ज्वलंत समस्या: देशी तरीकों से नीलगाय से फसलों की सुरक्षा      Publish Date : 05/01/2025

    ज्वलंत समस्या: देशी तरीकों से नीलगाय से फसलों की सुरक्षा

                                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

                                                                 

                                                   चित्र 1: खेत मे स्वछंद विचरण करता हुआ नीलगाय का झुण्ड

कृषि एवं बागवानी फसलों पर नीलगाय का आक्रमण दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है और लगभग सभी किसान भाई इस समस्या को लेकर बहुत अधिक परेशान हैं। पहले नीलगाय यदा-कदा ही अपने प्राकृतिक वातावरण से भूलवश भटक कर ग्रामीण परिवेश में आ जाया करती थीं। परन्तु अब यह प्रायः इन क्षेत्रों दिखाई पड़ने लगी हैं। नीलगाय मूलतः रात्रिचर प्राणी हैं, और फसलों पर इनका आक्रमण संध्या या तड़के भोर मे होता था, परन्तु अब प्राकृतिक जंगलों में तेजी से कमी होने के कारण नीलगायों का दिन में भी दिखना बहुत आम बात हो गयी है।

हालत यह है कि नीलगाय के दर्शन कहीं भी एवं कभी भी हो जाते हैं। नीलगाय का आक्रमण फसल को किसी भी अवस्था में तहस-नहस करने की क्षमता रखता है। जिन क्षेत्रों मे नीलगाय का प्रकोप होता है वहाँ पर जरा सी लपरवाही होने पर सारी मेहनत पर पानी फिर जाता हैं, परन्तु घ्यान देने योग्य बात यह है कि नीलगाय का आतंक नित नये-नये कृषि क्षेत्रों में दिनप्रति बढता ही जा रहा है। चित्र 1 में नीलगाय खेत में स्वछंद विचरण करती हुई दीख रही हैं।

                                                           

आज के हमारे इस लेख में कृषि एवं बागवानी को नीलगाय आक्रमण से बचाव के विशेष उपाय पर चर्चा की गयी है।

नीलगाय के प्राकृतिक आवास की सुरक्षाः

नीलगाय प्राकृतिक तौर पर प्रायः चारागाह या कृषि आयोग्य भूमि एवं विरले वनों में पायी जाती थी, परन्तु विकास के अन्धानुकरण से चारागाह, वन एवं आयोग्य भूमि दिन-दूने एवं रात चौगुने रफ्तार से विलुप्त होते जा रहे हैं, जिससे विवश हो कर नीलगाय अब गावों एवं शहरों की और पलायन करने को विवश होने लगी हैं। यदि हम थोड़ा सा सचेत हो जायेँ और उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा करके उनके प्राकृतिक आवास उसी तरह उन्हें प्रदान कर दें, तो उनका गाँवो एवं मानव बस्ती की आेर पलायन रुक जायेगा, और हमारी फसलें नीलगाय के प्रकोप से बच जायेगी।

साथ ही इस प्रजाति को संरक्षण भी मिल जायेगा। यह एक सशक्त तरीका है, जिसमें बहुत सारा समय, पैसा एवं संयम की जरुरत होगी। अतः इस विधि का प्रयोग अत्याधिक आवश्यक है। इसमें साथ ही साथ अन्य साधनों का प्रयोग उद्देश्य की पूर्ति मे गति प्रदान करता है।

कृषि प्रक्षेत्र की चारदीवारीः

नीलगाय एक बहुत ही मजबूत फुर्तीली एवं तेज दौड़ने वाला चौपाया प्राणी है। अतः नीलगाय से अपनी फसल को बचाने के लिए सबसे अच्छा तरीका अपने कृषि प्रक्षेत्र की चारदीवारी करना है। दीवारों की ऊँचाई कम से कम 7-8 फीट अवश्य ही रखेँ, क्योंकि यह जानवर 5-6 फीट की ऊँचाई बड़े ही आराम से लाँघ जाता है। यह तरीका थोड़ा खर्चीला अवश्य हैं, इसलिए सभी किसान भाई इसे अपनाने में भी हिचकिचाते हैं। परन्तु इस सबमें घ्यान देने योग्य बात यह है कि इसमें सिर्फ एक बार ही निवेश करना पड़ता है, और फसलों को नीलगाय एवं अन्य आवारा जानवरों से दीर्घकालीन सुरक्षा मिल जाती है तथा यह उत्पादकता बढ़ाने मे कारगर होती है।

यदि बिजली की व्यवस्था हो तो 220 वोल्ट का धारा प्रवाह करने से भी नीलगाय और अन्य आवारा पशु एवं अन्य जगंली जानवरों को भी बिजली का झटका लगता है। जिसके परिणामस्वरुप नीलगाय एवं अन्य जंगली पशु दुबारा उस प्रक्षेत्र पर नहीं आते हैं।

