बारिश की एलर्जिक बीमारियां

                               बारिश की एलर्जिक बीमारियां

                                                                                                                                                                डॉ0 दिव्यांशु सेंगर एवं मुकेश शर्मां

वर्षाकाल मनभावन मौसम कहलाता है। इस अवधि में उमड़ते, घुमड़ते, चमकते, गरजते एवं बरसते बादलों से मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो उठता है। क्या काल की इस आनन्दमय अवधि को एलर्जिक बीमारियां पीड़ादायक बना देती हैं। बारिश एलर्जिक बीमारियां साथ लेकर आती हैं। इन दिनों गले, आंखों की एलर्जी, खांसी, जुकाम, सांस और जोड़ों की पीड़ा बढ़ जाती है।

                                                                             

वर्षाकाल का प्रवेश जून मास के तापमान में सतत उत्तार पहाय लाता है। इसके बाद जुलाई, अगस्त में झड़ीदार बारिश होती है। जबकि अक्टूबर, नवंबर में खुशनुमा सुहावना मौसम होता है। यदा कदा हवा से ठंडी सिरहन होती है। इतने सब उतार-चढ़ाव के बाद भी हमारी दिनचर्या एवं खानपान, रहन-सहन गर्मी जैसा रहता है। हम उसमें ऋतु के अनुरूप बदलाव नहीं लाते जबकि वर्षाकाल के समय शरीर नाजुक होता है, जिसमें अनेक रोगों के साथ एलर्जिक बीमारियों व जोड़ों में दर्द की शुरूआत होती है।

एलर्जिक बीमारियां वर्षा काल में तापमान में कमी के कारण बैक्टीरिया, वायरस अर्थात जीवाणुओं, कीटाणुओं को पनपने का अवसर मिलता है।

तब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी के कारण इनका प्रभाव बढ़ जाता है जिससे हर कोई संक्रमित होता है। इस समय गले की एलर्जी और सांस लेने की तकलीफ बढ़ जाती है।

वसा रहित दूध से घटता है मोटापा

दूध से मिलने वाले घी एवं मक्खन के अधिक सेवन से शरीर में वसा की मात्र बढ़ जाती है। शारीरिक व्यायाम कर इसको खर्च नहीं करने से मोटापा एवं कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है, जबकि दूध एवं दही विटामिन डी एवं कैल्शियम का बड़ा एवं महत्त्वपूर्ण स्रोत है। ये हड्डियों एवं मांसपेशियों को सशक्त बनाने में सहायक हैं। वहीं एक शोध के मुताबिक वसा रहित यानी बिना मक्खन घी वाले दूध का सेवन सभी के लिए लाभदायक होता है।

यह वसारहित दूध मोटे लोगों के वजन को 70 प्रतिशत कम कर देता है। ऐसे दूध में मौजूद विटामिन डी, न सिर्फ हृदय रोगों की संभावना को रोकता है अपितु यह कमर दर्द, अवसाद व तनाव के मामले में राहत पहुंचाते है। वसा रहित दूध कई तरह के कैंसर को रोकने में भी सहायक सिद्ध होता है।

कैसे कंट्रोल करें हाई ब्लड प्रेशर

  • रिसर्च दर्शाते हैं कि पोटेशियम भी बीपी लो करता है। अमेरिकी डायटीशियन जेम्स वेल्स की मानें तो हाई ब्लड प्रेशर की मरीजो को कम से कम 200 मिलीग्राम पोटेशियम रोज लेना चाहिए। एक आलू में 844 मिलीग्राम और एक केले में 451 मिलीग्राम पोटेशियम है। संतरा और दूध में भी काफी पोटेशियम होता है।
  • उच्च रक्तचाप चूंकि लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी ज्यादा मानी जाती है तो इससे संबंधित कुछ बातों को भी ध्यान में रखा जाए तो अच्छा होगा। हंसना अच्छे स्वास्थ्य का पासपोर्ट है। ऐसी फिल्में, प्रोग्राम्स, सीरियल्स देखिए जो आपको हंसी से दोहरा कर दें तनाव कम होगा तो बी पी भी कम होगा।
  • क्रोध बीपी का दुश्मन है। चीखने चिल्लाने, टैपर लूज करने से बीपी एकदम बढ़ता है। बोली में मिठास घोलकर मुलायम स्वर में बोलने की आदत डाल लेंगे तो झगड़े भी कम होंगे और क्रोध भी दूर रहेगा।
  • एरोबिक व्यायाम हाई ब्लड प्रेशर से बचाता है, तनाव दूर करता है। मनोवैज्ञानिक डॉक्टर सिगमैन के अनुसार पूरे दिन में कम से कम आधा घंटा सिर्फ अपने लिए निकालिए। इस समय आप अपना मनपसंद कुछ भी काम कर सकते हैं बशतें उससे आपका मनोरंजन हो और आप रिलेक्स फील करें।
  • रिसर्च बताते हैं कि मोटापा कम करने से बीपी लो होता है। एक स्टडी के मुताबिक हाई ब्लड प्रेशर के 50 प्रतिशत पेशेंट्स को वजन कम करने के बाद दवा लेने की जरूरत ही नहीं रही।
  • तनाव आधुनिक जीवन का एक हिस्सा बन चुका है। अब यह आप पर निर्भर करता है आप इसे कैसे मैनेज करें। लगातार काम न करें। इसी तरह टीवी के आगे घंटों चिपके न बैठे, बीच में ब्रेक लेना, थोड़ा हल्का फुल्का व्यायाम या आंखें मूंद कर रिलेक्स करना अच्छा रहेगा।
  • आजकल मेडिटेशन की अहमियत लोग खूब समझने लगे हैं। यह एक अच्छा साइन है। ध्यान से चित्त शांत होता है। एकाग्रता लाने के लिए मन को साधना जरूरी है और ये ध्यान, मेडिटेशन से संभव हो सकता है।
  • इन बातों का अगर ध्यान रखा जाए तो कोई कारण नहीं कि आपका बी पी 120/80 न बना रहे।

लेखक: डॉ0 दिव्यांशु सेंगर, प्यारे लाल शर्मां, जिला चिकित्सालय मेरठ मे मेडिकल ऑफिसर हैं।