: हमारा सच्चा गुरु

 

                                   हमारा सच्चा गुरु

                                                                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

एक फूल तब तक फूल नहीं होता जब तक वह पूरी तरह से खिल न जाए। आधे खिले फूल को सर्वश्रेष्ठ कहना बेमानी है। मानव जीवन भी एक फूल की तरह ही है। जीवन के इस फूल को कीड़ों से प्रभावित हुए बिना पूरी तरह से विकसित होना चाहिए। हर पंखुड़ी को पूरी तरह से विकसित होने का मौका मिलना चाहिए। अगर वह एक दूसरे से चिपक जाए तो उसका अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए उस पंखुड़ी को दूसरी पंखुड़ी से नाजुक तरीके से अलग करना चाहिए। जब तक वह पूरी तरह से विकसित न हो जाए, तब तक कोई भी व्यक्ति नाजुक मानव जीवन का मूल्यांकन नहीं बना सकता।

                                                                              

हम किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी अच्छी और बुरी भावनाओं से प्रभावित होते हैं। यह हम पर गहरा असर छोड़ती है। इसलिए हमेशा इस भावना से जल्द से जल्द छुटकारा पाना बेहतर होता है। गुरु का अनुसरण करते समय हमें उनके गुणों के बारे में सावधान रहना चाहिए अन्यथा यह हमें पश्चाताप की ओर ले जाएगा। अगर गुरु गलती से गलत रास्ते पर ले जाता है तो उसके अनुयायी परेशानी में पड़ सकते हैं और क्रोधित हो सकते हैं और यह उन्हें विद्रोह करने के लिए प्रेरित कर सकता है और यह उनके विनाश का कारण भी बन सकता है।

हमारे पूज्य डॉ. हेडगेवार ने हमें सही मार्ग दिखाया है तथा किसी भी प्रकार के टकराव की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। हमारे राष्ट्र के पवित्र ध्वज में हमारी प्राचीन परम्पराओं तथा संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने की शक्ति है तथा इसकी गरिमा को नष्ट करने की शक्ति किसी में नहीं है। हमारे ध्वज को अमरता का वरदान प्राप्त है, यह उगते हुए सूर्य की भांति चमकता है तथा दूसरों को प्रकाश देने के लिए जलने वाले तेल के दीपक के समान भक्ति तथा समर्पण की पवित्र भावना है। यह हमारे लिए गुरु के समान है। हमें इस पर गर्व है। हमें मानसिक रूप से कमजोर होने की स्वाभाविक आदत पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।

                                                           

इसके निराकार अस्तित्व को समझना हमारे मस्तिष्क तथा भावनाओं की क्षमता से पूरी तरह बाहर है। मनुष्य किसी ऐसी वस्तु में विश्वास करता है जिसका विशेष रूप, ऊर्जा तथा गतिशीलता हो जिसे वह अपनी आंखों से देख तथा अनुभव कर सके। मनुष्य का मन सदैव मूर्ति के विशेष रूप में ईश्वर की खोज में रहता है। लोग ईश्वर से मिलने तथा पूर्ण मोक्ष प्राप्त करने के लिए मूर्ति में विश्वास करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं तथा प्रार्थना करते हैं।

 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।