फसलों की पहरेदारीः

फसल प्रक्षेत्र की चारदीवारी कराने में किसान भाई यदि किसी कारणवश असमर्थ हों तो वे जंगली जानवरों से अपनी फसलों की सुरक्षा स्वयं ही करें। घ्यान देने योग्य बात यह है कि नीलगाय का आक्रमण झुण्डों में एवं तडके सुबह या शाम को ही होता है। इसलिए फसल सुरक्षा की दृष्टि से तड़के सुबह तीन बजे से सूरज निकलने तक एवं शाम में सूरज डूबने के बाद एवं चाँदनी फैलने तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

नीलगाय की प्रकृति की विवेचना करने से यह ज्ञात होता है कि कृष्ण पक्ष में जब रातें ज्यादा काली होती हैं, तब इनका कहर अपेक्षाकृत कुछ अधिक ही हो जाता है, इसलिए इस समय खेतों की विशेष निगरानी करने की आवश्यकता होती है।

प्रशिक्षित कुत्तों को रखवाली में लगानाः

जिन स्थानों पर नीलगाय का आतंक प्रायः होता ही रहता है, वहाँ पर मानव द्वारा पहरेदारी में जरा सी चूक पूरे फसलावधि में की गयी मेहनत पर पानी फेर सकती है। अतः इस समस्या से बचने हेतु सबसे उत्तम तरीका प्रशिक्षण प्राप्त कुत्तों को रखवाली में लगाना है। ये कुत्ते प्रशिक्षण के बाद रखवाली के लिए प्रयोग किए जाते हैं एवं नीलगाय व आवारा पशु तथा अन्य जगंली जानवरों की जरा ही आहट पाते ही भौंकने लगते हैं, जिससे जंगली जानवरों का झुण्ड कुत्तों के शोर को सुन कर स्वयं ही भाग जाता है या किसान उन्हें खदेड कर प्रक्षेत्र से दूर कर देते हैं।

नीलगायों का जैविक रोकथामः

नीलगाय के आतंक से निजात पाने के लिए जैविक तरीका भी अपनाया जा सकता है। इस विधि में सारे नरों को पकड़ कर उनका बांधियाकरण रसायन के प्रयोग से प्राकृतिक या शल्य बिधि द्वारा किया जा सकता है। अगर जरुरत पड़े तो मादाओं को भी बाझ बना कर उनकी जनसंख्या को एक निश्चित सीमा में रखा जा सकता हैं। एेसा करने से कृषि को नीलगाय के आतंक से ही नहीं बचाया जा सकता है, बल्कि नीलगाय को भी पूर्णतया विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। अत्याधिक आखेट के कारण बांग्लादेश से इस चौपाये का तो पूर्णत: सफाया ही हो चुका है।

नीलगायों को उनके मूल परिवेश में भेजनाः

नीलगायों के आतंक से फसलों को बचाने का एक सुगम उपाय यह भी है कि सभी जानवरों को पकड़ कर दूर कहीं प्राकृतिक आवास में जैसे कि किसी जगंल या प्राकृतिक चारागाह मे छोड़ आयें, ऐसा करने से नीलगायों को अपना नैसर्गिक आवास एवं आहार दोनों मिल जाते हैं एवं फसलों को भी नुकसान नहीं पहुँचता है। इससे फसल एवं नीलगाय दोनों को संरक्षण मिलता है।

नीलगायों का वध

                                                       

नीलगायों का आतंक यदि सारी हदें पार कर जाये, तो उनको उनकी उचित सँख्या को बरकरार रखते हुऐ, (एक नर पर 8 से 10 मादा प्रति पाँच वर्ग किलो मीटर की दर से) शेष सभी नील गायों का वध करना भी ठीक हो सकता है। परन्तु इस प्रक्रिया को अपनाने से पहले संबन्धित आधिकारी से आवश्यक प्रमाण पत्र अवश्य ही प्राप्त कर लेना चाहिए, क्योंकि नीलगाय को भी गाय जैसा ही संरक्षण भारत देश में प्राप्त है।

नीलगायों को मानव निर्मित चारागाह मे छोडनाः

नीलगायों को पकड़ कर उनके निवास स्थान यथा जगंल एवं चारागाह आदि में छोड़ना यदि सभंव ना हो तो मानव निर्मित चारागाहो एवं बाडा आदि में डाल देना चाहिए जो कि पहले से ही घेऱाबन्दी करके रखा गया हो ताकि नीलगाय उस घेरे या चारागाह से वापस दुबारा कृषि क्षेत्रों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण न कर सकें और इसके फलस्वरुप फसलों का नुकसान भी न कर सके।

