मेधावी छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण योजना Publish Date : 22/11/2024
मेधावी छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण योजना
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
शिक्षा विकास को गति एवं सही दिशा प्रदान करती है। शिक्षा के अभाव में किसी भी राष्ट्र का भविष्य सुरक्षित नही हो सकता है। शिक्षा ही एक जनतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान कर जनतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत आम जन की भागीदारी को सुनिश्चित् करती है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही गत दिनों केंद्र सरकार ने ‘‘प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी योजना’’ को स्वीकृति प्रदान की है।
इस योजना के तहत मेधावी छात्रों की गुणवत्तायुक्त उच्च शिक्षा प्राप्त करने में उन्हें हरसंभव सहायता प्रदान की जा सके और किसी भी प्रकार की आर्थिक बाधा इस दिशा में अवरोधक न बन सके।
यह योजना राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की संस्तुति के आधार पर की गई एक अति महत्वपूर्ण पहल है जिसमें सुझाव दिया गया है कि निजी और सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों में मेधावी छात्रों को विभिन्न उपायों के तहत वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए, जिससे कोई भी मेधावी छात्र आर्थिक अभाव के चलते उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित न रह सकें।
इस योजना से देश के शीर्ष गुणवत्ता वाले लगभग 860 उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में ऐसे छात्रों के प्रवेश के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। इसमें ऐसे विद्यार्थियों को प्राथमिकता प्रदान की जाएगी, जो तकनीकी एवं व्यवसायिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। 22 लाख से अधिक विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष इस योजना से लाभ प्राप्त हो सकेगा। इस योजना के अंतर्गत काफी कम ब्याज की दर पर विद्यार्थियों का ऋण उपलब्ध कराया जाना है।
इसके साथ ही इस ऋण को प्राप्त करने के लिए किसी प्रकार की कोई गारंटी अथवा जमानत आदि का भी कोई प्रावधान नही किया गया है। ऐसे में जिन परिवारों की वार्षिक आय 8 लाख रूपये अथवा उससे कम है, ऐसे विद्यार्थियों को 10 लाख रूपये तक के ऋण पर ब्याज में की दर में 3 प्रतिशत की छूट प्रदान की जाएगी।
आंकड़ें दर्शाते हैं कि ऋण लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या अभी केवल 3 लाख ही है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि इस योजना के आने के बाद शिक्षा-ऋण लेने वाले छात्रों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी होगी। यह योजना निर्धन, वंचित, निम्न एवं मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि के अंतर्गत आने वाले छात्रों के लिए उनकी रूचि के अनुरूप पाठ्यक्रमों एवं संस्थानों में प्रवेश पाने के द्वार खुलेंगे और वे विकास की मुख्यधारा में भी शामिल हो सकेंगे।
शिक्षा के क्षेत्र में सुधारों एवं अवसरों को गति प्रदान करने और कल्याणकारी योजनाओं तथा कार्यक्रमों को लागू करने की दिशा में मोदी सरकार निरंतर सक्रिय है। बीते दशक में एक बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा के संस्थान स्थापित किए गए हैं।
यदि इस तस्वीर को आंकड़ों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाए तो इनमें 07 आईआईटी, 16 आईआईआईटी, 07 आईआईएम, 15 एम्स और 300 विश्वविद्यालय शामिल हैं। पहले देश में राष्ट्रीस महत्व वाले लगभग 75 संस्थान हुआ करते थे, जो कि अब दुगने से भी अधिक होकर 165 हो चुके हैं। पहले देश में 316 सार्वजनिक विश्वविद्यालय थे, जो अब बढ़कर 480 हो गए हैं।
