कृषि उद्यमिता की ओर एक स्वर्णिम पहल Publish Date : 22/12/2024
कृषि उद्यमिता की ओर एक स्वर्णिम पहल
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
उद्यमिता का सम्बन्ध ऐसी आर्थिक क्रिया से होता है, जिसके अन्तर्गत नई खोज और नवाचार (इनोवशन) के द्वार किसी नए उत्पाद का उत्पादन कर जीविकोपार्जन के लिए व्यवसायिक लाभ प्राप्त किया जाता है।
वर्तमान के बदलते परिवेश में शिक्षा के बुनियादी उन्मुखीकरण, कृषि उद्यमिता (एग्री-इन्टरप्रेन्योरशिप) एवं कुशल पारिस्थितिकी तन्त्र के साथ ग्रामीण क्षेत्रों को सुदृढ़ करने की बहुत आवश्यकता है। वर्ष 1952 में कृषि उद्यमिता के लिए ‘धार कमेटी’ की अनुशंसा पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़कपुर के अन्तर्गत ‘कृषि एवं खाद्य इेजीनियरिंग’ में बी-टेक की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ।
विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के प्रारम्भिक पाठ्यक्रम में खाद्य को सम्बद्व करने से खाद्य इेजीनियरिंग एवं खाद्य-प्रसंस्करण की ओर लागों के रूझान में आशातीत वृद्वि होने से कृषि और कृषि उद्यमिता की लोकप्रियता में अपेक्षाकृत कमी आती चली गई। इस काल में भारतीय कृषि को कम्प्यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी के जैसे विषयों का दर्जा भी प्राप्त नही हो पाया था।
इस समय भारत विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी तथा सर्वाधिक कृषि उत्पादन करने वाला देश है। सभी देशों की अर्थव्यवस्था और सकल राष्ट्रीय आय की स्थिति के आंकलन का मुख्य आधार उस देश का कृषि उत्पादन ही होता है। विभिन्न खाड़ी देशों में कृषि उत्पादन नगण्य होने से निर्यात की अनंत सम्भावनाएँ हैं। भारत में 15 से 19 वर्ष के युवाओं का सकल राष्ट्रीय आय में लगभग 34 प्रतिशत योगदान है।
कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जिसमें पूँजीगत एवं मशीनरी की लागत अन्य उद्योगों की अपेक्षा नगण्य ही होती है। इस प्रकार युवाओं को आधुनिक ज्ञान, कौशल के साथ ही नई सम्भावनाओं के माध्यम से शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना वर्तमान समय की माँग हैं, जिससे वह नौकरी प्राप्त करने के चक्कर लगाने के स्थान पर अन्य लोगों को नौकरी देने वाला बन सकें।
कृषि में सम्भावनाओं के दृष्टिकोण की बात करें, तो भारत आज भी अपने कृषि एवं मानव संसाधनों की कुल क्षमता का मात्र 10 प्रतिशत भाग ही उपयोग कर पाता हैं, क्योंकि कृषि उत्पादों के लिए कृषि बाजार, भण्ड़ारण और युवा वर्ग के लिए रोजगार की कोई उपयुक्त व्यवस्था नही है। कृषि गतिविधियों में उनकी रचनात्मक भागीदारी को सुनिश्चित् कर कौशल-विकास एवं उद्यमिता में उनकी क्षमताओं को प्रोत्साहित करना ही वर्तमान समय की माँग है।
भारतीय प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के चलते भारतीय युवाओं को कृषि एवं उससे सम्बद्व अन्य क्षेत्रों में नइ्र सम्भावनाओं जैसे स्टार्टअप्स’ आदि के माध्यम से कृषि उद्यमिता की जानकारी एवं विकास, अनुदान, ऋृण, प्रशिक्षण तथा कम लागत में उद्योगों को स्थापित करने के लिउए युवाओं को प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है। ‘स्टार्टअप’ एक इस प्रकार की कम्पनी होती है जो किसी भी व्यसाय के आरम्भिक चरण में एक अथवा एक से अधिक उद्यमियों के द्वारा स्थापित की जाती है।
आमतौर पर स्टार्टअप उच्च लागत एवं सीमित राजस्व के साथ आरम्भ की जाती है, परन्तु इसको जमीन पर उतारने से पूर्व बाहरी निवेश, निधि अथवा अनुदान जिसमें परिवार, दोस्त, उद्यम पूँजीपति, क्राउडफंडिंग तथा ऋण आदि शामिल सभी से धन जुटाने का प्रयास किया जाता है। अधिकतर इनके पास पूरी तरह से विकसित व्यवसायिक मॉडल का अभाव होता है जिससे जोखिम एवं विफलता की समावानाएँ सदैव बनी रहती हैं परन्तु लाभ, नवाचार (इनोवेशन) को सीखने के लिए यह एक उचित आधार प्रदान करते हैं।
