कठिनाईंयों के भंवर में फंसी ‘‘हर घर जल’’ योजना

                         कठिनाईंयों के भंवर में फंसी ‘‘हर घर जल’’ योजना

                                                                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेगर

हाल ही के विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्णं ‘‘हर घर जल’’ योजना विशेष तौर पर चर्चित रही है, विशेषकर दूर-दराज के गांवों के संदर्भ में। ऐसे गांवों के परिवारों और विशेषकर महिलाओं के समय का एक बड़ा भाग परिवार की पानी की जरूरतों को पूरा करने में ही व्यय होता रहा है। दिन भर प्रयास करने के बाद भी कई बार पानी जैसी बुनियादी जरूरत की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती थी और गर्मी के दिनों में तो जैसे जल संकट को लेकर हाहाकार ही मच जाता था।

                                                                          

इस स्थिति में जब भारत सरकार ने ‘‘हर घर में नल का जल’’ पहुचाने की समयबद्ध योजना आरंभ की तो यह स्वाभाविक ही था कि इस योजना के साथ बहुत सी उम्मीदें जुड़ गई। आज स्थिति यह है कि कहीं इस जल जीवन मिशन की उपलब्धि का उत्साह है तो कहीं अनेक समस्याओं को लेकर चिंता भी व्याप्त है। उपलब्धि और कठिनाइयों के बीच गांव किस स्थिति में है, यह जानने के लिए इन पंक्तियों में लेखक ने हाल में निवाड़ी जिले (मध्य प्रदेश) के अनेक गांवों का दौरा किया। यह बुंदेलखंड क्षेत्र, विशेषकर गर्मियों के दिनों में, जल-संकट के लिए चर्चा में रहता आया है। यह सर्वेक्षण भीषण गर्मी के दिनों में किया गया और मौसम सुधरने पर इससे बेहतर स्थिति सामने आएगी।

इस क्षेत्र में सुखद स्थिति यह है कि गांव-स्तर की जल समितियों के स्तर पर अनेक गांववासी खुल कर अपनी समस्याओं को उठा रहे हैं। इस क्षेत्र में एक परमार्थ संस्था ‘‘जल सहेली’’ ने अपनी महिला कार्यकर्ताओं के माध्यम से जल के मुद्दे पर जागरुकता फैलाई है और ग्राम सभाओं तथा पंचायतों में भी उनके विचारों को पहले से अधिक महत्त्व मिलने लगा है। इस तरह पानी के मुद्दे पर जनसक्रियता बढ़ी है और लोगों की समस्याओं के समाधान की संभावना बढ़ी है।

                                                                                       

जल जीवन मिशन के अंतर्गत जब पाइपलाइनों को बिछाया गया, नल लगाए गए तो इस जागरूकता के कारण लोग बेहतर ढंग से गलतियों को रोक सके और स्थानीय ज्ञान के आधार पर बेहतर व्यवस्था कर सके।

बहेरा गांव में यह सक्रियता अधिक है और अधिकांश परिवारों के नल लग गए हैं, पानी भी पहुंचने लगा है, फिर भी लगभग 12 प्रतिशत घरों में अभी पानी आना शेष है। ऊंचाई में पानी पंहुचाने में कठिनाई है, और स्कूल में भी। स्कूल के बोर में पानी गर्मी के चरम के दिनों में समाप्त हो गया और पास के एक अन्य कुएं में भी समाप्त हो गया। जिन गांवों में पानी आता सुबह आधे घंटे आता है। भीषण गर्मी के कारण यह गर्म होता है और पीया नहीं जाता। अतः पीने के लिए अनेक परिवार इस समय भी कुएं या हैंडपंप से ही पानी लाते हैं।

                                                                                    

नामापुरा गांव में अधिकांश घरों में पानी पहुंच रहा है पर ऊंचाई वाली वस्ती में अभी नहीं पहुंचा है। यहां पानी ले जाने के लिए तैयारी चल रही

‘‘सरकार ने हर घर में नल का जल पहुंचाने की समयबद्ध योजना आरंभ की तो स्वाभाविक ही था कि इस योजना से बहुत सी उम्मीदें जुड़ गईं। आज स्थिति यह है कि कहीं इस जल जीवन मिशन की उपलब्धि का उत्साह है तो कहीं अनेक समस्याओं को लेकर चिंता भी है। उपलब्धि और कठिनाइयों के बीच गाव किस स्थिति में है, यह जानने के लिए इस लेखक ने हाल में निवाड़ी जिले (मध्य प्रदेश) के अनेक गांवों का दौरा किया। यह बुंदेलखंड क्षेत्र, विशेषकर गर्मियों के दिनों में जल संकट के लिए चर्चा में रहा है। सर्वेक्षण भीषण गर्मी के दिनों में किया गया और मौसम सुधरने पर इससे बेहतर स्थिति सामने आएगी।

इस क्षेत्र में सुखद स्थिति यह है कि गांव स्तर की जल समितियों के स्तर पर अनेक गांववासी अपनी समस्याओं को उठा रहे हैं। परमार्थ संस्था ने जल सहेली महिला कार्यकर्ताओं के माध्यम से जल जागरुकता फैलाई है। दो परिवारों ने कहा कि उनके नल भी नहीं लगे क्योंकि उनके पर पाइपलाइन की राह से कुछ हट कर हैं। नामपुरा गाँव में नल में जो पानी आ रहा है, यह स्वच्छ नहीं है और लोग इसे पीने के लिए उपयोग में नहीं लाते। ये योजना बना रहे हैं कि टंकी संचालक के पास जाकर पता लगाएं कि गंदा पानी क्यों भेजा रहा है।