देश में जहाँ पहले तकनीकी विश्वविद्यालयों की संख्या 90 थी, वह अब बढ़कर 188 हो चुकी है। देश में वर्ष 2014 में पोस्ट ग्रेजुएट सीटों की संख्या 30,000 थी, जो वर्ष 2024 में बढ़कर दुगने से अधिक 70,000 हो चुकी हैं। पिछले 70 वर्षों में देश में 387 मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए थे जबकि पिछले 10 वर्षों में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 706 हो गई है। एमबीबीएस सीटों की संख्या 50,000 से बढ़कर वर्तमान में एक लाख से भी अधिक हो चुकी है।
इससे पहले देश में जहाँ 38,000 कॉलेज हुआ करते थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 53,000 हो चुकी है। ऐसे ही तमाम आंकड़े, पहल एवं प्रयास भारतीय उच्च शिक्षा को लेकर सरकार की गंभीरता, प्रतिबद्वता और उसकी संवेदनशीलता को प्रदर्शित करते हैं, परन्तु केवल इतना ही पर्याप्त नही है। क्योंकि ऐसे अभी बहुत से क्षेत्र बाकी है, जहाँ और अधिक प्रयास किए जाने और कार्य को अधिक तीव्रता प्रदान करने की महत्ती आवश्यकता है। हालांकि सर्वाधिक आवश्यकता तो शिक्षा की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार करने की है।
यह सर्वविदित है कि विद्यालयों के पाठ्यक्रम में व्यापक परिवर्तन की प्रतीक्षा पिछले कई दशकों से की जा रही है, और जनमानस में इसे लेकर काई दुविधा या कोई आपत्ति भी नही हैं, परन्तु पाठ्यक्रम परिवर्तन की दिशा में भारत का शिक्षा मंत्रालय और सरकार की चाल सामान्य से बहुत अधिक धीमी और सुस्त नजर आ रही है। अभी तक केवल कक्षा एक, दो, तीन और छठी कक्षाओं की पाठ्य पुस्तके ही प्रकाशित हो पई हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में जिस समय काँग्रेस सत्ता में आई थ्ळाी, तब उस सरकार ने जन भावनाओं एवं पाठ्य-सामग्री आदि पर व्यापक विचार विमर्श कि बगैर ही वर्ष 2006 अर्थात केवल दो ही वर्षों में समस्त विषयों के साथ सभी कक्षाओं की पाठ्य पुस्तके बदल दी थी, परन्तु वर्तमान सरकार ऐसा नही कर पा रही है, जबकि सरकार के पास आज नई शिक्षा नीति के समग्र एवं व्यापक दिशा-निर्देश के साथ स्पष्ट सुंस्तुतियां भी उपलब्ध हैं।
नई शिक्षा नीति को लागू करने की दिशा में सबसे ठोस एवं निर्णायक कदम बिना किसी देरी के पाठ्यक्रम और पाठ्रू-पुस्तकों में समाज एवं राष्ट्र की आवश्यकता अनुकूल और वांछित परिवर्तन तो करना ही होगा। इस परिवर्तन के लिए तकनीकी, व्यवसायिक, कौशल आधारित, मूल्य परक एवं रोजगार प्रदान करने में सहायक शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करनी ही होगी।
पिछले एक दशक के दौरान शिक्षा का भारतीयकरण करने के प्रयास काफी गंभीर एवं तेज हुए हैं। शैक्षिक जगत में भारतीय ज्ञान-परम्परा के जैसे विषय चिंतन एवं चर्चा के केन्द्र बिन्दु बने हुए हैं, परन्तु नई शिक्षा नीति में माध्यमिक स्तर पर दो भारतीय एवं एक विदेशी तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर पर एक भारतीय एवं एक विदेशी भाषा को पढ़ाए जाने की संस्तुति की गई थी, परन्तु अभी तक विभिन्न शिक्षा बोर्डों की ओर से इस पर कोई स्पष्ट गाईड लाईन जारी नही की गई है, और न ही शिक्षा मंत्रालय की ओर से कोई ठोस एवं निर्णायक पहल की गई है।
वास्तव में मातृभाषा अथवा अन्य भारतीय भाषाओं को विद्यालयों के स्तर पर प्रश्रय एवं प्रोत्साहन प्रदान किए बगैर शिक्षा के पूर्ण भारतयकरण के तमाम प्रयासों को अधूरा ही माना जाएगा।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।