पटाखे एवं आग जलानाः

अनुभव में यह भी आया है कि नीलगायों का आक्रमण प्रक्षेत्र खेतों में कृष्ण पक्ष के दिनों मे अधिक होता है, जबकि शुक्ल पक्ष के समय थोड़ी राहत रहती है। अतः जैसे ही नीलगायों केा झुण्ड या इक्का-दुक्का ही नजर आये तो, तुरन्त ही मशाल जलाकर उन्हें डरायेँ, विशेषकर शाम या रात के समय सूरज छिपने के बाद एवं दिन निकलने से पहले ऐसा करने से, ये जानवर भयभीत हो जाते हैं, और डर कर उस क्षेत्र मे घूमना बन्द कर देते हैं। जैसे ही यह चौपाया दुबारा दिखाई पड़े विशेषकर झुण्डो में तब पटाखे जलाने पर यह जानवर डर कर भाग जाते हैं, और दुबारा उस क्षेत्र में काफी दिनों तक दिखाई नहीं पड़ते हैं।

समाजिक जागरुकता क्षेत्र मे नीलगाय समिति

नीलगाय का प्रकोप सीमित क्षेत्र में नहीं होता है, बल्कि इसके आक्रमण से हजारों हेक्टेयर की फसल को क्षति पहॅुचती है। कई बार तो इनके आक्रमण से एक साथ कई गाँव चपेट मे आ जाते हैं। अतः नीलगाय के विषय में जानकारी रखना, सबको जागरुक बनाना एवं नीलगाय समिति का गठन एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। क्योंकि कहावत भी है कि जानकारी से ही बचाव सम्भव है एवं बचाव में ही निदान निहीत है।

देशी तकनीक को भी आजमायेँ एवं सुरक्षा पायें

मानव का पुतला बनाकर खेतों मे खड़ा करना

खेतों मे किसान भाई उचित अन्तराल पर बाँस की फट्टियों या लकडियों के सहारे से पुआल या घासफूस की सहायता से मानव पुतला बनाकर उसे पुराना कपड़ा पहना दें एवं मिट्टी का खराब घड़ा टांग दें, ताकि देखने में बिल्कुल मानव जैसा ही लगे, जिसे देखकर नीलगाय को मनुष्य की मौजूदगी का आभास होगा एवं खेत से भाग खड़ी होगी। ज्ञात हो कि नीलगाय की देखने एवं सुनने की क्षमता तो ठीक होती है, परन्तु उनके सूंघने की क्षमता उतनी अच्छी नहीं होती है और इस विधि में नीलगाय के इसी कमजोरी का फायदा उठाया जाता हैं। नीलगाय मनुष्यों को देखकर ही दूर भाग जाते हैं और यही कारण है कि यह  पहले दिन में एवं ग्रामीण क्षेत्रों में कम ही नजर आते थे।

गेंदा के पौधे मेड़ पर रोपनाः

गेंदा के पौधे भी रात मे खाल या कपड़े लपेटे मानव आकृति की तरह ही दिखाई पड़ते हैं और उसके फूल मानव का भ्रम पैदा करते हैं। जिसके कारण नीलगाय उस खेत में भ्रमण नही करती हैं। अतः मेड़ पर उचित अन्तराल पे गेंदा का रोपड़ दलहन एव तिलहन की रबी फसलों में विशेष उपयोगी देखा गया है। गेंदा के फूल में कोई विशेष सुगन्ध नहीं होती है और न ही इस जानवर में तीव्र ध्राण क्षमता ही होती है। इन दोनो विशेषताओं के कारण ही यह विधि कारगर होती है। इस गेंदा के पौधे 4-5 फीट लम्बे अवश्य हों, साथ ही साथ स्वस्थ भी हों ऐसा होने पर पैाधे मानव जैसा ही लगते हैं।

नीलगाय के गोबर के घोल का फसलों पर छिड़कावः

अनुभव में आया है कि जिन पौधों पर नीलगाय का गोबर लगा होता है, उनपर वो दुबारा विचरण नही करती हैं। इसी  तथ्य को ध्यान में रख कर एक परीक्षण किया गया, उनके ही गोबर को घोल कर फसलों पर छिड़काव किया गया जिसका प्रभाव 10-15 दिनों तक देखा गया। अतः 10-15 दिनों के अन्तराल पर नीलगाय के गोबर के घोल का छिड़काव करें तो फसलो को नुकसान से बचाया जा सकता है। उपरोक्त उपायों को अपनाकर किसान भाई नीलगाय की इस व्यापक समस्या से अपनी फसलों को प्रभावी बचाव कर सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।