आज की वैश्विक अवधारणा      Publish Date : 25/10/2024

                         आज की वैश्विक अवधारणा

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

दुनिया की एक विचारधारा यह है कि दुनिया भर के लोगों को एक साथ आना चाहिए और उनके बीच कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। जीवन के सभी क्षेत्रों में एकरूपता होनी चाहिए। इसके बजाय एक और विचारधारा यह है कि सभी राष्ट्रों को लोगों के समूह के रूप में वैसे ही रहना चाहिए जैसे कि वे हैं, लेकिन उनमें परस्पर प्रेम और स्नेह जरूर होना चाहिए और उन्हें इस सामूहिक अखंडता का आनंद लेना चाहिए। कई प्रतिष्ठित विचारक इन दोनों विचारधाराओं को उचित ठहराते हैं। इस संबंध में हमारे विचार बिल्कुल स्पष्ट हैं और वे सदियों से यहां हैं।

                                                               

हमारी सोच यह है कि व्यक्ति और समाज के बीच आपसी समझ होनी चाहिए, बिना उनकी विशेषताओं को नष्ट किए।

हर व्यक्ति या राष्ट्र को जन्म किसी न किसी उद्देश्य से ईश्वर ने दिया है, इसलिए उनका अपना एक व्यक्तित्व होता है। राष्ट्रों के बीच यह समझ पैदा करना आवश्यक है, क्योंकि जब यह समझ विकसित होती है तब बिना किसी की विशेषता को हानि पहुंचाये साथ साथ प्रेम पूर्वक रह सकते हैं। हम इस धरती पर व्यक्तियों और व्यक्तियों के समूहों में अलग-अलग विशेषताएँ और अलग-अलग दृष्टिकोण पाए जाते हैं। ब्रह्मांड की पूरी व्यवस्था में सभी के लिए एक निश्चित स्थान नियत किया गया है। ये समूह अपनी-अपनी विशेषताओं के अनुसार कार्य करते हैं। किसी की विशेषताओं को नष्ट करना और उन सभी को एक ही टोकरी में रखना निश्चित रूप से उचित नहीं है।

यह न केवल उनकी सुंदरता को खत्म कर देगा बल्कि सभी की प्रसन्नता को भी खत्म कर देगा और संघर्ष को जन्म देगा। यह विकास को भी बाधित करता है। हम राष्ट्रों के बीच समन्वय चाहते हैं, उनका विनाश नहीं।

                                                      

राष्ट्रों के बीच मतभेदों को नष्ट करके राज्यविहीन व्यवस्था बनाने का हमारा कोई विचार नहीं है। इसके बजाय हमें अलग-अलग सामान्य दृष्टिकोणों को बनाए रखना चाहिए और मानव जाति के क्रमिक विकास के साथ-साथ प्रगतिशील समन्वित विकास को होने चलते देना चाहिए।

हमारा भी यह विचार है कि सभी मनुष्य एक ही अवस्था में हों। लेकिन यह तभी संभव है जब मनुष्य स्वयं को मानवता के उच्च स्तर तक विकसित करे, और यह कोई आसान स्थिति नहीं है। इसलिए जब तक मनुष्य मनुष्य बना रहेगा और इस समय हम समूहों में, राष्ट्रों में, अपनी-अपनी विशेषताओं के साथ रहेंगे, तब तक एकमात्र विकल्प यही है कि हम अपनी सारी ऊर्जा और बुद्धि का उपयोग राष्ट्रों और व्यक्तियों के बीच समन्वय के लिए करें और इसी लिए हमारा मंत्र है ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।