डिजिटल कृषि मिशन Publish Date : 02/01/2025
डिजिटल कृषि मिशन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2,817 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ डिजिटल कृषि मिशन को स्वीकृति प्रदान की है।
डिजिटल कृषि मिशन (डीएएम) के सम्बन्ध में तथ्य
यह डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) की संरचना पर आधारित एक व्यापक योजना है जिसका उद्देश्य किसानों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना है।
यह कृषि में डीपीआई लागू करने की केंद्रीय बजट 2024-25 और 2023-24 की घोषणा के अनुरूप है।
मिशन की मुख्य विशेषताएं
यह मिशन दो आधारभूत स्तंभों पर आधारित है:
एग्री स्टैक (किसानों की पहचान): किसानों के लिए सेवाओं और योजनाओं के वितरण को सुव्यवस्थित करने के लिए एक किसान-केंद्रित डीपीआई, जिसके 3 प्रमुख घटक हैं:
किसानों की रजिस्ट्री: राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा निर्मित और संधारित ‘‘किसान आईडी’’ जारी करना, जो आधार के समान किसानों के लिए एक विश्वसनीय डिजिटल पहचान के रूप में कार्य करेगा।
भू-संदर्भित गांव के नक्शे: किसान आईडी को किसान से संबंधित डेटा से जोड़ना। जैसे भूमि रिकॉर्ड, जनसांख्यिकीय और पारिवारिक विवरण आदि।
फसल बोई गई रजिस्ट्री: मोबाइल आधारित जमीनी सर्वेक्षण अर्थात डिजिटल फसल सर्वेक्षण के माध्यम से किसानों द्वारा प्रत्येक मौसम में बोई गई फसलों का रिकॉर्ड बनाए रखना।
कृषि निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस): फसलों, मिट्टी, मौसम और जल संसाधनों पर रिमोट सेंसिंग डेटा को एक व्यापक भू-स्थानिक प्रणाली में एकीकृत करना।
मृदा प्रोफ़ाइल मानचित्रण: लगभग 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि के लिए 1:10,000 के पैमाने पर विस्तृत मृदा प्रोफ़ाइल मानचित्रण।
डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (डीजीसीईएस) वैज्ञानिक रूप से तैयार फसल-कटिंग प्रयोगों के आधार पर उपज का अनुमान प्रदान करेगा।
प्रमुख लक्ष्य:
तीन वर्षों में 11 करोड़ किसानों के लिए डिजिटल पहचान बनाएं (वित्त वर्ष 2024-25 में 6 करोड़, वित्त वर्ष 2025-26 में 3 करोड़ और वित्त वर्ष 2026-27 में 2 करोड़)।
डिजिटल फसल सर्वेक्षण 2 वर्षों में देश भर में शुरू किया जाएगा, जिसमें वित्त वर्ष 2024-25 में 400 जिले और वित्त वर्ष 2025-26 में देश के सभी जिले शामिल किए जाएंगे।
डिजिटल कृषि के बारे में
इसे किसानों द्वारा कृषि गतिविधि प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक और डेटा-संचालित बनाकर बेहतर बनाने के लिए आधुनिक तकनीक के उपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
यह ‘‘सटीक कृषि’’ और ‘‘स्मार्ट खेती’’ के तौर-तरीकों का सुसंगत अनुप्रयोग, खेत की आंतरिक और बाह्य नेटवर्किंग और बिग डेटा विश्लेषण के साथ वेब-आधारित डेटा प्लेटफार्मों का उपयोग करना है।
कृषि क्षेत्र के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदाहरण
भारत में टिड्डियों से लड़ने के लिए ड्रोन का उपयोग (2019): फसल के नुकसान को कम करने के लिए टिड्डियों पर छिड़काव के लिए उपयोग किया जाता है।
‘‘एर्गास’’ का अनाज बैंक मॉडल: छोटे और सीमांत किसानों को फसलोत्तर आपूर्ति श्रृंखला समाधानों तक किसानों के दरवाजे तक पहुंच प्रदान करना।
युक्तिक्स ग्रीनसेंस: निगरानी और डीपीआई (रोग, कीट और सिंचाई) प्रबंधन के लिए प्रभावी उपकरण के लिए एक ऑफ-ग्रिड रिमोट मॉनिटरिंग और एनालिटिक्स समाधान प्रदान करना।
डिजिटल कृषि मिशन का महत्व
किसानों को सूचित निर्णय लेने में सहायता करें।
उदाहरण के लिए, डीजीसीईएस-आधारित डेटा फसल विविधीकरण और सिंचाई आवश्यकताओं के मूल्यांकन में मदद करेगा, जिससे कृषि को टिकाऊ बनाने में सहायता मिलेगी।