कृषि एवं उद्यमिता से सम्बन्धित योजनाएँ
कृषि राज्य सूची का विषय है, जिससे इसमें केन्द्र की भूमिका सीमित हो जाती है। अतः राज्य तर पर कृषि में उद्यमिता, कृषि स्टार्टअप तथा नई तकनीकों के माध्यम से किसानों के लिए नए विकल्प की जानकारी, कच्चे माल की उपलब्धता, खाद्य-सुरक्षा, कृषि क्षेत्र के माध्यम से र्प्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों तथा जलवायु से प्रेरित आपदाओं से होने वाली हानियों से उन्हे अवगत कराते रहना भी आवश्यक है।
इसके अतिरिक्त ‘क्लाईमेट स्मार्ट विलेज’ की अवधारणा के साथ राज्य-स्तरीय एजेन्सियों से प्राप्त आँकड़ों का लेखा-जोखा, लाभार्थियों की पहिचान, नीति-निर्माण एवं उनके निर्धारण आदि से अवगत भी करते रहना चाहिए। जिन फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का कवच प्राप्त नही है, ऐसी फसलों को किसान अधिकतर प्रत्येक दूसरे-तीसरे वर्ष सड़क पर फेंकने के लिए विवश हो जाते हैं, क्योंकि बाजार से प्राप्त हो रही उनकी कीमतों से उनका भाड़ा तक भी नही निकल पाता है।
माना जाता है कि निलम्बित हुए तीनों कृषि कानून, किसानों एवं कृषि को बन्धनमुक्त कर कृषि के क्षेत्र में व्यवसायिकता और आधुनिकता की राह को प्रशस्त करने वाले थे, क्योंकि यह प्रश्न अभी तक भी अनुतरित है कि कृषि उत्पादों का मूल्य तन्त्र किस प्रकार से किसानों अथवा पशुपालकों के नियंत्रण में लाया जा सकेगा। ‘उपज हमारी, कारोबार तुम्हारा’ के चलते आत्मनिर्भरता का स्वप्न भी अधूरा ही है, और ग्रामीण क्षेत्र अथवा गाँव विकास के जनपदीय अभिलेखों में निर्जीव सा होकर एकमात्र संख्यात्मक डाटा संयोजन तक ही सीमित रह गये हैं।
यदि ग्राम सभा स्वयं सहकारी उत्पादक विक्रय समिति/संघ बनाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अपना योगदान प्रदान करें तो आने वाले समय में नई आशाएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो देश-प्रदेश के नेतृत्व के द्वारा लिए गए सकारात्मक निर्णयों पर निर्भर होगी।
केन्द्र सरकार के द्वारा 25-30 अप्रैल, 2022 तक किसानों को सीधे लाभ पहुँचानें के उद्देश्य से आजादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के अन्तर्गत ‘किसान भागीदारी, प्राथमिकता हमारी’ अभियान के चलते कुछ कृषि योजनाओं की गतिविधियों और उपलब्धियों रेखाँकित किया-
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना
- किसान क्रेडिट कार्ड
- कृषि ऋण
- ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम)
- किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ)
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड
- जैविक एवं प्राकृतिक खेती
- पौध संरक्षण और पौध संगरोध
- मधुमक्खी-पालन
- फार्म-मशीनीकरण
- राष्ट्रीय खाद्य-सुरक्षा मिशन
- बीज एवं रोपण सामग्री
- बागवानी के समेकित विकास मिशन
- विस्ता सुधार (एटीएमए)
- आरकेवीवाई-रफ्तार-कृषि स्टार्टअप आदि
इस कार्यक्रम के तहत पिछले 75 वर्ष की उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए हरित क्रॉन्ति के माध्यम से खाद्यान्न उत्पादन, बागवानी फसलों, फसल सिंचाई सुधार, पीली-क्रॉन्ति (ऑपरेशन गोल्डन फ्लो), मीठी-क्रॉन्ति (शहद उत्पादन), कृषि में जैव प्रौद्योगिकी तथा अनुसंधान, बीज एवं उर्सरक के सम्बन्ध में आत्मनिर्भरता, कृषि में आईसीटी/रिमोट सेसिंग जीआईएस/ड्रोन का उउपयोग, कीटों का प्रभावी प्रबन्धन तथा मृदा का स्वास्थ्य जैसे जैसे विषयों पर और अधिक कार्य करने पर बल दिया गया है।
