भारत के विकास में कृषि का योगदान      Publish Date : 19/01/2025

                      भारत के विकास में कृषि का योगदान

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

भारत में कृषि का अहम योगदान है, इस बात का पता इससे लगता है कि वर्ष 2016-17 में कृषि का सकल घरेलु उत्पाद में कृषि 17.32 प्रतिशत की हिस्सेदारी रही थी। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक अहम और प्रमुख आधार स्तम्भ है तथा इस स्तम्भ को और मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है। इसके लिए भारत सरकार के द्वारा विभिन्न कदम उठाये जा रहे हैं। सरकार द्वारा उठाये जा रहे विभिन्न कदमों में भाकृअनुप-कृषि तकनीकी अनुप्रयोग संस्थान, जोधपुर की भी अहम भागीदारी है। यह संस्थान राजस्थान, हरियाणा व दिल्ली के कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से किसानों तक नवीन तकनीकियों एवं जानकारियों को लगातार पहुँचा रहा है, जिससे किसान भाई कृषि को उपलब्ध संसाधनों में अधिक लाभप्रद बना सके।

किसानों तक कृषि आधारित तकनीकी जानकारियों को हिन्दी भाषा में सरल एवं सुगम माध्यम से पहुँचाने के लिए इस संस्थान के द्वारा ‘‘कृषि ज्ञान गंगा’’ अर्द्धवार्षिक हिन्दी पत्रिका के प्रथम अंक का प्रकाशन जून से जुलाई 2016 के रूप में किया। अंक के प्रकाशन से बहुत किसानों/महिलाओं ने कृषि सम्बन्धित सभी विधाओं में जानकारी प्राप्त करके महत्वपूर्ण तकनीकों को व्यावहारिक रूप से अपनायें। इसी कड़ी में संस्थान इस पत्रिका के द्वितीय अंक का प्रकाशन कर रहा है। मैं इस पत्रिका में योगदान देने वाले लेखकों को धन्यवाद देता हँू जिनके योगदान से समय पर द्वितीय एवं तृतीय अंक (जनवरी से जून एवं जुलाई से दिसम्बर, 2017) का संयुक्त प्रकाशन कर पाए। मैं संस्थान में कार्यरत हिन्दी राजभाषा समिति, सभी वैज्ञानिकों एवं कर्मचारियों को बधाई देता हँ, जिनके प्रयासों से संस्थान में हिन्दी प्रयोग को गति मिली एवं यह प्रकाशन संभव हो पाया।

(सुशील कुमार सिंह) डॉ. सुशील कुमार सिंह निदेशक सभी पाठकों को नमस्कार। भाकृअनुप-कृषि तकनीकी अनुप्रयोग संस्थान, जोधपुर तीन राज्यों जिसमें राजस्थान, हरियाणा व दिल्ली के कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से किसानों एवं महिला कृषकों तक कृषि की नवीन तकनीकियों और जानकारियों के प्रसार कर रहे है। इसी प्रयास को सफल एवं प्रभावी बनाने के लिए यह संस्थान अर्द्धवार्षिक हिन्दी पत्रिका ‘‘कृषि ज्ञान गंगा’’ का प्रकाशन कर रहा है। अर्द्धवार्षिक पत्रिका के प्रथम अंक की सफलता के बाद द्वितीय एवं तृतीय अंक (जनवरी से जून एवं जुलाई से दिसम्बर, 2017) का संयुक्त प्रकाशन कर रहे हैं। जिसमें कृषि तकनीक एवं उसका सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, फसल उत्पादन तकनीक, पशुपालन तकनीक, कृषि प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन, कृषि आय अर्जित करने की वैकल्पिक गतिविधियां, कृषि सलाहकारी एवं अभिनव योजनाएं एवं किसानों के लिए उपयोगी प्रश्नोत्तरी सम्मिलित कर रहे हैं।

आशा है, कि यह अंक किसानों के लिए लाभप्रद साबित होगा। मैं इस पत्रिका में भेजे हुए लेखों के लिए सभी लेखकों को बधाई देता हँू कि उनके प्रयासों से हम पत्रिका का प्रकाशन कर पा रहे हैं। इस पत्रिका को अधिक ज्ञानवर्धक बनाने के लिए आपके सुझाव सदैव आमंत्रित हैं।

बाजार में बेची गई सब्जियों एवं फलों की मात्रा तथा बेकार हुई तथा स्वउपयोग शुष्क क्षेत्र के रहवासियों ने सदियों पहले से अपने की मात्रा के बारे में सूचना मांगी जानी चाहिए। आवश्यकता भोजन को संपूर्ण एवं सुरूचिपूर्ण बनाने के लिये विभिन्न मूल्यांकन सर्वेक्षण में समुदाय द्वारा उपयोग में लाई गई प्रकार के मूल्य संर्वधन तकनीकियाँ विकसित कर ली थी वर्तमान तकनीकों की समझ आवश्यक है।