                                                                     

इस तरह गांव अभी पहले के स्रोतों पर ही पेयजल के लिए आश्रित हैं पर इसमें एक बड़ी समस्या यह है कि इस पानी को पीने से पथरी की समस्या उत्पन्न हो रही है। गांववासियों ने बताया कि पांच-छह लोगों का पथरी का ऑपरेशन हो चुका है। पथरी से जुड़े दर्द और परेशानी की शिकायतें तो इससे कहीं अधिक लोगों को है और डॉक्टरों ने बताया है कि पानी के दूषित होने के कारण ऐसा हो रहा है। अब आगे गांव को तैयारी यह करनी कि कम से कम नई पाइपलाइन का पानी स्वच्छ मिले जिससे वे अपनी पेयजल की आवश्यकताओं को इससे पूरी कर सकें।

बुरारा गांव के विभिन्न मुहल्लों में स्थिति भिन्न है जहां दलित, आदिवासी और कुशवाहा मोहल्लों में अधिक समस्याएं व्याप्त हैं। इस प्रकार कुछ कुशवाहा परिवारों ने नल को उतार ही दिया है, क्योंकि उनके अनुसार जब पानी ही नहीं आ रहा है तो इसे क्यों रखें, परन्त कुछ अन्य मोहल्लों में स्थिति बेहतर है। कुछ लोगों ने कहा कि गर्म पानी पीया नहीं जा सकता। पहले उसे मटके में रखना पड़ता है और फिर बाद में उसे पी सकते हैं। समस्या यह भी है कि पानी पतिदिन नहीं आता है।

सेबी गांव के दो दलित मोहल्लों अभी पाइपलाइन और नल पहुंचे ही नहीं है। इसके अलावा जिन अन्य मोहल्लों में नल लग गए हैं. वहां भी पानी रोज नहीं आता है और जब आता है तो उसका कोईं समय निश्चित नहीं होता है। आदिवासी (सहरिया) मोहल्ले और साईबाबा मोहल्ले में पानी की अधिक कठिनाई है। कुछ अन्य स्थानों में लोगों को बोर और हैंडपंपों से पानी की आपूर्ति हो जाती है। अतः ये पाइपलाइन के पानी की पाईंपलाईंन के बारे में विशेष चिंतित नहीं है।

जहां तक परंपरागत कुओं का सवाल है तो वे लगभग बंद हो चुके हैं। एक समय इन कुओं की गांव की पेयजल आपूर्ति में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका थी परन्त जिस तरह ये निरंतर उपेक्षित होते रहे है तो अब इनकी भूमिका जल आपूर्ति में नगण्य सी ही हो गई। इस तरह यदि यहां कुछ जल के खोत बढ़ रहे हैं तो कुछ कम भी हो रहे हैं। नामापुरा गांव के लोगों ने बताया कि पहले हरियाली बहुत अधिक थी, पेड़ बहुत अधिक थे। इनके बहुत कम हो जाने जल संरक्षण और गर्मी का प्रकोप बढ़ने पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

                                                                        

इस तरह की अनेक कठिनाइयों के बावजूद कुछ स्थानों पर यह उत्साह है कि कम से कम नल और पाइपलाइन तो आ गए है और गर्मी का प्रकोप कम होने के बाद इनकी स्थिति सुधरेगी तो साल में पानी भी बेहतर और अधिक मिलेगा। इस स्थिति में जिन महिलाओं को दिन भर पानी के लिए खटना पड़ता था, उनकों इससे मुक्ति मिलेगी। बहेरा की एक महिला ने कहा कि पहले कभी रिश्तेदारी में जाते थे, तो उस समय भी यही चिंता लगी रहती थी कि गांव लौट कर पहले पानी लाना है, तभी आराम कर सकेंगे या कुछ और काम कर सकेंगे। अब ऐसी स्थिति से राहत मिलेगी।

इस तरह अपने इस आरंभिक दौर में ‘‘हर घर जल’’ योजना उपलब्धियों और कठिनाइयों के मिले-जुले दौर से गुजर रही हैं। अभी तक जो अनुभव सामने आए हैं, उनका सही आकलन कर उनसे सीखना जरूरी है ताकि भविष्य में जल जीवन मिशन का और सुधरा हुआ रूप लोगों को और भी राहत देने में सफल हो सके।

कुछ स्थानों पर जल स्तर तेजी से नीचे गया है। एक ही गांव जैसे सेबी में एक मोहल्ले की अपेक्षा दूसरे मुहल्ले में जल स्तर बहुत नीचे हो सकता है और जहां यह बहुत नीचे है वहां बोर भी विफल हैं, वे पानी नहीं दे रहे हैं। अधिक कठिनाई उन गांववासियों की है जहां बोर विफल है, जल-स्तर नीचे चला गया है और अभी पाइपलाइन का पानी भी ठीक तरीके से नहीं मिल रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।