कहानी कुंदरू की Publish Date : 11/09/2024
कहानी कुंदरू की
कुंदरू गाँव देहात की एक प्रमुख सब्जी है, और यह एक महत्वपूर्ण दवा भी है।
इस ललचाने वाले अनाज के घुमक्कड़ी भोज की आज मैं यहाँ चर्चा छेड़ रहा हूँ, क्योंकि जब विचार न आयें तो फिर हमारे देश के भोजन इस राह को आसान बनाते हैं। मेरी दादी कहती थी कि दिमाग की नस पेट से होकर गुजरती है। पेट खाली है तो अक्ल भी घास चरने चली जाती है।
चलिये आज का मीनू बताता हूँ। इसमें है मिक्स वेज (कुंदरू, आलू, गोभी, बैगन, गाजर, टमाटर), दाल, कढ़ी, चावल, सलाद और रोटी साथ मे मंगोड़े और पापड़ भी। वैसे तो पढ़े लिखे समझदार लोग दर-दर भटकने को अच्छा नही मानते हैं, लेकिन वो मजबूरी वाले भटकने के लिए सत्य है। मुझ जैसे मनमोजियो के लिये भटकना किसी तीर्थ यात्रा से कम नही है। लगातार नये नये लोगो से मित्रता तो होती ही है, साथ ही साथ हमारे भारत की गौरवशाली भोजन परंपरा से मन को तृप्त कर देने वाले व्यंजनो को ग्रहण करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो जाता है। अपने सभी अनुभवों को किसी और दिन उपयुक्त मंच पर साझा करूँगा, फिलहाल यहाँ ज्वार के बनाये हुए इन खट्टे और चटपटे पापड़ की चर्चा छेड़ रहा हूँ, जो फ़ोटो में भी कट से गये है।
संभवतः कोई महाराष्ट्रीयन मित्र इस चर्चा को आगे बढ़ाये। सामान्यतः इन्हें इस क्षेत्र में मूंगफली के दानें के साथ स्वल्पाहार के रूप में परोसा जाता है, और भोजन के साथ भी।
कुंदरू की सब्जी बनाना बहुत ही आसान है। सर्वप्रथम कुंदरू को गोल या लंबे जैसा चाहें पतले-पतले पीसेस में काट लें। कढ़ाई पर मीठा नीम, जीरा, राई आदि मसालों के साथ बघार लगाएं और इसमें कटी हुई प्याज, लहसुन डाल दें। प्याज को सुनहरी होने तक भूने, इसके बाद इसमें काटे हुये कुंदरू के टुकड़े डाल दें। अच्छी तरह पकने दें और अंत मे हल्दी, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर डाल दें और पुनः पकने दें। कुंदरू की सब्जी तैयार है। आप चाहें तो इसके साथ बैगन, आलू, सेम आदि प्रयोग कर मिक्स वेज भी बना सकते हैं।
आइए जानते हैं कुंदरू के विषय मे गाँव के झरोखे से। इसका पौधा पुराने समय में लगभग सभी भारतीय किसानो के घर पर आसानी से मिल जाता था, यह एक बहुवर्षीय बेल है, जिसकी शाखाएं प्रतिवर्ष सूख जाती हैं, और जड़ो का कंद जीवित रहता है जिससे प्रतिवर्ष नयी बेल आ जाती है, इससे लगभग छः माह तक फल प्राप्त किये जा सकते है।
हमारे भी पुराने घर में दादी के आँगन में साल भर कुंदरू की बेल का मंढ़ा डला रहता था। साल भर ताजी सब्जी मिलती थी, सेहद तो बोनस में था। दादी के जाने के बाद अब यह केवल खेत में और बाड़ों में ही बची है, लेकिन उतनी तनदुरुस्त बेल नहीं है जितनी कि दादी के ज़माने में हुआ करती थी।
नए जमाने के बहुत से वैज्ञानिको ने अपनी शोध में दावा किया है कि, इसके फलो और पत्तियों में चमत्कारिक औषधीय गुण पाये जाते हैं। खासकर मधुमेह (डाइबिटीज) के रोग में तो यह एक रामबाण औषधि है। इसके अलावा यह वात रोग, पीलिया, पेट संबंधी रोग और कफ आदि के रोग में भी बहुत कारगर सिद्ध हुई है। मुँह के छालों के लिए भी कुंदरू एक महत्वपूर्ण दवा है। छाले हो जाने पर 2-4 कच्ची कुंदरू चबाकर खा लें, मजा भी आयेगा और बाद के लिए मुँह भी मजे करेगा। छाले की जलन या दर्द गायब हो जाएगी।
एक बात जो दादी कहती थी वो मुझे कभी हजम नहीं हुयी। इसके कच्चे फल भी बहुत स्वादिस्ट होते है, इस कारण हम लोग पूरी बेल को नोचकर, उससे फल तोड़कर खा जाया करते थे, तब दादी जोर से चिल्लाती थी कि ज्यादा मत खाओ रे, ज्यादा खाओगे तो बहरे हो जाओगे। आपके विचार करने के लिए अब इस विषय को अधूरा छोड़ रहा हूँ। सोच समझकर बताइयेगा।
