हमारे आस-पास के उपयोगी वृक्ष Publish Date : 20/12/2024
हमारे आस-पास के उपयोगी वृक्ष
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
प्रचलित नाम अंकोल, वैज्ञानिक नाम एलेजियम साल्वीफोलियम है।
परिवार एलंगेसी अंकोल एक पर्णपाती वृक्ष है जिसे अंग्रेजी भाषा में सेजलेब्रड एलेनजियम कहा जाता है, तथा इसका संस्कृत भाषा का नाम दणकंतक अंकोल है। जो कि भारतीय वनों में बहुलता से पाया जाता है।
इसकी ऊंचाई 10 मीटर तक होती है यह अधिकतर सूखे स्थानों में और नदी नालों के किनारों पर पाया जाता है। यह बीजों और बूटी के द्वारा प्रबंधित होता है। ऐसी मिट्टियाँ जो कि शरीत होती है उनके सुधार के लिए वन वैज्ञानिक अंकोल का अनुमोदन करते हैं इसकी लकड़ियों का संगीत के साज सामानों के निर्माण में और फर्नीचर आदि उद्योगों में उपयोग किया जाता है। इसकी शाखाओं को सुखाने के बाद लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
यह एक उच्च गुणों को जलाऊ लकड़ी भी है। यह कठोर ताम्र फल और नमक वृक्ष पूरे भारत में पाया जाता है। भारत के अलावा श्रीलंका, दक्षिणी चीन और फिलीपिंस के जंगलों में भी यह बहुतायत में में पाया जाता है।
वैसे तो इसके सभी भाग दिव्य औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते है। परन्तु इसकी पत्तियों का यदा-कदा ही उपयोग किया जाता है आयुर्वेदिक और यूनानी दोनों ही चिकित्सा पद्धतियों में अंकोल को एक सम्मानीय स्थान प्राप्त है।
आयुर्वेदिक मतानुसार इसकी जड़ तीक्ष्या सौभाग्य की बात है उष्ण और कृमिनाशक होती है। इसकी जहाँ आदिवासी क्षेत्र का प्रयोग त्वचा और पित्त जनित रोगों में ही विभिन्न प्रकार के रोगों कियाजाता है इसकी जड़ों का रस वमन कारक होता है यह कफ और वात को नष्ट करता है और रक्त तथा वात सम्बन्धी रोगों में विशेष उपयोगी है।
अंकोल के बीज शीतक और कामोत्तेजक होते हैं। इन बीजों को पचा पाना बहुत मुश्किल होता है। यूनानी मतानुसार इसकी जड़ों की छाल का उपयोग बवासीर की चिकित्सा में होता है। जबकि तने का उपयोग उल्टी और दस्त के रोगियों को आराम पहुंचाने के लिये किया जाता है। इसके फल रेचक और कृमिनाशक होते हैं।
हाल ही में किये गये अध्ययनों के माध्यम से यह पता चला है कि इसकी जड़ों में एजिन नामक रसायन पाया जाता है जो कि ब्लड़ प्रेशर को कम करता है। हमारे देश के बहुत से हिस्सों में इसके फल को बड़े चाव से खाया जाता है।
अंकोल के विषय में बहुत सा पारम्परिक ज्ञान हम भारतीयों के पास है और यह हमारे लिए जड़ों का उपयोग किया जाता है। इसकी जड़ो खाल से प्राप्त तेल का उपयोग नये वात रोग की चिकित्सा में होता है। भारत के उत्तर पूर्वी हिस्सों में ज्वर नाशक के रूप में इसका उपयोग आम बात है। पक्षाघात और सिफलीस की चिकित्सा भी इसके माध्यम से की जाती है। अतः किसान भाई ऐसे वृक्ष को लगाकर अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी आप दोनों ही प्राप्त कर सकते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।