसल का विकास प्रभावित होता है। अतः कई बार गेहूँ की फसल में इन सूक्षम तत्वों का स्प्रे करना भी आवश्यक हो जाता है। सूक्ष्म तत्व बोरॉन की कमी के चलते बालियों में दानों का भराव कम होता है जिससे फसल का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। बोरॉन की कमी को दूर करने के लिए 100 ग्राम बोरॉन 100 से 120 लीटर पानी में घोलकर फसल पर स्प्रे करना चाहिए।

इसके अलावा यदि गेहूँ की फसल में पीलेपन की समस्या है तो आयरन तत्व की स्प्रे करने से आयरन की कमी दूर हो जाती है। आमतौर पर यह सभी तत्व खेत की मृदा में ही उपस्थित होते है, लेकिन कई बार फसल इन तत्वों का सही तरीके से अवशोषण नही कर पाती हैं। ऐसे में इन तत्वों का स्प्रें करना बहुत अधिक लाभकारी सिद्व होता है।

अतः किसानों को चाहिए कि वह अपनी फसल की सही तरीके से देखभाल करते रहें और आवश्यकता के अनसार फसल में उर्वरक एवं स्प्रे आदि का भी उपयोग करते रहें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।