समुद्री शैवाल की इंटीग्रेटेड मल्टीट्रॉफिक एक्चाकल्चर      Publish Date : 23/09/2024

             समुद्री शैवाल की इंटीग्रेटेड मल्टीट्रॉफिक एक्चाकल्चर

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

(आईएमटीए) में भूमिका एवं उसकी उपयोगिता

एक्वाकल्चर यानी कि जलीय कृषि हाल ही के वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ते खाद्य उत्पादन के क्षेत्रों में से एक है और पौष्टिक आहार को सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जलीय जीव और पौधों के स्रोत खाद्य पदार्थों की वैश्विक आपूर्ति में 52 प्रतिशत तक का योगदान देता है, और इनमें खाद्य कमी को पूरा करने की सम्पूर्ण संभावनाएं विद्यमान है। जलीयकृषि के विस्तार ने कई पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को भी जन्म दिया है। जो इस क्षेत्र की स्थिरता को प्रभावित करते हैं, और इसके आगे के विकास को प्रभावित करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पर्यावरण पर जलीय कृषि का सबसे प्रलेखित प्रभाव पानी और तट का जैविक संवर्धन है। समुद्री पर्यावरण में घुले हुए पोषक तत्वों (अर्थात नाइट्रोजन संबंधी पोषक तत्व) और कणीय कार्बनिक पदार्थ यानी बिना खाया हुआ चारा और मल की डिस्चार्ज प्रतिकूल जैविक और भू-रासायनिक परिवर्तन का कारण बन सकती है, और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को भी प्रभावित कर सकती है।

                                                  

जलीय कृषि उद्योग के लिए एक सतत विकास को सुरक्षित करने और इसके पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए एकीकृत प्रबंधन विधि और कानून की परम आवश्यकता है। जलीय कृषि एक गतिशील अवधारणा है, जो तीन मुख्य सिद्धांतों को एकीकृत करती हैः यानी कि यह आर्थिक रूप से लाभदायक, पर्यावरण के अनुकूल और सामाजिक रूप से न्याय संगत होनी ही चाहिए।

इंटीग्रेटेड मल्टीट्रॉफिक एक्वाकल्चर (आईएमटीए) की अवधारणा को समुद्री मछली-पालन के पर्यावरणीय प्रभावज्ञै। को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए ही प्रस्तावित किया गया है।

ऐसा लग रहा था कि लोगों के लिए मछली-पालन के ज्ञान का उपयोग न केवल दोहरी फसलें पैदा करने के लिए, बल्कि दोहरी आय अर्जित करने के लिए भी करना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। आईएमटीए एक पत्थर से दो निशाने साधने की एक अवधारणा है। यह विविध पोषक तत्वों के प्रवाह के माध्यम से जलीय कृषि के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करके और इसके साथ ही द्वितीयक प्रजातियों के माध्यम से आय के स्रोतों को बढ़ाकर पर्यावरण प्रदूषण और अपर्याप्त लाभप्रदता की समस्याओं से निपटता है।

आईएमटीए का एक लोकप्रिय डिजाइन प्राथमिक खाद्य पदार्थों के मल-मूत्र से पोषक तत्वों का उपयोग करने के लिए मछली जैसी खाद्य प्रजातियों को जैविक-निष्कर्षण प्रजातियों और अकार्बनिक-निष्कर्षण प्रजातियों (जैसे सामान्य समुद्री शैवाल) के साथ एकीकृत कर रहा है।

1970 के दशक में,  वुड्सहोल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन के अनुसंधान समूह ने ‘‘इंटीग्रेटेडवेस्ट-रीसाइक्लिंग समुद्री पॉलीकल्चर सिस्टम’’ विकसित किया, जिसे आधुनिक आईएमटीए का पितामह माना जाता है। उन्होंने विभिन्न पोषी स्तर के जीवों को संयोजित किया जिससे आईएमटीए समुद्र की मूल अवधारणा का एहसास हो।

शैवाल एक बहुकोषीय, प्रकाश संश्लेषण करने वाला पौधा होता है। जिसकी प्रमुख रूप से तीन प्रजातीयां (लाल, भूरी एवं हरी) प्रचलित है इनमें से लाल शैवाल की खेती समान्यतः व्यावसायिक रूप से की जाती है।