29 मई, 2017 में एक राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, जिसके अन्तर्गत कृषि क्षेत्र के विकास के लिए अतिरिक्त सहायता प्रदान करने का प्रावधान है, को आरम्भ किया गया है। 11वीं पंचवर्षीय योजना से कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत वृद्वि दर को प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ आरम्भ की गयी है, दस योजना के अन्तर्गत वर्ष 2007-08 से वर्ष 2014-15 तक 100 प्रतिशत धनराशि केन्दीय सहायता के रूप में प्रदान की जाती है, और इसे 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) तक बढ़ाया गया था।
वर्ष 2015-16 में केन्द्र एवं राज्य की हिस्सेदारी को क्रमशः 60:40 प्रतिशत तय कर 25,000 करोड़ रूपये के प्राथमिक बजट के साथ राष्ट्रीय विकास योजना-रफ्तार (आरकेवीवाई-रफ्तार) के नये दिशा-निर्देशों को आगामी तीन वर्षों (2017-18 से 2019-20) के लिए जारी किया गया, जिससे कृषि क्षेत्र में वार्षिक वृिद्व-दर, कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्रों के सर्वाजनिक विकास तथा किसानों को अधिकतम लाभ प्रदान करने के लक्ष्य को सुनिश्चित् करना था।
इस योजना के सफल कार्यान्वयन का उत्तदायित्व राष्ट्रीय कृषि विभाग को दी गई है, जिसकी सूचना विभाग की अधिकारिक वेबसाइट www.rkvy.nic,in पर देखी जा सकती है। वर्ष 2022 के प्रथम दिवस पर प्रधानमंत्री के द्वारा पीएम किसान योजना के तहत दसवीं किश्त 10.09 करोड़ रूपये को जारी करने की घोषणा की गई।
वर्ष 2018 में केन्द्रीय मंत्रीमण्डल के द्वारा एक समग्र योजना प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान जिसके अन्तर्गत मूल्यउ समर्थन योजना (प्राईस सपोर्ट स्कीम- पीएसएस), न्यूनतम मूल्य भुगतान योजना (प्राईस डिफिशियेंसी पेमेंट स्कीम-पीडीपीएस), निजी खरीद एवं स्ऑकिस्ट योजना (प्राइवेट प्राक्योरमेंट एंड स्टॉकिस्ट स्कीम-पीपीएसएस) इत्यादि जैसे कुछ प्रमुख घटकों को शामिल किया गया है, को आरम्भ किया गया।
लघु एवं सीमांत किसान परिवारों को प्र्रतिवर्ष 6,000 रूपये की आर्थिक सहाया प्रदान करने के उद्देश्य से 24 फरवरी, 2019 को किसान सम्मान निधि योजना का देश के प्रधानमंत्री के द्वारा शुभारम्भ किया गया। इसी के साथ मनरेगा के तहत दैनिक पारिश्रमिक में वृद्वि कर सावधि कृषि ऋणों को लौटाने में तीन तहीने की राहत से किसानों को प्रोत्साहन प्रदान किया गया हैं।
केन्द्रीय मंत्रीमण्ड़ल के द्वारा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) को वर्ष 2021-22 में पाँच वर्ष तक के लिए बढ़ाकर इसका कार्यकाल वर्ष 2025-26 तक करने के प्रस्ताव को पास कर दिया गया, इसकी कुल लागत 93,068 करोड़ रूपये, जिसमें राज्यों के लिए 37,454 लाख करोड़ रूपये का केन्द्रीय सहायता के रूप में प्रावधान किया गया है।
इस योजना के माध्यम से देश के 22 लाख किसानों को लाभ प्राप्त होने के साथ 30.23 लाख हैक्टेयर कमान क्षेत्र विकास सहित चालू 60 परियोजनाओं को पूर्ण करने, जल-स्रोतों को दोबारा से पुर्नजीवित करने और परियोजनाओं को आरम्भ करने पर ध्यान केन्द्रित करना सुनिश्चित् किया गया है।
भारत में कृषि उत्पादकता-एक परिदृश्य
1960 के दशक में प्रारम्भ हुई हरित क्रॉन्ति से पूर्व प्रति हेक्टेयर 757 किलोग्राम खाद्यान्न उत्पादन में तीस गुना वृद्वि कोने के फलस्वरूप वर्ष 2021 में प्रति हेक्टेयर 2.39 टन तक हो चुका हैं 17 अगस्त, 2022 को केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के द्वारा जारी चौथे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार वर्ष 2021-22 में खाद्यान्न रिकार्ड 315.72 मिलियन टन उत्पादन प्राप्त हुआ, जो कि वर्ष 2020-21 की तुलना में 4.98 मिलियन टन अधिक है।