इसकी कोमल पत्तियों को साग की तरह, पुरानी पत्तियों का काढ़ा बनाकर या पाउडर बनाकर उपयोग किया जा सकता है। फल तो सलाद में कच्चे और सब्जी बनाकर प्रयोग किये ही जाते हैं।
अब हमारे बहुत से मित्रों के मन मे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या वाकई में कुंदरू खाने से बहरे हो जाते हैं या फिर जैसा कि इसके नाम मे छिपा हुआ है, कि इसे खाने से मंद बुद्धि हो जाते हैं। (कुंद= धीमा, कम सक्रिय $ अरु= तेज, सूर्य समान, सक्रियता, दिमाग) या फिर (कुंद= धीमा, कम सक्रिय$ रूह= दिखाई देने वाले शरीर का न दिखाई देने वाला भाग / आत्मा/ मन/ दिमाग)।
क्या सही है और क्या गलत, आइये इसे विज्ञान और संस्कृति की कसौटी पर परखते हैं। पहले बात करते हैं कि क्या नाम से भी किसी के गुण को स्पष्ट किया जा सकता है? या नामों में गुणों का रहस्य होता है, तो मेरा जबाब है - जी हाँ। समाज और संस्कृति से लेकर विज्ञान आदि सभी मे गुणों के आधार पर नाम रखने की परंपरा प्रारम्भ से लेकर आज तक है।
आधुनिक वर्गिकी नामकरण में भी ऐसा ही होता है। अब चलिये एक बार मान लेते हैं कि शायद ऐसा न हो तो। तब उस समय ऐसा कहना उचित होगा कि इसकी लता से फलों को टूटने, बच्चो द्वारा खेल खेल में खा लेने या तथागत चोरी से बचने के लिये ये बातें प्रचलन में आई होंगी। लेकिन बिना विज्ञान का पक्ष जाने अभी कोई भी निष्कर्ष अधूरा ही रहेगा।
आधुनिक शोधों के अनुसार विज्ञान कहता है कि कुंदरू के पौधे में:-
Aspartic acid, Glutamic Acid, Asparagine, Tyrosine, Histidine, Phenylalanine And Threonine Valine Arginine आदि पाये जाते हैं, इसी तरह इसकी जड़ों में starch, fatty acids, triterpenoid, resin, β-amyrin, carbonic acid, saponin coccinoside, alkaloids, flavonoid glycoside, taraxerol lupeol and β-sitosterol आदि रसायन भी पाये जाते हैं। इन्ही रसायनों के कारण इसकी medicinal property होती है। हम यहाँ 2 मुख्य भ्रान्ति विषयों पर इसकी चर्चा कर रहे हैं-
1.) क्या इसे खाने से व्यक्ति का दिमाग कमजोर हो जाता है-
इसमें पाये जाने वाले तत्व threonine का प्रयोग तनाव और चिंता कम करने वाली औषधि की रूप में किया जाता है। तनाव कम करने वाली औषधियों का स्वभाव यह है कि वे दिमाग की सक्रियता को एक निर्धारित समय तक कम करके व्यक्ति को सुकून प्रदानं करती हैं। इसी तरह इसमें पाया जाने वाला Taraxarol का memory impairment एजेंट है जो दिमाग को शिथिल कर देता है।
2) क्या इसे खाने से बहरे हो जाते हैं?
दिमाग के साथ नाक, कान और गले का सीधा संबंध होता है। यह दिमाग को मंद कर देने जैसे रसायनों से युक्त एक फल है। अतः इसका लगातार सेवन से यह परिवर्तन आ सकता है, किन्तु प्रयोगों के आधार पर इस बात के आज तक कोई प्रमाण नही मिला हैं।
अब अंत में आपको बता दूँ कि छाले में आराम taraxacol ds antimicrobial vkSj anti inflamatory गुणों के कारण होता है। इसके साथ साथ अंसपदम एनर्जी लेवल बढ़कर, दर्द सहन करने की क्षमता बढ़ाता है और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं तथा मांसपेशियों को जल्द से जल्द रिपेयर करने में मदद करता है। तो कुंदरू की यह गणित आपको कैसी लगी।
सामान्य नाम- कुंदरू
अन्य नाम- गोलिओ, तितोड़ी
Scientific name- Coccinia_indica / grandis
Eng. Name- Ivy guard scarlet gourd, tindora and kowai fruit.
Family- Cucurbitaceae