वैभवशाली भारत का संकल्प      Publish Date : 30/10/2024

                         वैभवशाली भारत का संकल्प

                                                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

वास्तव में यह विजय की आकांक्षाओं को पूरा करने का युग है। जितने प्रयत्न की अपेक्षा है हम उसमें थोड़े पीछे हैं लेकिन हम देखते हैं कि हर जगह उत्साह का वातावरण है।

अब पराजय की मानसिकता का अनुभव नहीं होता है। ऐसा देश  दुनिया में प्रतिष्ठा और आदर प्राप्त करता है। जिस देश में विश्व के कल्याण का दृढ़ विश्वास और महत्वाकांक्षा है, वह ही प्रतिष्ठा अर्जित कर सकता है। हमारी संस्कृति और इतिहास महापुरुषों का है। इस भूमि के महानायकों ने गर्व के साथ कहा है “वयं साम्राज्यवादीः” (हम साम्राज्य के लिए हैं) चक्रवर्ती सम्राटों से अपना इतिहास भरा हुआ है। अपने देश अपने जन अपनी भूमि को सुरक्षित रखते हुए विश्व के संकट को टालना ऐसी प्रवृत्ति भारतीय प्रवृत्ति ही हो सकती है।

                                                               

हमने यहाँ पराजित मानसिकता के साथ यात्रा प्रारंभ की थी और विजय का लक्ष्य ले कर आगे बढ़े, और दूसरी तरफ इंग्लैंड, अमेरिका, रूस पूरी दुनिया पर अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश कर रहे थे ।

वे चाहते हैं कि बाकी पूरी दुनिया उनकी गुलाम बन जाए। एक तरफ़ तो वे दुनिया को जीतने की महत्वाकांक्षा रखते हैं और दूसरी तरफ़ वे विश्व शांति के लिए दिखावटी घोषणाएँ कर रहे हैं। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इस उद्देश्य के लिए कई सेमिनार और सम्मेलन आयोजित किए जाते रहे, विश्व शांति का मतलब है कि “हमसे झगड़ा मत करो, तुम सिर्फ़ हमारी बात सुनो और शांति से रहो।”

                                                                      

वे दुनिया को गुलाम बनाने की कोशिश करते रहे जबकि हम अपनी संस्कृति के सहारे मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। (दुनिया की सभी संस्कृतियाँ मनुष्य को पशु बनाने की कोशिश कर रही हैं) इतिहास बताता है कि हमारे पूर्वजों ने कई बार सच्ची मानवता फैलाने की कोशिश की है, हम उसी नस्ल के हैं। यह कैसे संभव है कि हम लूटे जाएँ? हम विश्व से लेने वाले नहीं बल्कि विश्व को देने में विश्वास रखते हैं।

जहाँ सभी लोग आसुरी साम्राज्य के लिए प्रयत्नशील हैं, वहीं हम स्वयं दैवीय साम्राज्य का उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। इसके लिए हमें अपने अंदर आत्मविश्वास जगाना होगा और इस संकल्प को क्रियान्वित करने के लिए अपने प्रयासों को और बढ़ाना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।