खेती करने के नए आयाम

                              खेती करने के नए आयाम

                                                                                                                                               प्रोफेसर आर. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

2 किलोग्राम दही, 25 किलो यूरिया के बराबर करता है काम!

                                                          

हाल के दिनों में यूरिया की किल्लत से परेशानी की खबर देश के हर जिले से आ रही है। घंटों मशक्कत के बाद भी किसानों को 1-2 बोरी यूरिया मिलने में भी परेशानी आ रही है। इस तरह की परेशानियों का सामना करने वाले सभी किसान भाइयों के लिए एक बड़ी खुशखबरी सामने आयी है।

दरअसल किसान भाई अपनी खेती में दही का उपयोग करके, यूरिया सहित अन्य उर्वरकों पर आने वाले खर्च की रकम को बचा सकते हैं।

दही का उपयोग करने के होते हैं कई लाभ

                                                         

दही का उपयोग करने से खेती में लगने वाली लागत का 95 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है और इसके साथ ही कृषि उत्पादन में कम से कम 15 प्रतिशत की वृद्धि भी होती है। दही के लाभों को देखकर, जिले के कई किसानों ने अब इसकी ओर रुख किया है। खासतौर से तब, जब से इसके प्रयोग को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और गुजरात के कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा भी अनुशंसित किया गया है। दही का उपयोग अब खेत में धड्ल्ले से किया जा रहा है।

पानी की बचत

यदि किसान अपने खेतों में दही का उपयोग करते हैं तो उन्हें 15 दिनों तक सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए यह प्रति एकड़ 1000 रुपये बचाते है। रासायनिक उर्वरक की प्रति एकड़ लागत रु 1100 तक की आती है, लेकिन दही की कीमत मात्र 110 रुपये प्रति 2 किलो दूध होती है। इसी प्रकार कीटनाशकों पर 1500 रुपये प्रति एकड़ खर्च की बचत भी होता है। देखा जाए तो, एक किसान को प्रति एकड़ 1100 $ 1500 बराबर 3600 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन यह सारा काम केवल 155 रुपये की मामूली लागत पर दहीं से आसानी से हो जाता है।

दही कैसे बनाये

दही बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन में देशी गाय का दो लीटर दूध डालें। दो किलो दही में एक तांबे का टुकड़ा या एक तांबे का चम्मच डुबोएं और इसे 8 से 15 दिनों के लिए ढककर छाया में रखें। इसमें हरे रंग का तार होगा। तांबे या पीतल को धोकर दही में मिलाएं। 5 लीटर मिश्रण बनाने के लिए दो किलो दही में 3 लीटर पानी मिलाएं। एक एकड़ में एक पंप द्वारा बनाए गए इस मिक्षण का छिड़काव किया जाता है। फिर 1 एकड़ में फसल पर पानी छिड़का जाता है। ऐसा करने से पौधे 25 से 45 दिनों तक हरे बनें रहेंगे। नाइट्रोजन की अब जरूरत नहीं है, फसल हरी हो जाएगी।

2 किलो दही के प्रयोग से 25 किलो यूरिया बचता है-

                                                            

उत्तर बिहार में 1 लाख किसान यूरिया की जगह अब दही का इस्तेमाल ही कर रहे हैं और इससे अनाज, सब्जी और बागों के उत्पादन में भी 25 से 30 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। 30 मिलीलीटर दही के मिश्रण में एक लीटर पानी में डाला जाता है। दिल्ली और उसके आसपास, 9 साल से यूरिया के बजाय दही का उपयोग किया जा रहा है।

सभी फसलों के लिए उपयोगी है दही

दही, लगभग सभी प्रकार की फसलों जैसे मक्का, गेहूं, आम, केला, सब्जियां, लीची, धान और गन्ना सभी फसलों पर छिड़का जा सकता है।

गार्डन

बगीचे में फूल आने से 25 दिन पहले दही पानी का उपयोग किया जाता है। यह बगीचों को फास्फोरस और नाइट्रोजन प्रदान करता है। दही का प्रयोग करने से फसल पर जैविक पदार्थ तैयार हो जाएगा और सभी फल एक समान एवं एक ही आकार के होते हैं।

मक्खन

                                                                 

छाछ से निकलने वाला मक्खन एक कीट नियंत्रक के रूप में काम करता है। इसके लिए जहरीले मक्खन में वर्मीकम्पोस्ट डाल कर उसे पौधे की जड़ों में रगड़ें। इस प्रयोग से कीड़े-मकोड़े और कीट दूर हो जाते हैं। हालांकि, विषाक्त पदार्थों के बारे में पूरा ज्ञान होना भी अपने आप में महत्वपूर्ण होता है।

निस्संक्रामक

यदि किसान इस मिश्रण में दही के साथ मेथी का पेस्ट या नीम का तेल भी मिलाते हैं और इसका प्रयोग एक कीटनाशक के रूप में करते हैं, तो फसल को फंगस नहीं लगता है। ऐसा करने से नाइट्रोजन प्रदान करता है, कीटों को समाप्त करता है और अनुकूल कीटों को बचाता है।

मिट्टी में खाद

दही का उपयोग मिट्टी में भी किया जा सकता है। 2 किलो दही प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें । मिट्टी में माइक्रोबियल दर अधिक है। ऐसा करने से सभी फसलों का उत्पादन 25-30 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। दही का उपयोग पंचगव्य में भी किया जा सकता है।

पानी की खपत कम हो जाती है

गर्मी में दही में 300 ग्राम, पानी में 300 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर छिड़कने से फसल को 15 दिनों तक पानी की जरूरत नहीं होती है।

कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली

जैसा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने मार्च 2017 में इस नवाचार को मान्यता दी थी, मुजफ्फरपुर के किसानों को दही की खेती करके सम्मानित किया गया था।

भारत में, सालाना 500 लाख टन उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। उपर वर्णित अनुभव किसानो का है। अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि कृषि अधिकारी से जानकर ही इसका उपयोग करना चाहीए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।