जमीन के बहुत नीचे ‘‘वेल टु हेल’’ Publish Date : 18/10/2024
जमीन के बहुत नीचे ‘‘वेल टु हेल’’
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
क्या आप लोग जानते हैं कि एक बार रूस ने पृथ्वी की सबसे निचली सतह तक पहुंचने के लिए लगभग 12 किमी गहरा गड्ढ़ा किया था। लेकिन किन्हीं कारणों से उसे बंद कर दिया। इससे जुड़े कुछ रहस्य बहुत ही दिलचस्प है।
पृथ्वी के केंद्र में क्या है, इस रहस्य से परदा उठाने के लिए बार-बार प्रयास किए जाते रहे हैं। ऐसे ही प्रयासों में से एक था, रूस के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया लगभग 12 किमी का गहरा गड्डा। इस गड्ढे को अभी तक दुनिया का सबसे गहरा गड्ढा माना जाता है, जिसे कुछ लोग ‘‘वेल टु हेल’’ (नरक का कुआं) भी कहते हैं।
रूस का ‘‘कोला सुपर डीप बोर होल’’ सोवियत संघ द्वारा विज्ञान के नाम पर बनाया गया था,, जिससे कि जमीन के सबसे निचले तल में क्या है, इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त की जा सके।
इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए अज्ञात गहराई तक खुदाई करने की शुरुआत की गई और सतह से करीब 40,000 फीट नीचे तक गहरा गड्ढा खोद दिया गया। फिर एक दिन इस गड्ढ़े के ऊपर से एक मजबूत धातु के ढक्कन के द्वारा हमेशा-हमेशा के लिए इसे बंद कर दिया गया।
पृथ्वी की सतह में छेद करने की परियोजना वर्ष 1970 के दशक में मरमंस्क प्रांत के पास आरम्भ की गई गई थी, जब सोवियत वैज्ञानिक पृथ्वी की परत के बारे में और अधिक जानकारियां प्राप्त करना चाहते थे। लगभग दो दशकों में वे पृथ्वी में अब तक की सबसे अधिक गहराई तक खुदाई करने में सफल रहे थे।
वर्ष 1992 में वैज्ञानिकों को यह ड्रिलिंग बंद करनी पड़ी थी, क्योंकि इससे नीचे का तापमान 180 डिग्री सेल्सियस के आस-पास था। यह तापमान वैज्ञानिकों के पूर्वानुमान से कहीं अधिक ज्यादा गरम था। ऐसे में सवाल खड़ा हुआ कि अगर विशेषज्ञ इस ड्रिलिंग को जारी रखना चाहते हैं और इस प्रयास में अपने सभी उपकरणों को नष्ट नहीं करना चाहते हैं, तो उन्हें तापमान की समस्या को दूर करने के लिए कोई नया तरीका खोजना होगा।
ड्रिलिंग जारी रखने के कई प्रयास किए गए, लेकिन बात नहीं बनी। ऐसे में अगस्त 1994 में ड्रिलिंग बंद कर दी गई। तब कहा गया कि धन की कमी के कारण यह काम बंद किया गया है, न कि तापमान की समस्या के कारण।
कोला सुपर डीप बोर होल का व्यास 23 सेंटीमीटर है और इसके धातु के ढक्कन को अच्छी तरह से वेल्ड किया गया है, इसलिए भविष्य में किसी भी प्रकार की कोई दुर्घटना होने की संभावना नहीं है। क्षेत्र के स्थानीय लोगों का कहना है कि यह गड्ढा इतना गहरा है कि आप इसके माध्यम से नरक में यातना सह रहे लोगों की चीखें तक भी सुन सकते हैं, इसलिए इसका उपनाम ‘‘वेल टु हेल’’ रखा गया है।
अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि पृथ्वी की परत में 12 किलोमीटर की दूरी तक पानी उपलब्ध है, जबकि पहले इसे असंभव माना जाता था।
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से मृत एकल-कोशिका वाले 24 नए प्रकार के जीवों की खोज भी इस दौरान की थी और वह लगभग 2.7 अरब वर्ष पुरानी चट्टानों तक भी पहुंचे थे। सोवियत रूस के बाद अन्य कई देश भी धरती की गहराई तक जाने का प्रयास करते रहे हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।