कीट और रोगो से जैविक बचाव      Publish Date : 31/07/2024

                             कीट और रोगो से जैविक बचाव

                                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

5 लीटर देशी गाय के मट्ठे में 5 किलो नीम के पत्ते डालकर 10 दिन तक सड़ायें, बाद में नीम की पत्तियों को निचोड़ लें। इस नीमयुक्त मिश्रण को छानकर 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से एकसमान रूप से फसल पर छिड़काव करें। इससे इल्ली व माहू का प्रभावी नियंत्रण होता है।

                                                                                  

5 लीटर मट्ठे में, 1 किलो नीम के पत्ते व धतूरे के पत्ते डालकर, 10 दिन सड़ने दे। इसके बाद मिश्रण को छानकर फसल पर छिड़काव कर इल्लियों का प्रभावी नियंत्रण करें।

5 किलो नीम के पत्ते 3 लीटर पानी में डालकर उबाल लें, जब पानी आधा रह जावे तब उसे छानकर 150 लीटर पानी में घोल तैयार करें। इस मिश्रण में 2 लीटर गौ-मूत्र मिलावें। अब यह मिश्रण एक एकड़ की दर से फसल पर छिड़के।

1/2 किलो हरी मिर्च व लहसुन पीसकर 150 लीटर पानी में डालकर छान ले तथा एक एकड़ में इस घोल का छिड़काव करें।

क्यों आते हैं फसलों पर कीट तथा रोग.

                                                                        

 अधिकतर किसान भाईयों को ऐसा लगता है कि खेती करना है तो जहरीली दवाओं का छिड़काव करना ही पडेगा, जबकि वास्तविकता यह नहीं है, फसल के स्वास्थ्य का सम्बन्ध मिटटी के स्वास्थ्य से सम्बंधित होता है, मिटटी का स्वास्थ्य सुधरते ही फसल पर आनेवाली बीमारियां, अपने आप ही खत्म हो जाती है। फसलों को मिटटी से जो भोजन मिलता है, वह सूक्ष्म जीवाणुओं के माध्यम से मिलता है, जिस मिटटी में सूक्ष्म जीवाणु कम हो जाते है, उस मिटटी में उगाई फसल कमजोर होती है।

जिस मिटटी में रासायनिक खाद कम डाला गया हो, उसमें 100 ग्राम मिटटी में 1 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु होते है, रासायनिक खाद की मदद से होने वाली मिटटी में, आज 1 करोड़ या उससे कम जीवाणु उपलब्ध होते है।

गोबर का खाद डालने के बाद अच्छी फसल क्यों आती है, क्योंकि गोबर का खाद सड़ने के बाद उसमें से जो कार्बन निकलता है, वह हमारे जीवाणुओं का भोजन है। जीवाणुओं को भोजन मिलता है, इसलिए जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, परिणाम स्वरूप फसलों को ज्यादा भोजन मिलने के कारण उत्पादन बढ़कर मिलता है।

उपरोक्त बातों से समझ में आता है कि हमारी फसलों को भोजन प्रदान करनेवाले सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या 10 गुना तक कम हो गई है, इसलिए हम रासायनिक खाद ज्यादा मात्रा में डालते है, तब भी फसल को उतना ही मिलता है, जितना जीवाणु उपलब्ध कराते है। इसका मतलब आज की खेती व्यवस्था में जीवाणुओं की संख्या कम हो जाने के कारण फसलों को भोजन कम मिल रहा है।

आवश्यकता से कम भोजन मतलब कुपोषण, कुपोषण के कारण फसलें कमजोर हो जाती है, इसलिए उनपर कीट तथा रोगों का आक्रमण भी ज्यादा होता है। जहरीली दवाओं के छिड़काव से मिट्टी की सेहत खराब हो रही है। इसलिए मेरा सभी किसान भाईयों ने अनुरोध है वह अपनी मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए गोबर की खाद, जैविक खाद या वर्मी कंपोस्ट अपनाए तथा अपना भविष्य बचाए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।