आखिर वायु प्रदूषण का जिम्मेदार कौन      Publish Date : 17/11/2024

                 आखिर वायु प्रदूषण का जिम्मेदार कौन

                                                                                                                                                              प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हर वर्ष शरद ऋतु के आगमन से पूर्व ही राधानी दिल्ली और एनसीआर का दम घुटने लगता है और सभी लोग एक साथ मिलकर वायु प्रदूषण का ठीकरा किसानों के सिर फोड़ने लगते हैं। प्राइम टाइम, टीवी पर होने वाली बहसों से लेकर  बुद्विजीवियों की गोष्ठियों तक सभी में दिल्ली की हवा में फैलते जहर के लिए जलती पराली के दृश्यों के बीच पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को अपराधी घोषित कर दिया जाता है, जबकि सच्चाई कुछ और ही है।

                                                        

दिल्ली की वायु की गुणवत्ता चिंता के स्तर की गिरावट तक पहुँच चुकी है जो कि मुक्ष्य रूप से दिल्ली की अपनी ही देन है। दिल्ली में व्याप्त वायु प्रदूषण में किसानों का योगदान केवल आटे में नमक के बराबर ही है। दिल्ली में वाहनों की अत्याधिक संख्या जो यहाँ कि हवा में लगातार जहर उगल रही है, जिसमें अभी तक की संख्या के अनुसार एक करोड़ 15 लाख वाहन पंजीकृत वाहन शामिल हैं। ऐसे में इन वाहनों से निकलने धुएं में 2.5 पीपीएम से लेकर 10 पीपीएम तक के कण मौजूद होते हैं, जो कि हमारी श्वसन सम्बन्धित परेशानियों के साथ ही हृदय से सम्बन्धित रोगों को बढ़ावा देते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के कुल वायु प्रदूषण का लगभग 40 प्रतिशत भाग केवल वाहनों से ही आता है। इन वाहनों से उत्सर्जित होने वाली सल्फर डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साईड़, कार्बन मोनोऑक्साईड, कार्बन डाईऑक्साईड, ओजोन, पेरोक्सीसाईल नाइट्रेट, वाष्प्शील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) और 2.5 एवं 10 माईक्रोमीटर के प्रदूषक कण हमारे सम्पूर्ण वातावरण समेत वनस्पति और जीव-जन्तुओं के साथ ही मानव को भी बुरी तरह सऐ प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त, दिल्ली में बड़े पैमाने पर भवन एवं सड़क निर्माण कार्य, स्थान दर स्थान होने वाली खुदाई तथा बुनियादी ढाँचे का विकास वायु प्रदूषण की वृद्वि करने में अहम कारक होते हैं, जिनकी दिल्ली के वायु प्रदूषण में भागीदारी 20 प्रतिशत तक मानी जाती है।

                                                                   

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अर्थात एनसीआर अपने आप में एक बहुत अधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र भी है और दिल्ली के साथ ही समस्त एनसीआर में स्थित तमाम औद्योगिक इकाईयां दिल्ली को प्रदूषण का उपहार प्रदान करने का एक बड़ा स्रोत है। इन उद्योगों से निष्काषित धुएं में हानिकारक रसायन और कार्बन के उत्सर्जन से भी दिल्ली कदाचित अनभिज्ञ सी ही रहती है। कोयले के माध्यम से संचालित विद्युत संयंत्र भी प्रदूषण के प्रति उतने ही जिम्मेदार होते हैं। दिल्ली के आसपास थर्मल पॉवर प्लॉंट्स के द्वारा उत्सर्जित धुएं में सल्फर डाई ऑक्साईउ तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे विषैले तत्व विद्यमान होते हैं, जो जनता के स्वास्थ्य के लिए अति हानिकारक होते हैं। दिल्ली और एनसीआर में उद्योगों और थर्मल पॉवर प्लांट्स के क्षरा उत्सर्जित की हिस्सेदार कुल वायु प्रदूषण में 20 प्रतिशत होती है।

इसके साथ ही दिल्ली में कचरे को जलाने की प्रवृत्ति बाकी देश की तरह से ही है, जिसके माध्यम से वायु में विर्षली गैसों का उत्सर्जन होता है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में कचा?रा जलाने उत्पन्न हुआ प्रदूषण दिल्ली के कुल प्रदूषण में 5 से 8 प्रतिशत की भागदारी रखता है। दिल्ली में स्थान स्थान पर कूड़े के ढेर हैं जिनके जैविक अपघटन से भी अमोनिया, मीथेन और कार्बन डाईऑक्साईड के जैसी गैसों का उत्सर्जन होता रहता है जिसका दिल्ली के कुल वायु प्रदूषण में एक से दो प्रतिशत हिस्सा तो रहता ही होगा।

                                                                        

