जीवामृत बनाने का तरीका Publish Date : 12/08/2024
जीवामृत बनाने का तरीका
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं हिबिस्का दत्त
1- देशी गाय का गोबर 10 किलो यानि एक दिन का एक गाय का गोबर।
2- 10 लीटर गौमूत्र (गोबर ताजा और गौमूत्र जितना पुराना होगा उतना ही अच्छा परिणाम देगा)।
3- 1 से 1.5 किलो दलहन का आटा न कि दाल का यानि छिलके सहित।
4- 1 से 1.5 किलो गुड बिना कैमिकल वाला।
5- एक मुट्ठी मिट्टी बिना कैमिकल वाली।
6- 180 लीटर पानी ।
उपरोक्त सभी सामग्री एक खाली ड्रम मे डाल कर मिला दे और किसी डंडे की सहायता से घडी की दिशा मै सुबह शाम घुमाएं। इसके बाद जूट का बोरा ढक कर रखे और इस घोल में बर्षा का पानी न जाने पाए तथा धूप मे इसे खुला न छोडे।
आज के मौसम मे 3 से 4 दिन मे होगा तैयार
प्रारम्भ मे एक ड्रम जीवामृत हर 15 दिन मे आधा एकड खेत मे जरूर दे पहली ही साल मे चमत्कार होगा।
प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत बनाने की तकनीक
आप यदि रासायनिक खेती भी कर रहे हैं तो भी आप जीवामृत या घन जीवामृत का प्रयोग करना शुरु कर दें। धीरे धीरे आपके खेत में बीमारियां आना बंद हो जाएंगी। उर्वरक की मात्रा भी घटती जाएगी। सिंचाई कम करनी पड़ेगी। जमीन में जो भी एन पी के पहले से मौजूद है वह भी घुलनशील अवस्था में आने लगेगा। केंचुए सक्रिय होते जाएंगे।
जीवामृत व घन जीवामृत बनाने के लिए यदि देशी गाय का गोबर न भी मिले तो आप भैंस का गोबर ही इस्तेमाल करें। तमाम क्षेत्र में गाय के बजाय लोग भैंस ही पालते हैं उसका कारण है कि भैंस का दूध महंगा बिकता है, उसमें फैट ज्यादा होता है। डेरी वाले व हलवाईं ज्यादा पसंद करते हैं। उनका पंणवा व पडिया बहुत ही महंगे दामों पर बिकता है उनसे भैंस को छोड़कर यदि गाय पालन करने को कहा जाय तो वे कदापि नहीं मानेंगे। एक कहावत है :Something is better than Nothing: अर्थात गाय का गोबर न मिले तो आप जीवामृत ही न बनाएं यह बात उचित नहीं है बल्कि आप जीवामृत बनाएं भले ही भैंस के गोबर व गोमूत्र से ही बनाएं।
ध्यान रहे गाय, भैंस, बकरी, भेंड़ यह सभी गोंडवाना लैंड या भारतीय व अफ्रीका महाद्वीप के ही पशु हैं। हर पशु के आमाशय में जीवाणु पाए जाते हैं। दुनियाभर में तमाम ऐसे देश हैं जहां पर देशी गाय नहीं पायी जाती है तो वहां जो भी पशु उपलब्ध हैं उन्हीं के गोबर से जीवामृत बनेगा। कोई भी सिद्धान्त एक देश विशेष नहीं बल्कि पूरी दुनियाभर के लिए एक सा होता है।
सत्य यह है कि खेती की जोत लगातार घटती ही जा रही है, हर गांव में पशुओं की संख्या भी घटती जा रही है। किसानों की प्रति एकड़ आमदनी भी लगातार घटती जा रही है। किसान अपनी बेटी की शादी खेती करने वाले के बेटे से नहीं करना चाह रहा है। कितना भी कंटीला बाड लगाओ आवारा पशु आकर फसल को चर ले रहे हैं। रातभर लोग मंचान पर बैठकर मच्छर कटवा रहे हैं। सांड़, सूअर लोगों को उनका पेट फाड़कर मार डाल रहे हैं या आजीवन विकलांग बना दे रहे हैं आदि तमाम समस्याओं पर गहन चिंतन करने की जरूरत है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।