खेती में हरी खाद का प्रयोग      Publish Date : 21/01/2025

                            खेती में हरी खाद का प्रयोग

                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

एक लम्बे समय से फसल उत्पादन में रसायनिक उर्वरकों के लगातार और असंतुलित प्रयोग करने से भूमि की उर्वरता व उत्पादकता में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है। ऐसा देखने मे आया है कि धान-गेंहूं फसल चक्र को किसान भाई निरन्तर अपनाते चले आ रहे है और उर्वरकों का प्रयोग दोनो फसलों में ही बढ़ाते जा रहें हैं। इसके चलते कृषि में लागत भी बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही भूमि की दशा भी निरंतर बिगड़ती ही जा रही है। इस स्थिति में अब किसानों को रासायनिक उर्वरकों अन्य पर्यायों का भी उपयोग करना होगा।

                                                                  

इसके बाद ही हम खेती को जीवित और इस विशाल आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हो सकेंगे। इन गतिविधियों को अपनाने से हम खेती की लगात को कम करने के साथ ही फसलों की उत्पादकता में आशातीत वृद्वि कर सकेंगे।

रासायनिक उर्वरकों के विभिन्न पर्याय जैसे गोबर की खाद और वर्मीकम्पोस्ट आदि हैं। हालांकि, इनकी उपलब्धता अनिश्चित होने के साथ ही कठिन भी है क्योंकि आजकल फसल उत्पादन के साथ सामान्यतः पशुपालन नही के बराबर ही किया जा रहा है। तो इसके बाद हमारे पास प्रभावी एवं कारगार विकल्प के रूप में हरी खाद ही बचती है, जो कि एक सबसे सरल एवं अच्छा विकल्प है।

हरी खाद के प्रकार एवं हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें

हरी खाद को प्रयोग करने के आधार पर इन फसलों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

प्रथम विधिः

देश में इस विधि का विस्तार अधिक है क्योंकि इस विधि में उसी खेत में यह हरी खाद फसल उगाई जाती है, जिस खेत में इसका उपयोग करना होता है। इस विधि के अंतर्गत खेत में हरी खाद फसल को उगाकर उसके ऊपर पाटा चलाकर मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर या रोटरी चलाकर इस फसल को मिट्टी में सड़ने हेतु छोड़ दिया जाता है। रोटरी के माध्यम से मिट्टी में मिलाई गई फसल जल्दी विघटित हो जाती है व आसानी से मिट्टी में मिल जाती है।

द्वितीय विधिः इस विधि के अंतर्गत हरी खाद की फसल को एक खेत में उगाया जाता है तथा उसकी कटाई के उपरांत किसी अन्य खेत में मिलाना होता है। सामान्य रूप से हमारे किसान इस विधि को कम ही या ऐसा कहे कि न के बराबर ही उपयोग में ला रहे है। हांलाकि, देश के दक्षिणी भागों में इस विधि का प्रचलन अधिक है।

हरी खाद हेतु उपयोग में लाई जाने वाली फसलों में मुख्य रूप से दलहनी फसलें ही उगाई और मिट्टी में मिलाई जाती है, क्योंकि दलहनी फसलों की जडांे पर गठाने पाई जाती है जिनमें विशेष प्रकार के सहजीवी जीवाणु उपलब्ध होते है जो कि वायुमण्डल से नाइट्रोजन का स्थरीकरण कर फसलों की आवश्कता की पूर्ति का काम करती है। इसके अतिरिक्त इनका प्रयोग करने से मृदा की भौतिक दशा में सुधार के साथ-साथ जीवांश पदार्थों की भी वृद्वि करती है।

हरी खाद के लिए उपयुक्त फसलें

1. ढैंचाः शीघ्रता के साथ बढ़ने वाली, शाखायुक्त, सूखे के प्रति सहनशील तथा जल भराव के प्रति भी यह सहनशील होती है। कहने का अर्थ है कि उक्त दोनों ही परिस्थितियों मकें पौधों/फसल की बढ़वार अच्छी होती है और प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक मात्रा में हरा पदार्थ प्राप्त होता है और यह आसानी से सड़ भी जाती है।

