कचरे के पहाड़ों से खेती कमाई की तकनीक      Publish Date : 30/12/2024

                 कचरे के पहाड़ों से खेती कमाई की तकनीक

                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है, इस सम्बन्ध में यदि हम भारत की बात करें, तो वर्ष 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, और जिसमें से केवल एक तिहाई से भी कम कचरे का सही तरीके से निष्पादन हो पाता है। इस प्रकार से बाकी बचे कचरे का खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं।

                                                              

हमारे देश में कचरे की लैंडफिलिंग कचरा निष्पादन का एक प्रमुख तरीका है, जो हर तरीके से ही अवैज्ञानिक है। देश में हजारों लैंडफिल के स्थान हैं, जहां हजारों टन ठोस कचरा जमा किया जाता है, जिस में दिल्ली का गाजीपुर, ओखला, भलस्वा, मुंबई की मुलुंड, देवनार, नागपुर की भांडेवाड़ी, अहमदाबाद की पिराना और बैंगलुरु की मंदूर लैंडफिल साइट्स ऐसी डंपिंग साइट्स हैं, जहां अब कचरे के बड़े बड़े पहाड़ बन चुके हैं और इनका निस्तारण करना एक समस्या बन चुका है। यह गन्दगी फैलाने और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक सिद्व तो हो ही रहे हैं, इसके साथ ही यह वातावरण को भी दूषित कर रहे हैं।

एक अनुमान के अनूसार, आज देश भर में मौजूद कचरे के पहाड़ों के नीचे लगभग 15,000 एकड़ जमीन दबी हुई है, जिसके ऊपर 16 करोड़ टन के आसपास कचरा जमा है। देश में बढ़ते कचरे के पहाड़ पानी, हवा एवं मिट्टी को दूषित कर पर्यावरण एवं सेहत के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं। कचरे के इन पहाड़ों को खत्म करने के लिए सरकार ने ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत 10 साल में सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार मात्र 15 फीसदी ही कचरे के पहाड़ों को साफ एवं 35 फीसदी कचरे को ही अभी तक निष्पादित किया जा सका है।

                                                             

अगर इस गति और इतने खर्च से कचरे के पहाड़ों के निष्पादन का काम होगा, तो शायद यह कचरे के पहाड़ कभी भी समाप्त नहीं हो पाएंगे। अगर कचरे के पहाड़ खत्म हो भी जाते हैं, तो उन को खत्म करने में जो खर्चा आएगा, वह शायद कचरे के पहाड़ों से होने वाले नुकसान की भरपाई करने से भी कहीं अधिक होगा, इसलिए मौजूदा कचरे के पहाड़ों को साफ करने की व्यवस्था के साथ साथ कचरे के पहाड़ों पर खेती करने के लिए एक कार्य योजना बनाई जानी चाहिए, क्योंकि देश में मौजूद अधिकतर कचरे के पहाड़ों में 50 फीसदी से अधिक जैव कचरा होता है, इसलिए इन कचरे के पहाड़ों पर खेती करना संभव हो सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।