इस दौरान गेहूँ की उपज में भी 2.96 मिलियन अन की वृद्वि दर्ज की गई। पिछले पाँच वर्ष (2016-17 से 2020-21) तक औसत उत्पादन की तुलना में इस वर्ष का उत्पादन 25 मिलियन टन अधिक हो सकता है, जिसमें धान, मक्का, दलहन, चना, रेपसीड, गन्ना, सरसों, तिलहन के रिकार्ड उत्पादन की आशा है। वर्ष 2021-22 में चावल का कुल उत्पादन 139.29 मिलियन टन होने की सम्भावना है, जो कि वर्ष 2020-21 की अपेक्षा 13.85 मिलियन टन अधिक है। इसके विपरीत वर्ष 2021 में बुआई 1038 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई थी, जबकि इस मौसम यह 2 प्रतिशत घटकर लगभग 1013 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही की गई थी।
कृषि उद्यमिता एवं कोशल विकास कार्यक्रम
भारत में कौशल-विकास, स्टार्टअप, मुद्रा योजना तथा रफ्तार योजना इत्यादि योजनाओं के माध्यम से युवाओं को कृषि उद्यमिता की ओर प्रात्सहित किया जा रहा है। कृषि एक उद्योग है तथा कृषि एवं उद्यमिता एक-दूसरे के साथ सम्बद्व है। भारतीय किसान भी उचित लाभ अर्जित करने के लिए उन्नत खेती अथवा अधिक उपज पाने के लिए नये-नये प्रयोगों या नवाचारों के माध्यम से जोखिम उठानें के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
21वीं सदी में भारत अत्याधुनिक तकनीकों के साथ ‘एक भारत-उन्नत भारत’ तथा ‘आत्मनिर्भर भारत’ की परिकल्पना के साथ एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभरकर सामने आ रहा है। बाजार के स्वरूप में प्रतिदिन परिवर्तन आने के कारण आर्थिक वृद्वि एवं विकास के लिए उद्यमियों की भूमिका को अहम ताना जाता है।
15 अगस्त, 2015 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान पहली बार स्टार्टअप इंडिया की घोषणा की थी, जिसकी कार्ययोजना को तीन क्षेत्रों- सरलीकरण और हैंड होल्डिंग, अनुदान सहायता तथा प्रोत्साहन पर केन्द्रित किया गया था। इसकी अधिकारिक वेबसाइट www.ostartupindia.gov.in को वर्ष 2016 में लाँच किया गया था।
वर्ष 2015 में कृषि स्नातकों के लिए व्यहारिक अनुभव एव्र उद्यमिता कौशल के लिए एक नाया कार्यक्रम रेडी (आरईएडीवाई)- रूरल एंटरप्रेन्योर डेवलेपमेंट योजना को वर्ष 2016-17 से प्रभावी रूप से लागू किया गया, जिसमें 3,000 रूपये की छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया था। पाठ्यक्रम के अन्तर्गत प्रयोगात्मक अध्ययन, कृषि क्षेत्र में व्यवहारिक प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार के साथ-साथ उनके ज्ञान एवं कोशल को बढ़ाना तथा विश्व मानकों के अनुसार तैयार स्नातकों को बिजनेस मॉडल विकसित करने तथा विदेश जाकर कृषि सम्बन्धित ज्ञान अर्जित करने के अवसर तथा कृषि विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ सम्पर्क कर अपना नामांकन करवा सकते हैं।
वर्ष 2010 में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के द्वारा एक अनिवार्य कोर्स एंटरप्रेन्योरशिप डेवलेपमेंट को आरम्भ किया गया था। वर्ष 2017-18 के दौरान ग्रामीण युवाओं के बीच कृषि व्यवसाय को वृद्वि प्रदान करने के लिए एक युवा सलाह कार्यक्रम (मेंटरिंग रूरल यूथ-2017) को विकसित एवं कार्यान्वित किया गया। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में युवाओं को कृषि एवं उद्यमिता में बने रहने के लिए आर्या यानी कार्यक्रम एवं माया कार्यक्रमों को भी प्रारम्भ किया गया था।
देशभर में इस प्रकार के कार्यक्रमों को सशक्त बनाने और युवाओं को अपनी पसंद के अनुसार गतिविधियों को चयनित कर लाभ कमाने के लिए प्रोत्सहित किया जाना चाहिए। आधुनिकता, बड़े कार्यक्रम और बड़ी सोच की होड में इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन नही होने से भी विद्यार्थियों के अन्दर कृषि उद्यमिता का विकास सही प्रकार से नही हो पायेगा। इसके साथ ही कृषि उत्पादों के विपणन एवं खाद्य-प्रसंस्करण, बीज, पौध-संरक्षण, जैव-उर्वरक, पशु अथवा मुर्गी-पालन, डेयरियाँ, वर्मी-कम्पोस्टिंग, मशरूम उत्पादन, सुअर-पालन, शहद उत्पादन, मछली-पालन तथा चारा विपणन आदि की ओर युवाओं को आकर्षित किया जाना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।