किसी अवतार के भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं      Publish Date : 17/12/2024

               किसी अवतार के भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं

                                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जब इस पवित्र भूमि पर विदेशियों ने अपना साम्राज्य स्थापित किया, तो देश के लोगों को गुलामों की तरह जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। तब से लेकर अब तक हमने कई युद्ध लड़े। अनेक बार हार मिली, हालांकि हम कभी-कभी अपनी मर्दानगी और बहादुरी का प्रदर्शन भी करते रहे और जीत जाते थे। लेकिन हमारी वीरता की झलक थोड़े समय ही देखने को मिलती थी।

सफलता की छोटी-छोटी किरणें कभी भी स्थायी कीर्तिमान में नहीं बदल पाती थीं और सामान्य व्यक्ति आत्मविश्वास से रहित रहता था। इस स्थिति को सुधारने के लिए कोई काम नहीं किया गया। अनेक महापुरुषों ने समय समय पर अपने पौरुष से आशा की किरण बनाए रखी।

हमारा हिंदू समाज स्वभाव से ही पवित्र है। हमारे समाज में देवताओं की पूजा करने की प्रवृत्ति स्पष्ट है। इसके अलावा, हमारे समाज में विनम्रता और विनम्रता दिखाने के लिए सिर झुकाने की प्रवृत्ति भी बहुत गहरी है, जहाँ हम ईश्वर के तत्व को देखकर श्रेष्ठता का अनुभव करते हैं। आम लोगों में यह धारणा है कि महान आत्माओं में ईश्वर का तत्व होता है, जो उन्हें अलौकिक बनाता है।

इस सीमा तक ऐसा मानना गलत नहीं है। लेकिन, समाज में भ्रम की प्रवृत्ति तब सामने आती है जब सभी महान आत्माओं को मानवीय परिधि से बाहर धकेलकर ऐसी ऊंचाई पर पहुँचा दिया जाता है जहाँ केवल ईश्वर ही होते हैं। महापुरुषों को ईश्वर के बराबर मानकर हम एक तरह से खुद को उनसे दूर करने और उनसे बचने की कोशिश करते हैं।

आम आदमी हमेशा अपने को दीन-हीन, कमजोर और असहाय मानता है। वह इसी आशा में जीता है कि भगवान किसी भी रूप में मुश्किल समय में उसकी रक्षा करें। संकटों का सामना करते समय वह आत्मरक्षा की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता, बल्कि घर में आराम से बैठकर भगवान की कृपा से जीवन यापन करना चाहता है। हम सभी लोग, जो विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं, ऐसी सोच रखते हैं।

चुनौतियों का सामना करना अपनी ताकत और पुरुषार्थ दिखाने का अवसर होता है। इस बारे में कोई भी गंभीर नहीं है। इसके विपरीत, एक प्रवृत्ति पनपती दिख रही है, जिसमें यथासंभव मेहनत से परहेज किया जाता है, मुश्किल समय और चुनौतियों से बचा जाता है और विलासितापूर्ण जीवन शैली को अपनाया जाता है। आम आदमी की सोच की यह प्रवृत्ति निश्चित रूप से निन्दनीय है। अतः किसी अवतार के भरोसे बैठे रहना ठीक नहीं है स्वयं प्रारंभ करना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।