सरदार वल्लभभाई पटेल के देहांत के बाद श्री गुरुजी के संबोधन का अंश      Publish Date : 09/12/2024

सरदार वल्लभभाई पटेल के देहांत के बाद श्री गुरुजी के संबोधन का अंश

                                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

मैं संघ की वार्षिक बैठक में भाग लेने के लिए नागपुर गया था। बैठक शुरू हुई और मुझे बताया गया कि सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन हो गया है। यह खबर दिल को बहुत गहरा धक्का देने वाली थी। मैंने तुरंत बैठक स्थगित कर दी और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल से संपर्क किया ताकि वल्लभभाई पटेल के अंतिम के दर्शन के लिए आवश्यक व्यवस्था की जा सके। पंडित रविशंकर से मेरा बचपन से ही गहरा परिचय रहा था। वह मुझे अपने साथ मुंबई (तब बम्बई) ले गए।

मैं शब्दों में उस पीड़ा को व्यक्त नहीं कर सकता, जो मेरे हृदय में निरंतर पीड़ा देती रहती है। यह पीड़ा क्यों है? कोई भी यह नहीं कह सकता कि वे संघ से जुड़े थे। इस दृष्टि से सोचें तो यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब वे गृहमंत्री थे, उसी दौरान संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। वास्तव में, उनके निर्देश पर कई आर. एस. एस. कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया था। इसके बावजूद उनके निधन से मन में इतनी पीड़ा क्यों है? इसका कारण यह है कि मनुष्य अपने गुणों के कारण ही सभी के लिए प्रिय या पूज्यनीय होता है। हम सभी सरदार पटेल के जीवन में अनेक गुणों का संगम देख सकते हैं।

हमारे देश में विशेष रूप से चरित्र और आत्मानुशासन की भावना को प्रबलता से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। सरदार पटेल के जीवन चरित्र से आत्मानुशासन की प्रेरणा को हम भूल नहीं सकते। हम महसूस करते हैं कि मनुष्य दूसरों को काम करने का आदेश तभी दे सकता है जब वह स्वयं आत्म-नियंत्रण की अत्यधिक भावना के साथ आदेशों का पालन करने के लिए जागरूक हो। यदि वह आदेशों का पालन करने की शालीनता नहीं जानता है, तो जिसे नेता के रूप में स्वीकार किया जाता है, उसे मतभेद के बावजूद उसके आदेश का पालन करके सम्मानित किया जाना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है, वह दूसरों को अनुशासन की भावना से काम करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता है।

हम सभी ने महात्मा गांधी को स्वेच्छा और सहज रूप से अपना राष्ट्रीय नेता स्वीकार किया, यह एक सर्वविदित तथ्य है। सरदार पटेल के मन में गांधी जी के अनन्य शिष्य और निकट सहयोगी होने का दर्जा स्वीकार करने में कृतज्ञता की भावना थी। हालांकि, असहमति के कई उदाहरण भी थे। अनेक अवसरों पर परस्पर विरोधी विचार होने के बावजूद, कोई भी यह कभी नहीं कह सकता कि सरदार पटेल ने उनके आदेशों की अवहेलना की, असहमति और नाराजगी व्यक्त की या जानबूझकर आदेशों का पालन करने की अवहेलना की। जो व्यक्ति दूसरों के आदेशों का पालन करने के लिए सदैव तत्पर रहता है और आत्मानुशासन के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहता है, वह अपने देश के लोगों को आत्म-नियमन का पाठ पढ़ाने में सक्षम होता है। यदि हम उनकी जीवनी से यह छोटा सा गुण सीख लें और अपना लें, तो हम चारों ओर व्याप्त अराजकता से उबरकर एक व्यवस्थित जीवन बनाने में सफल हो सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।