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के आसपास वाले राज्यों में पराली जलाए जाने से दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्वि होती है, जबकि शेष 90 प्रतिशत प्रदूषण की जिम्मेदारी स्वयं दिल्ली की अपनी उपलब्धि है। हालांकि राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के कुल पीपीएम 2.5 स्तरों का लगभग 25 से 30 प्रतिशत हस्सा पराली के जलाने से आता है, परंतु एक सत्य यह भी है कि दिल्ली की अपनी प्रदूषण की समस्या ही इसे अति गम्भीर बना रही है।

वर्ष के शेष महीनों की तुलना में सर्दी के महीनों में दिल्ली में प्रदूषण की समस्या आखिर क्यों बढ़ी हुई नजर आती है? इसका प्रमुख कारण प्रदूाकों का ‘‘इनवर्टेड डिस्पर्सन’’ यानी कि प्रदूषकों का विपरीत फैलाव, जो कि एक मौसमी घटना होती है। इस मौसम में ठंड़ी हवाओं का रूख धरती की ओर होता है जबकि गर्म हवाएं ऊपर की ओर जाती हैं। यही वह परत है जो कि प्रदूषकों को ऊपर की और फैलने से रोक देती हैं, जिससे प्रदूषक धरातल पर ही एकत्र हो जाते हैं। सर्दियों के महीनों में यह प्रभाव दिल्ली में अधिक होता है, क्योंकि हवा की गति धीमी होती है औश्र तापमान कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप वाहनों, उद्योगों और अन्य स्रोतों के माध्यम से उत्सर्जित प्रदूषक वातारवरण की निचली परत में फंस जाते हैं, और वह वायु की गुणवत्ता को को खराब करते हैं।

दिल्ली शहर में जब धूप निकलती है तो वातावरण में मौजूद प्रदूषकों की आपसी रासायनिक प्रक्रियाओ के फलस्वरूप फोटोकैमिकल स्मॉग उत्पन्न होता है। स्मॉग ही वह धुंध होती है जो शहरों के परिवेशीय वातावरण को एक विषली चादर से ढंक लेती है। यह सौर अल्ट्रावायलेट विकिरण के द्वारा उत्प्ररित नाइट्रजन ऑक्साईड और वाष्प्शील कार्बनिक यौगिकों के बीच होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया के चलते उत्पन्न होता है, जिससे स्मॉग के मुख्य उत्पादों के रूप में जमीनी स्तरों पर ओजोन और पैन (पेरोक्सीएसाईल नाइट्रेट) का निर्माण होता है।

हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीटयूट की वर्ष 2021 की रिपोर्ट में बताया गया था कि वायु प्रदूषण के कारण दुनियाभर में लगभग 80 लाख लोगों की मौत हुई थी, जो कि कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से भी अधिक है। एम्स दिल्ली के पूर्व निदेशक डॉ0 रणदीप गुलेरिया का कहना है कि हम लोग कोविड-19 से तो चिंतित हैं परंतु वायु प्रदूषण को लेकर चिंतित दिखाई नही देते हैं।

केन्द्र सरकार की ओर से अदालत में पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने कहा कि सीक्यूएम अधिनियम की धारा 15, जो पराली के जलाने पर जुर्माने से सम्बन्धित है, को प्रभावी ढंग से लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए एक निर्णायक अधिकारी नियुक्त किया जाएगा और इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए सभी आवश्यक कार्यवाही की जाएंगी। कीने का अर्थ यह है कि पराली जलाने वाले किसानो को ही बलि का बकरा बनाने की पूरी तैयारी कर ली गई है।

                                                                   

यह सत्य है कि पराली जलाने से प्रदूषण के स्तर में वृद्वि होती है और किसानों के द्वारा पराली को जलाए जाने पर पूर्ण प्रतिबन्ध भी लगाया जाना चाहिए और इसके साथ ही इस कानून की अवहेलना करने वाले किसानों पर आर्थिक दण्ड़ भी लगाया जाना चाहिए, लेकिन दिल्ली के प्रदूषण में 90 प्रतिशत का योगदान देने वाले अन्य स्रोतों के ऊपर भी कार्यवाही सुनिश्चित् की जानी चाहिए और इसके लिए भी एक इोस नीति बनाई जानी चाहिए। क्योंकि पराली जलाना पूरी तरह से बन्द हो जाने के बाद भी स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन आने की आशा कम ही नजर आ रही है।

इसके लिए दिल्ली में वाहनों के द्वारा उत्सर्जन को नियंत्रित करने, इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देना, सभी प्रकार के निर्माण कार्यों के लिए कड़े नियम बनाकर उनका कार्यान्वयन सुनिशिचत् करने, औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने, खुले में कचरा एवं पराली जालाने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने तथा कूड़े के पहाड़ों का उचित प्रबन्धन आदि कार्यों के माध्यम से ही दिल्ली को एक गैस का चैम्बर बनने से रोका जा सकता है। इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण कदम यह होगा कि दिलली को पर्यावरण राजनीति सम्बन्धी प्रदूषण की काली छाया से भी मुक्त बनाना होगा।   

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।