कृषि बजट मे वादे तो बहुत, लेकिन पूरा करने आवंटित धन अप्रयाप्त Publish Date : 25/07/2024
कृषि बजट मे वादे तो बहुत, लेकिन पूरा करने आवंटित धन अप्रयाप्त
प्रोफेसर आर. एस. सेगर
लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी के अंतरिम बजट में किसान कल्याण के लिए कई वादे किए गए थे। हालांकि आम बजट में बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है। वित्त मंत्री ने अपने सातवें बजट में कृषि क्षेत्र को तो प्राथमिकता दी है, लेकिन कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के लिए आवंटित 1.52 लाख करोड़ को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि नई घोषणाओं पर अमल के लिए बड़ी राशि की जरूरत पड़ेगी। कृषि एवं पशुपालन से जुड़े कई बड़े मुद्दों पर चुप्पी भी अखरती है।
बजट में बताया गया है कि उत्पादन एवं उत्पादकता में तेज विकास के लिए शोध को प्रोत्साहित किया जाएगा। कृषि अनुसंधान परिषद के माध्यम से यह काम तो दशकों से किया जा रहा है। जलवायु के अनुकूल खेती के लिए भी समय से काम किया जा रहा है। आम बजट में कृषि शिक्षा एवं शोध के लिए 9941.09 करोड़ रुपये का आवंटन दिखाया गया है, किंतु इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस काम के लिए लगभग इतनी ही राशि (9876 करोड़) की व्यवस्था पिछले बजट में भी थी। इसी तरह उत्पादकता बढ़ाने के लिए 32 फसलों की 109 नई किस्मों को विकसित करने का वादा किया गया है। किंतु यह काम भी एक-दो वर्षों में तो होने से रहा।
प्राकृतिक खेती से दो करोड़ किसानों को जोड़ने की बात कही गई है, किंतु आश्चर्य यह कि इसके लिए सिर्फ 365 करोड़ रुपये का प्रावधान ही बजट में रखा गया है, जो पिछले वर्ष से 94 करोड़ रुपये कम है। बिना जोत वाले किसानों को भी इस बार के बजट से किसान सम्मान निधि की तर्ज पर राहत की उम्मीद थी, लेकिन उनके हाथ केवलं निराशा ही लगी है। जबकि ऐसे किसानों की संख्या भी अब करोड़ों में है।
जीडीपी में लगातार गिर रही कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारीः
बजट में कृषि क्षेत्र के आवंटन का हिस्सा भी निराश करने वाला ही है। कृषि में सुधार की पहल करते हुए मोदी के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट का 5.44 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र के लिए आवंटित किया गया था, जो कि अब घटकर 2024-25 के बजट में सिर्फ 3.15 प्रतिशत रह गया है। एक दिन पहले आईं आर्थिक सर्वेक्षण रिर्पोंट में यह बात सामने आई थी कि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार गिर रही है। इससे उम्मीद बंधी थी कि आम बजट में सरकार कृषि क्षेत्र की इस हिस्सेदारी को बढ़ाने का प्लान बताएगी, लेकिन यहां पर भी झटका ही लगा। पिछले वर्ष से मोटे अनाजों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम कराए जा रहे हैं।
- नई घोषणाओं पर अमल के लिए इससे बड़ी राशि की है जरूरत
- प्राकृतिक खेती की बात है, लेकिन इस मद में भी आवंटित धन कम कर दिया गया है
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।