लाल शैवालों में मुख्यतः कप्पाफाइकस एवं ग्रेसिलेरिया की खेती कैरिजिनान और आगर जैसे महत्वपूर्ण उत्पादों के निष्कर्षण के लिए किया जाता है। ग्रेसिलेरिया की खेती झींगा के साथ अच्छी और लाभकारी सिद्ध हुई है। 600 ग्राम समुद्री शैवाल 200 ग्राम झींगा कल्चर के पानी से 14 प्रतिशत फॉस्फेट, 25 प्रतिशत अमोनिया और 22 प्रतिशत नाइट्रेट निकालने में सक्षम है। इसके अलावा, यह बात स्पष्ट रूप से सिद्ध हो चुकी है कि खुले समुद्र की मछली-पालन प्रणाली में आईएमटीए के उपयोग से समुद्री शैवाल, कप्पाफाइकस एल्वारेज़ी का उत्पादन 50 प्रतिशत तक बढ़ गया था।

मछली और समुद्री शैवाल का एकीकृत उपयोग पोषक तत्वों के आदान-प्रदान को संतुलित करता है और अम्लता, कार्बन डाइऑक्साइड और घुलनशील ऑक्सीजन स्तर जैसे जैविक कारकों को प्रबंधित करने में सहायता करता है।

आईएमटीए के कार्यान्वयन से कल्चर के गंदे पानी को साफ करने और खेती की गई शैवाल की प्रजातियों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। आईएमटीए के सफल उपयोग द्वारा समुद्री जल में पोषक तत्वों के स्तर को बनाए रखने और बड़े पैमाने पर समुद्री शैवाल की खेती को प्रोत्साहित करने में भी मदद मिल सकती है। मछलियाँ नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्वों का उत्सर्जन करती हैं, इन पोषक तत्वों का उपयोग समुद्री शैवाल द्वारा किया जा सकता है।

जलीय कृषि द्वारा निर्मित गंदे पानी में समुद्री शैवाल की खेती को एक महत्वपूर्ण एवं पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रिया मानी जा सकती है, जहां बायोमास मूल्यवान यौगिकों का एक स्रोत बन जाता है। मल्टी-ट्रॉफिक एक्वाकल्चर (आईएमटीए) प्रणालियों को एकीकृत करने में समुद्री   कृषि में गंदे जल के साथ समुद्री शैवाल उत्पादन का युग्मन शामिल है, जिससे उपयोग द्वारा जल में से अकार्बनिक पोषक तत्वों की मात्रा कम हो जाती है।

प्रणालियों को एक प्रकार का पर्यावरण-अनुकूल पेशा माना जाता है क्योंकि वे जलीय कृषि उद्योग के दुष्प्रभावों को कम करते हैं, और शैवाल बायोमास की खेती के माध्यम से मछली उत्पादन की लाभ प्रदता को बढ़ाते हैं जिसे विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है। अपशिष्ट जल में से घुले पोषक तत्वों को शैवाल अल्ट्रा बायो-फिल्टर के रूप में सर्वाधिक उपयोगी पाया गया है। आईएमटीए प्रणालियों में उल्वा के द्वारा अमोनिया को हटाने की दक्षता 80 प्रतिशत से अधिक तक पहुंच सकती है, जो कि समुद्री कृषि से निर्मित होने वाले गंदे जल की गुणवत्ता को काफी हद तक कम कर सकती है।

शैवाल समुद्री कृषि के द्वारा निर्मित खराब पानी मे से, हानिकारक पोषक तत्वों को निकालकर और उन्हें बायोमास में परिवर्तित करके बायो-रेमेडियेटर्स के रूप में कार्य कर सकता है। पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर, शैवाल की प्रजातियों के द्वारा पोषक तत्वो का ग्रहण प्रदर्शन और उनकी विकास दर भिन्न भी हो सकती है।

                                                                     

खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता, स्वास्थ्य, पशु कल्याण और पर्यावरण के जैसे मुद्दे हाल ही के वर्षों में समुद्री भोजन उपभोक्ताओं और आम जनता के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं, खासकर जलीय कृषि के संबंध में मोनो-कल्चर से एकीकृत मल्टी-ट्रॉफिक एक्वाकल्चर (आईएमटीए) की ओर बढ़ने से इन मुद्दों से संबंधित जनता की कुछ चिंताओं का समाधान हो सकता है। विभिन्न अध्ययनों के द्वारा ज्ञात होता है कि उपभोक्ता, और वास्तव में आम जनता आईएमटीए जैसी अधिक टिकाऊ जलीय कृषि उत्पादन प्रणालियों के समर्थक हैं।