फलों तथा जिनका उद्देश्य फसल के तैयार होने से पहले व अकाल सब्जियों की बर्बादी को रोकने के लिए सर्वेक्षण में निर्जलित पड़ने की स्थिति से पहले भोजन को संरक्षित करना था। उत्पादों के लिए संभावित बाजारों एवं उपभोक्ताओं को भी इससे पता चलता है कि हमारे पूर्वज भी मूल्य संवर्धन के समझने का प्रयास किया जाना चाहिए। आवश्यकता महत्व को समझते थे व इसे अपनाते थे। फल व सब्जियों सर्वेक्षण में समुदाय में उपलब्ध स्थानीय संसाधनों की भी का उत्पादन मौसम के अनुसार होता है।

यदि इन्हें समय पर जानकारी जैसे स्वच्छ जल, सर्वेक्षण के जरिए कच्ची सामग्री परिरक्षित कर लिया जाये तो इनका न केवल घरेलू स्तर पर अधि-प्राप्ति/यूनिटों (संभावित किसानों का पता चलाना) उपयोग कर सकते हैं, बल्कि इनका विपणन कर अधिक जो निर्जलन के लिए फल तथा सब्जियां प्रदान करेंगे आदि आय भी प्राप्त कर सकते है।

फल व सब्जियों के मूल्य जो प्रसंस्करण केंद्र के लिए आवश्यक हैं के बारे में सूचना संवर्धित उत्पाद भी आय प्राप्त करने का अच्छा साधन है। मांगी जानी चाहिए। निर्जलित उत्पादों के विपणन के लिए जैसे जैली, स्क्वैश, लाइम ज्यूस, कार्डियल, मुरब्बा, कैण्डी, संभावित बाजारों, विशेषकर ग्रामीण बाजारों का निर्धारण सिरका, अचार, पापड़ आदि। इन्हे बनाने की तकनीकी किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, निर्जलित फलों तथा सरल होने के साथ-साथ अधिक पूंजी निवेश के बिना भी सब्जियों के विपणन के लिए संभावित क्रेताओं, सरकारी स्थापित की जा सकती है तथा अच्छी आय भी प्राप्त की जा विभागों, संस्थाओं तथा निजी संस्थाओं से सम्पर्क भी सकती है।

संरक्षण के द्वारा फलों तथा सब्जियों के गुणवत्ता स्थापित किया जाना चाहिए। परियोजना प्रस्तावों को प्रस्तुत में सुधार करने में मदद मिलती है। संरक्षण के प्रमुख कारणों करते समय निर्जलित फलों तथा सब्जियों के विपणन में एक कारण है कि अतिरिक्त उत्पाद को बाद में उपयोग लिए नीति के बारे में सूचना मांगी जानी चाहिए तथा भावी के लिए भण्डारित किया जा सकता है।

संरक्षण से भोजन विपणन सुनिश्चित होना चाहिए। उत्पादों के व्यापक की विविधता में वृद्धि होती है तथा इससे उन क्षेत्रों में खाद्य विपणन के लिए अपेक्षित एफ.पी.ओ. प्रमाणन प्राप्त होना मदें उपलब्ध होती हैं जहां उन्हें उगाया नहीं जाता है। सुनिश्चित होना चाहिए। फल तथा सब्जी परिरक्षण व प्रसंस्करण 18 संरक्षण से खाद्यों का परिवहन एवं भण्डारण आसान हो निर्भर करता है। उद्यमी परियोजना क्षेत्र में कच्चे माल की जाता है। फलों एवं सब्जियों के संरक्षण से ग्रामीण उपलब्धता एवं बाजार की मांग के आधार पर उत्पाद के महिलाओं एवं युवाओं के लिए रोजगार पैदा होता है।

फलों प्रकार के बारे में निर्णय ले सकते हैं। नए उद्यमी एक व्यक्ति तथा सब्जियों की गुणवत्ता के रख रखाव में वृद्वि के लिए के रुप में अकेले मालिकाना संगठन, पार्टनरशिप फर्म अथवा खाद्य परिरक्षण के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया जा ज्वाइंट स्टाक कंपनी के तोर पर अपना कारोबार शुरु कर रहा है। लवण तथा शर्करा, डिब्बाबंदी में वृद्वि करके सकते हैं। अकेले और मालिकाना संगठन का अपना पैन प्रशीतन, हिमीकरण, पास्च्चुरीकरण, निष्कीटन, निर्जलन, नंबर होना चाहिए तथा बैंक खाता भी होना चाहिए।

परिरक्षण कुछ तरीके हैं जिन्हें फलों तथा सब्जियों के पार्टनरशिप फर्मों को राज्य सरकार के स्टांप एक्ट के परिरक्षण के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।