भारतीय मूल्यों का सर्वत्र प्रसार होना चाहिए      Publish Date : 05/10/2024

                    भारतीय मूल्यों का सर्वत्र प्रसार होना चाहिए

                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

25 जनवरी 1967 को कोल्लम (केरल) में कुछ बुजुर्ग सज्जन गुरु श्री पन्निकर जी से मिलने के लिए उनके घर आ पहुंचें। उन्होनें श्री पन्निकर जी से शैक्षणिक संस्थानों की गिरती स्थिति की शिकायत की और कहा, ‘‘अब हमें अपने बच्चों को पढ़ने के लिए ईसाई शैक्षणिक संस्थानों में भेजना होगा।’’

इस पर श्री गुरुजी ने कहा, ‘‘इस मानसिकता के लिए माता-पिता जिम्मेदार हैं। शिक्षा की गिरती गुणवत्ता के लिए उन्हें दोष देने का कोई अर्थ नहीं है; हमें अपने बच्चों को अपने संस्थानों में दाखिला दिलाकर गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उन पर दबाव डालना चाहिए। अगर हमारे बच्चे मिशनरी स्कूलों में जाते हैं, तो वे मिशनरी संस्कृति को अपना लेंगे और हमारे स्कूलों की गुणवत्ता और खराब हो जाएगी क्योंकि उनमें केवल मध्यम और निम्न वर्ग के बच्चे ही पढ़ने के लिए जाएंगे।

                                                           

श्री पन्निकर ‘‘लेकिन कॉन्वेंट स्कूलों में बेहतर अंग्रेजी पढ़ाई जाती है और यह पूरी दुनिया में बोली जाने वाली भाषा है।’’

श्री गुरुजी ने कहा कि यह हमारा भोलापन है। अंगेजी कोई अंतरराष्ट्रीय भाषा नहीं है। निकटता के बावजूद, फ्रांस में अंग्रेजी के लिए कोई स्थान नहीं है। श्री पन्निकर जी ने बताया कि अफ्रीका में तो एक दिन में ही अंग्रेजी खत्म हो गई।

श्री गुरुजी के अनुसार म्यांमार और लंका में तो प्राथमिक स्तर से अंग्रेजी पूर्णरूप से हटा दी गई है। लंका गए भारतीय भाषा की समस्या पैदा कर रहे हैं, इसलिए उन्हें वहां से निकाला जा रहा है। हमारी समस्या यह है कि अंग्रेजी के नाम पर हमारे बच्चे भारतीय संस्कृति और जीवनशैली से विमुख और अलग होते जा रहे हैं। श्री पन्निकर जी ने कहा कि कॉन्वेंट में जाने के बाद वे लापरवाह हो जाते हैं।

श्री गुरुजी: हां, बच्चे हमारी संस्कृति को आत्मसात नहीं कर पाते हैं। हमारे घरों में भारतीय मूल्यों का पालन नहीं होता, इसलिए राष्ट्रीय मूल्यों में निरंतर गिरावट आती जा रही है। मैं माता-पिता को नैतिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय मूल्यों का पालन न करने के लिए जिम्मेदार ठहराऊंगा। बचपन में हम अपने आप ही स्तोत्र सीख जाते थे, क्योंकि हर घर में वैदिक शास्त्रों का जाप होता था।

                                                                 

इंडोनेशिया में आज भी नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। इस्लाम राज्य धर्म होने के बावजूद भी वे रामायण और महाभारत को नहीं भूले हैं। मैंने उनकी पाठ्य पुस्तकों में इन महाकाव्यों पर आधारित चित्र और कहानियां देखी हैं। बच्चे इन प्रेरक कहानियों के साथ बड़े होते हैं और अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं। उनका दावा है कि इस्लाम को मानने के बावजूद उनकी संस्कृति का प्रवाह भारत में ही हुआ है।

इसलिए वे रामायण और महाभारत को नहीं भूल सकते। सुकर्णा का नाम सुकर्ण है और उनकी पत्नी का नाम पद्मावती है। विपक्षी नेता का नाम सुहार्ता है, जो सुह्रत का विकृत संस्करण है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।