चरित्र निर्माण का प्रारंभ स्वयं से Publish Date : 30/09/2024
चरित्र निर्माण का प्रारंभ स्वयं से
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
परिस्थितियां बदलती हैं तो कार्य का प्रकार भी बदलता है लेकिन कार्य का उद्देश्य नही बदलता है, मूल में उन्ही बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न रहता है जैसे भेदभाव, कमजोरी, अंधानुकरण की मानसिकता और आत्म-सम्मान की कमी। यदि हम इससे परे सोचना चाहें, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि पिछले 1000 वर्षों में किस प्रकार से दुर्गुणों का प्रसार हुआ, चरित्रहीनता, अनैतिकता केवल कुछ अपवादों को छोड़कर व्याप्त हुई। दुर्गुण आज भी समाज में विद्यमान हैं।
हम अपने समाज और अपने राष्ट्र को किस दिशा में और किस ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं इस पर सभी लोग विचार करते हैं। लगभग प्रतिदिन महान लोग नैतिकता और चरित्र निर्माण पर भाषण देते हैं। लेकिन केवल उपदेश देने से चरित्र निर्माण नहीं हो सकता है।
इसके लिए सभी को छोटे या बड़े प्रयत्न करने ही होंगे और वह प्रयत्न स्वयं से प्रारंभ करते हुए अपने लोगों से होते हुए सम्पूर्ण समाज में आगे बढ़ाना होगा। यह एक ऐसी मसाल है जिसे उठाने वाला स्वयं कैसा है इस बात पर उस मसाल़ के प्रकाश की तीव्रता निर्भर करती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।