डिजिटल कृषि युग में प्रोद्यौगिकियों का योगदान      Publish Date : 17/01/2025

             डिजिटल कृषि युग में प्रोद्यौगिकियों का योगदान

                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

कृषि सम्बन्धी वार्ता में महिलाओं की भागीदारी, डिजिटल प्लेटफॉर्म और मोबाइल आधारित प्रसार मोबाइल ऐप्स और डिजिटल प्लेटफार्मों ने कृषि ज्ञान के प्रसार को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है। किसान सुविधा ऐप, ई-नाम पोर्टल और किसान कॉल सेंटर जैसी सरकारी पहलें किसानों को फसल प्रबंधन, बाजार मूल्य और अन्य विभिन्न प्रकार की कृषि सेवाओं की जानकारियां मोबाइल के माध्यम से प्रदान कर रही हैं।

                                                                    

किसान कॉल सेंटर पर कृषक अपनी स्थानीय भाषा में विशेषज्ञों से परामर्श लेकर खेती संबंधी अपनी समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं। मोबाइल ऐप जैसे किसान सुविधा, मेघदूत और स्काईमेट किसानों को उनके क्षेत्र के मौसम का सटीक पूर्वानुमान प्रदान करते हैं।

यह ऐप बारिश, तापमान, आर्द्रता और हवा की गति जैसी जानकारी देकर किसानों को उनकी फसल की बुआई, सिंचाई और फसल कटाई के सही समय का निर्णय लेने में मदद करते हैं। ड्रोन तकनीक का उपयोग सरकार ने ड्रोन तकनीक को कृषि में लागू करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।

‘कृषि ड्रोन’ पहल के तहत, ड्रोन किसानों को फसल का सर्वेक्षण करने, कीटनाशकों का छिड़काव करने और फसलों की वृद्वि की निगरानी करने के आदि कामों में किसानों की मदद करते हैं और उन्नति निभाते हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा आयोजित किसान खेत प्रदर्शन (ओ.एफ.टी.), प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएं किसानों को नई तकनीकों को समझने और उन्हें अपनाने में सहायता करती हैं।

पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पी.पी.पी.) मॉडल सरकार और निजी कंपनियों के बीच साझेदारी के माध्यम से तकनीकों का प्रसार वर्तमान में एक प्रभावी तरीका बन चुका है। निजी कंपनियां किसानों को तकनीकी सहयोग, उपकरण और बाजार तक किसानों को सीधी पहुंच प्रदान करती हैं, जबकि सरकार नीतिगत सहायता और सब्सिडी उपलब्ध करवाती है। आई.टी.सी. का ई-चौपाल एक सफल पी.पी.पी. मॉडल है। इसके माध्यम से किसानों को मौसम की जानकारी, बाजार मूल्य और खेती के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में जानकारी ऑनलाइन माध्यम से उपलब्ध करवाई जाती है।

                                                                      

अब तक यह पहल 35,000 से अधिक गांवों में 4 मिलियन किसानों तक पहुंच चुकी है। इसके जरिए किसान सीधे बाजार से जुड़कर अपनी आय बढ़ा रहे हैं। ड्रोन को बढ़ावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केंद्र, राज्य कृषि विश्वविद्यालय (एस.ए.यू.) और अन्य सरकारी कृषि संस्थानों के द्वारा ड्रोन की खरीद पर 100 प्रतिशत या अधिकतम 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

किसान उत्पादक संगठनों (एपफ.पी.ओ.) को किसानों के खेतों में ड्रोन के प्रदर्शन के लिए 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है, जबकि ड्रोन किराये पर लेने वाली एजेंसियों को 6000 रुपये प्रति हैक्टर आकस्मिक व्यय और अधिकतम 40 लाख रुपये तक की सहायता प्रदान की जाती है। किसानों की सहकारी नई पहलें हाल के वर्षों में, भारत सरकार ने कृषि में नवाचार और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई नई पहलें लागू की हैं।

इन पहलों में ‘कृषि 4.0’ जैसे कार्यक्रम भी शामिल हैं, जो डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइ.ओ.टी.) के माध्यम से किसानों को बेहतर निर्णय लेने में सहायता प्रदान करते हैं। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पी.एम.-किसान) के जैसी योजना ने किसानों की वित्तीय सहायता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे उन्हें उन्नत तकनीकें अपनाने में मदद मिलती है।

हाल ही में शुरू की गई कार्बन क्रेडिट योजना भी कृषि क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण पहल है। इस योजना के तहत, किसान अपनी खेती में हरित प्रौद्योगिकियों और पर्यावरण के अनुकूल पद्वतियों को अपनाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्राप्त कर सकते हैं।

                                                               

इससे न केवल किसानों की आय में वृद्वि होती है, बल्कि वह पर्यावरण संरक्षण में भी एक सक्रिय भूमिका को निभा पाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसान जैविक खेती या अन्य  टिकाऊ खेती पद्वतियों को अपनाते हैं, तो उन्हें कार्बन क्रेडिट के रूप में लाभ मिल सकता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है। भारत में कृषि ज्ञान प्रसार तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी को किसानों के खेत तक पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केंद्र, निजी कंपनियां और एन.जी.ओ. मिलकर किसानों को नवीनतम कृषि तकनीकें, नवाचार और बाजार की जानकारी तक पहुंच प्रदान कर रहे हैं। लेकिन किसानों की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, इन प्रसार सेवाओं को अभी और अधिक सुलभ, समावेशी और प्रभावी बनाना भी उतना ही आवश्यक है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।