सामान्य रूप से जलीय कृषि और विशेष रूप से आईएमटीए के बारे में आम जनता की धारणाएं बहुत ही सकारात्मक रही है। इसके अलावा, यह अध्ययन उन कारकों की भी पहचान करता है, जिन पर आईएमटीए की सार्वजनिक मान्यता को आगे बढ़ाने पर विचार किया जाना चाहिए। एक सर्वे के अनुसार जिसमें मुख्यतः पाँच देश (आयरलैंड, इज़राइल, इटली, नॉर्वे और यूके) सम्मिलत है, और जिसका उद्देश्य जलीय कृषि के लाभों और उसके प्रभावों की सार्वजनिक समझ, आईएमटीए का ज्ञान और जनसांख्यिकीय जानकारी को एकत्र करना था।

अध्ययन ने निर्धारित किया कि यूरोपीयन आम जनता में जलीय कृषि के बारे में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही धारणाएं विद्यमान हैं और वे विभिन्न प्रकार के भौगोलिक और जनसांख्यिकीय लक्षणों से प्रभावितभी हैं। अध्ययन के द्वारा एकीकृत जलीय कृषि की अवधारणा की सकारात्मक धारणाओं के साथ-साथ आईएमटीए के बारे में जागरूकता की कमी की भी पहचान की।

इसके परिणामों के आधार पर, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आईएमटीए की भूमिका के बारे में सार्वजनिक जागरूकता को आगे बढ़ाने की एकदम स्पष्ट गुंजाइश है और इसे जलीय कृषि अभ्यास की मुख्यधारा की स्वीकृति हासिल करने के लिए यह एक आवश्यक कदम माना जाएगा।

                                                            

हाल में ही विभिन्न शोधों की जानकारी से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी है कि समुद्री शैवाल की खेती में बीज की उपलब्धता अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। अतः बीजों का संरक्षण सुचारु रूप से करना, शैवाल की खेती को करने में अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रायः बीजों का संरक्षण मॉनसून के दौरान ही किया जाता है। परंतु सीजन के समाप्त होते-होते बीज बहुत ही अल्प मात्रा में बच पाता है, जिसके चलते शैवाल की खेती करने वाले किसानों को बीज के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। यदि हम चीजों को आइएमटीए के माध्यम से मॉनसून के दौरान बचाकर रखें तो इस समस्या से काफी हद तक निजात पा सकते हैं।

भारत विश्व में जलीय कृषि के माध्यम से मछली उत्पादन करने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण देश है। वैश्विक मछली विविधता का लगभग 10 प्रतिशत भाग भारत से ही प्राप्त होता है। वर्तमान में, देश लगभग 9.06 मिलियन मैट्रिक टन के वार्षिक मछली उत्पादन के साथ कुल मछली उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर टिका हुआ है। मत्स्य-पालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने अब तक के सबसे अधिक निवेश के साथ भारत में मत्स्य-पालन क्षेत्र के सतत और जिम्मेदार विकास के माध्यम से नीली-क्रांति ;ठसनम त्मअवसनजपवदद्ध लाने के लिए एक प्रमुख योजना ‘‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना लागू की है।

                                                             

इसके तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक प्रभावी पांच वर्षों की अवधि के लिए लगभग 20,050 करोड ़रुपये की स्वीकृति भी प्रदान की गयी है। यदि आईएमटीए के माध्यम से इस योजना का लाभ शैवाल की खेती के लिए भी किया जाए तो यह अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। आईएमटीए भारतीय आपात तटीय जलीय कृषि के लिए तो एक अत्यंत प्रभावशाली अवसर है और यह आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ प्रदान करता है। आईएमटीए एक महत्वपूर्ण विकल्प है जो अपशिष्ट उत्पादों को मूल्यवान-सह-उत्पादों में परिवर्तित कर उनका उपयोग करता है।

यह स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी बहाल करता है, जिससे इस प्रकार के उत्पादों लाभ प्रदता बढ़ जाती है, और इसके साथ ही अन्य सामाजिक लाभ भी मिलते हैं। एक मजबूत सरकारी उपक्रमण, तकनीकी प्रगति और विशाल संसाधन आधार के साथ, भारत स्वयं को एक वैश्विक जलीय कृषि पावर हाउस के रूप में स्थापित कर सकता है। यद्यपि, पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करना, रोग प्रबंधन सुनिश्चित करना और समावेशी विकास को बढ़ावा देना इस क्षेत्र की पूरी क्षमता को पूर्ण रूप से साकार करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होगा।    

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।