उत्पादन बढ़ने से ही होगा दाल के दाम पर नियंत्रण

                       उत्पादन बढ़ने से ही होगा दाल के दाम पर नियंत्रण

                                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षां रानी

अरहर की कीमतों में आया उछाल तो उत्पादन के प्रति किसानों का बढ़ने लगा रुझान

                                                                     

रकबे में हुईं अप्रत्याशित वृद्धि से दाल की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण लगने की उम्मीद है। ऐसे में वर्ष 2027 तक दाल के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ने के भी संकेत मिलने लगे हैं। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार दलहन फसलों के रकबे में तेज वृद्धि हो रही है। पिछले खरीफ वर्ष की तुलना में इस वर्ष अब तक 62.32 लाख हेक्टेयर में दाल की बोआई हो चुकी है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि से 12.82 लाख हेक्टेयर अधिक है। अरहर के रकबे में तीन गुना से भी अधिक वृद्धि हुईं है। चना, मसूर एवं उड़द का रकबा भी बढ़ा है। केंद्र सरकार ने अगले तीन सालों में दाल के मामले में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य तय किया है।

मूंग और चना दाल के मामले में पहले ही देश आत्मनिर्भर हो चुका है। देश में सबसे ज्यादा अरहर (तुअर) दाल की मांग है और देश में सबसे ज्यादा कमी भी इसी दाल की है। इसकी कीमतों में पिछले दो वर्ष में ही लगभग दोगुनी वृद्धि हो चुकी है। इतनी तेज वृद्वि किसी अन्य देश में नही देखी गईं है। इसका सबसे बड़ा कारण मांग और आपूर्ति में भारी अंतर है। देश में अरहर की उपज वर्तमान में 34 लाख टन है, जबकि खपत 45 लाख टन से ज्यादा। मांग और आपूर्ति में 11 लाख टन का अंतर है। इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। 2022-23 के दौरान देश में 15,780.56 करोड़ रुपये की दाल का आयात हुआ था, जो 2023-24 में दोगुना हो गया। दूसरे देशों से 31 लाख सात हजार करोड़ रुपये की दाल आयात करनी पड़ी।

136 लाख हेक्टेअर है देश में दाल का कुल रकबा

                                                                     

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश शीर्ष दाल उत्पादक राज्य हैं। देश में दाल का कुल रकबा लगभग 136 लाख हेक्टेअर है। मानसून रफ्तार में है। इसलिए उम्मीद भी बढ़ी है। अरहर की खेती में महाराष्ट्र और कर्नाटक आगे हैं, जहां अच्छी बोआई हो रही है। देश में 15 जुलाई तक अरहर की बोआई 28.14 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। यह विगत वर्ष की तुलना में 18.48 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। विगत वर्ष इसी अवधि में मात्र 9.66 लाख हेक्टेयर में ही अरहर की बोआई हो पाई थी। बिहार एवं झारखंड में भी पहले अरहर की अच्छी पैदावार होती थी, किंतु हाल के वर्षों में कमी आई है।

दाम बढ़ने लगे तो रुझान भी बढ़ा

                                                                 

अरहर दाल की कीमतों में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण है उत्पादन में कमी। किसानों का रुझान अरहर के प्रति इसलिए कम होने लगा कि यह लंबी अवधि की फसल है। लगभग नौ महीने में तैयार होती है। इतने समय में किसान धान और गेहूं की दो फसलें ले चुके होते हैं। अरहर खरीफ फसल है, जो मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है। मौसम पैटर्न बदल रहा है। कभी बाढ़ तो कभी सूखे के चलते भी किसान अरहर की खेती से दूर होते चले गए, किंतु दाम बढ़ते ही फायदा नजर आने लगा तो रकबे में भी वृद्धि होने लगी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।