रासायनिक खेती से नुकसान, फसलों की कम पैदावार और बढ़ती लागत      Publish Date : 04/11/2024

रासायनिक खेती से नुकसान, फसलों की कम पैदावार और बढ़ती लागत

                                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के छिड़काव के प्रभाव से मिट्टी संरचना हुई खराब, जनपद में लाखों हैक्टेयर क्षेत्र में की जाती है खेती-

                                                        

मृदा के 31 हजार सैंपल्स में से 29 हजार सैंपल में कार्बन की मात्रा घटकर 0.7 से 0.1 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है। इसके फलस्वरूप फसलों की लगात तो बढ़ रही है जबकि पैदावार लगातार कम होती जा रही है। किसान 83 मीट्रिक टन से अधिक फर्टिलाइजर्स के सहित कीटनाशक आदि को डालकर भूमि को पहुँचा रहे हैं भारी नुकसान।

वर्तमान में किसान अपनी फसलों को कीट एवं रोग आदि से बचाने और फसलोत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न कंपनियों के कीटनाशक, रासायनिक उर्वरकों और खेती के काम आने वाली विभिन्न प्रकार की दवाओं को खेतों में डालकर स्वयं अपने हाथो से ही अपना नुकसान कर रहे हैं। इन दवाओं को बनाने में प्रयोग किए जाने वाले जहर का प्रभाव अब मृदा की संरचना पर नजर आने लगा है। मृदा प्रयोगशाला में मृदा के सैंपल्स की जांच के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि अब हमार मृदा सख्त होने लगी है और पैदावार बढ़ने के स्थान पर कम होने लगी है। मृदा प्रयोगशाला में पिछले साल 31 हजार से अधिक सैंपल्स की जांच की गई है जिनमें से 29 हजार सैंपल्स की रिपोर्ट में कार्बन की स्थिति खतरनाक स्तर 0.7 के मुकाबले अब 0.1 के स्तर पर पाई गई है, जो कि एक खतरनाक संकेत है।

                                                                   

बताया जा रहा है कि जिले में 5.14 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में खेती की जा रही है और प्रत्येक सीजन में लगभग 83 मीट्रिक टन पेस्टीसाइड्स, फर्टिलाइजर्स आदि का उपयोग किसान करते हैं। कीटनाशकों का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में करने से मृदा में कार्बन की मात्रा कम हुई है। इसके सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी है कि जितना जहर खेतों में डाला जाता है उसका केवल 30 से 35 प्रतिशत भाग ही पौधें या फसलें उपयोग कर पाती हैं और बाकी सब मिट्टी में जाकर उसकी संरचना को खराब कर रहा है। वहीं यह जहर मिट्टी में मिलकर हमारी मृदा एवं भू-जल को भी लगातार प्रदूषित कर रहा है। मृदा में मिला इनका वेस्ट ही मिट्टी को हार्ड कर रहा है। इसी हार्डनेस के कारण फसलों की लागत बढ़ रही है तो उनका उत्पादन भी साल दर साल कम होता जा रहा है। 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।