                                                      

ढैंचा की फसल को धान की फसल से पहले उगाकर खेत में मिलाना लाभकारी रहता है। जल भराव की स्थिति में पौधों की जड़ों पर उपलब्ध गाँठें (अधिक समय तक पानी के भरा होने के कारण) क्रियाशील नही रह पाती हैं तो सहजीवी बैक्टीरिया पौधों के तनों पर भी गाँठें बना लेते हैं।

2. सनईः सनई भी हरी खाद के लिए प्रयुक्त की जाने वाली एक दलहनी फसल ही होती है। परन्तु यह फसल जल भराव की स्थिति में अधिक कारगर नही रहती है, क्योंकि इसकी जड़ें जल भरव के प्रति संवेदनशील होती हैं। जल भराव के चलते सनई की जड़ों में कम गाँठे बन पाती हैं जिसके चलते हरा पदार्थ भी कम मात्रा में ही मिल पाता है।

                                                            

हरी खाद फसल की बुवाई का समय जलवायु के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग समय पर बोनी की जाती है फिर भी ऐसा माना जाता है कि धान क्षेत्रों में मानसून के आगमन के समय बोनी करें। सिंचाई के साधन उपलब्ध रहने पर धान की रोपाई के एक माह पूर्व या वर्षा शुरू होने के पूर्व उसकी बोनी करना लाभप्रद रहता है।

बीज दरः हरी खाद वाली फसलों की बुवाई हेतु

हरित खाद वाली फसलों की बुवाई करने के लिए ढेंचा का बीज 15 किग्रा. प्रति एकड पर्याप्त रहता है, परन्तु यदि दाना मोटा है तो इसके बीज की दर को 20 किग्रा. प्रति एकड़ भी रखी जा सकती है।

फसल की आवश्यकताएं

फसल के शीघ्र बढ़वार और उपज (हरा प्रदार्थ) की प्राप्त मात्रा में वृद्वि के लिए 20-25 किग्रा. स्फुर प्रति एकड अर्थात तीन बोरी सिंगल सुपर फॉस्फेट बुवाई करते समय ही डाल देनी चाहिए।

हरित खाद की फसल को मिट्ठी में मिलाने का उचित समय

हरित खाद की फसल को एक विशेष अवस्था पर खेत में पलटने पर भूमि में अधिकतम नाइट्रोजन एवं जीवांश पदार्थ की मात्रा प्राप्त होती है। इस अवस्था से पूर्व अथवा बाद में मिलाने पर हरी फसल का अपेक्षित लाभ प्राप्त नही होता है। फसल को मिट्ठी में मिलाने की अवस्था जब फसल अपपिक्व अवस्था में हो और फसल में फूल आने दप्रारम्भ हो चुके हों ढैंचा में यह अवस्था बुवाई करने के 35-40 दिनों के बाद ही आती है।

हरित खाद से प्राप्त होने वाले लाभ 

  • मृदा में जीवांश पदार्थ एवं उपलब्ध नाईट्रोजन की मात्रा में पर्याप्त वृद्वि होती है।
  • मृदा की सतह पर पोषक तत्वों का संरक्षण होता है तथा अगली फसल को पुनः पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं।
  • पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्वि होती है और मुख फसलों की उत्पादकता में अच्छी वृद्वि होती है।
  • जीवांश पदार्थ और हरी खाद को मिट्ठी में मिलाने से रेतीली एवं चिकनी मृदा की स्वास्थ्य संरचना में सुधार होता है।
  • हरित खाद में कार्बनिक अम्ल के बनने से भूमि के पी.एच. को कम कर मृदा में उपलब्ध क्षारीयता को भी कम कर देता है।   

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।