चंद्रयान-3 का जलवा, चांद के बारे में खोला ऐसा राज; जिससे सब हैं हैरान

चंद्रयान-3 का जलवा, चांद के बारे में खोला ऐसा राज; जिससे सब हैं हैरान

                                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य

हाल ही में मैगजीन इकारस में छपे एक रिसर्च में चंद्र भूकंपीय गतिविधि उपकरण (इल्सा) के दर्ज किए गए 190 घंटों के आंकड़ों का कच्चा-चिट्ठा है। ‘इल्सा’ उन पांच अहम वैज्ञानिक उपकरणों में से एक है, जिन्हें चंद्रयान-3 के ‘विक्रम’ लैंडर और ‘प्रज्ञान’ रोवर अपने साथ लाँच किया गया था।

                                                                       

इससे वैज्ञानिकों को मिली एक बड़ी जानकारी का खुलासा किया गया है। चंद्रयान-3 के भूकंप का संकेत देने वाले उपकरणों से जो आंकड़े मिले हैं, उसका इसरो के वैज्ञानिकों ने विश्लेषण किया, जिसमें कई अहम बातें पता चली हैं। प्राप्त जानकारियों के अनुसार चांद की मिट्टी में भूकंपीय गतिविधि अतीत में उल्कापिंडों के प्रभाव या स्थानीय गर्मी से संबंधित प्रभावों के कारण हो सकती है। वैज्ञानिकों ने कहा कि डेटा से अधिक जानकारी हासिल करने के लिए और बड़े स्तर पर स्टडी करने की आवश्यकता होगी।

मैगजीन इकारस में छपे रिसर्च में चंद्र भूकंपीय गतिविधि उपकरण (इल्सा) के दर्ज किए गए 190 घंटों के आंकड़ों का विवरण मौजूद है। ‘इल्सा’ उन पांच अहम वैज्ञानिक उपकरणों में से एक है, जिन्हें चंद्रयान-3 के ‘विक्रम’ लैंडर और ‘प्रज्ञान’ रोवर के साथ लाँच किया गया था।

पिछले साल की गई थी चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग

                                                         

चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल और सॉफ्ट लैंडिंग की थी। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि भूकंप का पता लगाने वाले इल्सा को 2 सितंबर, 2023 तक लगातार ऑपरेट किया गया, जिसके बाद इसे बंद कर वापस पैक कर दिया गया था। इसके बाद लैंडर को शुरुआती पॉइंट से लगभग 50 सेंटीमीटर दूर एक नए पॉइंट पर ट्रांसफर कर दिया गया।

वैज्ञानिकों ने बताया कि इल्सा ने चांद की सतह पर लगभग 218 घंटे काम किया, जिसमें 190 घंटों का डेटा उपलब्ध है। स्टडी के राइटर्स ने लिखा, ‘हमने 250 से ज्यादा खास संकेतों की पहचान की है, जिनमें से लगभग 200 संकेत रोवर की भौतिक गतिविधियों या वैज्ञानिक उपकरणों के संचालन से जुड़ी गतिविधियों से संबंधित हैं।’

स्टडी में क्या आया सामने

                                                             

रिसर्च के लेखकों ने लैंडर या रोवर की गतिविधियों से नहीं जोड़े जा सके 50 संकेतों को आपस में जुड़ी हुई घटनाएं नही माना है। उन्होंने लिखा, ‘इल्सा के ना जुड़े हुए संकेत शायद उपकरण की निकटवर्ती सीमा पर सूक्ष्म उल्कापिंडों के प्रभाव, मिट्टी पर स्थानीय तापीय प्रभाव, या लैंडर उप-प्रणालियों के भीतर तापीय समायोजन के कारण भी हो सकते हैं।’

सूक्ष्म उल्कापिंड एक बहुत छोटा उल्कापिंड या किसी बड़े उल्कापिंड का अवशेष होता है, जिसका व्यास आमतौर पर एक मिलीमीटर से भी कम होता है। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि अपने संचालन के दौरान इल्सा ने तापमान में (माइनस) 20 डिग्री सेल्सियस से लेकर (प्लस) 60 डिग्री सेल्सियस तक व्यापक परिवर्तन भी दर्ज किया है।

लेखकों ंने बताया कि इल्सा के डेटा के संभावित स्रोतों को समझने के लिए बड़े स्तर पर इनकी स्टडी करनी होगी। इल्सा चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र से भूकंपीय डेटा रिकॉर्ड करने वाला पहला और चार दशक पूर्व नासा के अपोलो मिशन के बाद चंद्रमा पर जमीनी हलचल रिकॉर्ड करने वाला दूसरा उपकरण है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।