फसल क्षेत्र और उपज पर सटीक आंकड़े कृषि उत्पादन में दक्षता और पारदर्शिता आदि को बढ़ाएंगे तथा फसल बीमा, ऋण वितरण आदि जैसी सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में भी सुधार होगा।
नुकसान को रोकना एवं कम करना तथा किसानों की आय में वृद्धि करना।
उदाहरणार्थ, बेहतर आपदा प्रतिक्रिया और बीमा दावों के लिए फसल मानचित्र निर्माण और निगरानी करना।
मिशन से लगभग 2.5 लाख प्रशिक्षित स्थानीय युवाओं और कृषि सखियों को अवसर प्रदान करके कृषि में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
किसानों के लिए बेहतर सेवा वितरण, जिसमें शामिल हैं -
डेटा एनालिटिक्स, एआई और रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीक के उपयोग से सरकारी योजनाओं, फसल ऋण और वास्तविक समय की सलाह तक आसान पहुंच।
सेवाओं और लाभों तक पहुंच के लिए डिजिटल प्रमाणीकरण, कागजी कार्रवाई और भौतिक यात्राओं की आवश्यकता को एक हद तक कम करना।
फसल नियोजन, स्वास्थ्य, कीट प्रबंधन और सिंचाई के लिए अनुकूलित मूल्य श्रृंखलाएं और अनुरूप सलाहकार सेवाएं उपलब्ध कराना।
प्रभावी कार्यान्वयन के समक्ष चुनौतियाँ
कृषि भूमि का विखंडनः भारत में औसत भूमि स्वामित्व केवल 1.08 हेक्टेयर है, जिससे वर्तमान प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग कठिन हो गया है, क्योंकि यह बड़े खेतों के लिए अनुकूलित है।
उच्च प्रारंभिक लागतः डिजिटल कृषि के लिए महत्वपूर्ण कंप्यूटिंग, भंडारण और प्रसंस्करण शक्ति की आवश्यकता होती है, जो उच्च लागत के कारण इसे कम मापनीय बनाती है।
पर्याप्त अनुसंधान का अभावः भारतीय कृषि पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव और लाभप्रदता पर स्पष्टता का अभाव है।
अपर्याप्त बुनियादी ढांचाः ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढांचे का विकास कम है जो कृषि के डिजिटलीकरण में बाधा बन सकता है। उदाहरण के लिए, इंटरनेट की कम पहुंच।
डिजिटल साक्षरता का अभावः यह डिजिटल तकनीकों को अपनाने में बाधा डालता है क्योंकि किसानों का नई प्रणालियों पर भरोसा कम होता है। यह आधुनिक उपकरणों से संबंधित प्रभावी रखरखाव और शिकायत निवारण में भी बाधा डालता है।
भाषा संबंधी बाधाएं: प्रौद्योगिकी इंटरफेस के लिए विभिन्न स्थानीय भाषाओं की अनुपलब्धता पहुंच में बाधाएं पैदा करती है।
डिजिटल कृषि को बढ़ावा देने की पहल
भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (आईडीईए) ढांचाः नवीन कृषि-केंद्रित समाधान बनाने के लिए किसानों का एक एकीकृत डेटाबेस बनाना।
कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (एनईजीपी-ए): इसका उद्देश्य किसानों को खेती से संबंधित प्रासंगिक जानकारी निःशुल्क उपलब्ध कराना है।
बाजार आधारित हस्तक्षेपः जैसे ई-नाम, एगमार्कनेट आदि।
भूमि मानचित्रण के लिए ड्रोनः स्वामित्व योजना में उपयोग, सेंसर आधारित स्मार्ट कृषि (सेंसाग्री) कार्यक्रम आदि।
एआई पर आधारित राष्ट्रीय रणनीति ने कृषि को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक माना (नीति आयोग)।
किसानों की सहायता के लिए अनुप्रयोगः पीएम-किसान मोबाइल ऐप, किसान सुविधा ऐप, बागवानी विकास के लिए हॉर्टनेट परियोजना आदि।
निष्कर्ष
डिजिटल कृषि के लाभों को प्राप्त करने के लिए, सामर्थ्य, पहुंच और संचालन में आसानी, प्रणालियों का आसान रखरखाव, समय पर शिकायत निवारण, मजबूत अनुसंधान और विकास तथा उचित नीति समर्थन जैसे कारकों पर ध्यान देना सर्वोपरि है। डिजिटल कृषि मिशन इस लक्ष्य को प्राप्त करने और किसानों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में एक सही कदम है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।