राष्ट्र के प्रति अवैयक्तिक श्रद्धा रखें Publish Date : 23/10/2024
राष्ट्र के प्रति अवैयक्तिक श्रद्धा रखें
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
जब हम किसी को देशभक्त कहते हैं तो कुछ लोग उनके अनुयाई बन जाते हैं, इसलिए हमारा समाज व्यक्ति-पूजक बन गया। क्या देश के प्रति श्रद्धा किसी व्यक्ति के बिना नहीं हो सकती, जिस व्यक्ति के प्रति श्रद्धा विकसित होती है समाज उसी व्यक्ति से सभी परिवर्तनों की अपेक्षा करने लगता और उसे तो अपना कार्य केवल उस व्यक्ति के प्रति श्रद्धा और अपेक्षा करना ही लगता है।
वास्तव में प्रत्येक नागरिक में अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा की एक स्वाभाविक, शाश्वत, वृत्ति होनी चाहिए। ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ ऐसी वृत्ति को पोषित किया जाता हो और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया जाता हो। यह केवल संघ में ही हो रहा है। सामान्यतः इस पर कोई विचार नहीं करता, सभी लोग अस्थायी समस्याओं और संकटों पर ध्यान देते हैं।
ये बात सही है कि अपने देश में कई महान व्यक्तित्वों ने उत्साहपूर्ण वातावरण बनाया है जिससे लोग भी साथ आए हैं, लेकिन उनके मन में राष्ट्र से बढ़ीं उस व्यक्तित्व की छाप है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने व्यक्तित्व से एक शानदार परंपरा बनाई, परंपरा कुछ समय तक चली। लेकिन कुछ समय बाद वो खत्म हो गई।
हमारे देश में अनेक अवतार हुए, आज उनका क्या बचा है? उनके नाम पर उत्सव और पूजा-पाठ के कार्यक्रम होते हैं। व्यक्तित्व के प्रभाव के बिना कर्तव्य-बद्ध कर्म की परंपरा न तो बनी और न ही उसके निरंतर बने रहने की कोई व्यवस्था बनी। क्या उन महापुरुषों के विचार केवल उसी समय प्रासंगिक थे जब तक वे सशरीर उपस्थित थे? क्या अब भी उसी प्रकार प्रेरित हो कर कार्य करने की आवश्यकता नहीं है?
बहुत संभव है कि उन महापुरुषों को ऐसा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला होगा। बहुत संभव है कि ऐसा प्रवाह बना, कुछ समय तक चला और बाद में सूख गया।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का उदाहरण लें, जब वे जीवित थे, तब उनके असंख्य अनुयायी थे। लेकिन उनके निधन के बाद उनका काम बंद हो गया। आज बाहरी तौर पर महान लोगों की नकल की जा रही है, लेकिन उनके आदर्शों की निरंतरता में बहुत कमी देखी अनुभव होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।