महामारी का स्वरूप ग्रहण करता अकेलापन Publish Date : 23/07/2024
महामारी का स्वरूप ग्रहण करता अकेलापन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
एक लम्बे समय से यह माना जाता रहा है कि हमारे बुजुर्गों में अकेलापन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसका कारण संयुक्त परिवार कर न होना, बच्चों का विदेश या बाहर के शहरों में बस जाना, रिटायरमेंट, जीवनसाथी का न रहना और दोस्तों से सम्पर्कं टूटना आदि है, मगर अब एक नए शोध की मानें तो अकेलापन युवाओं को भी बहुत परेशान कर रहा है। यह असमय हो उन्हें मृत्यु की ओर धकेल रहा है। इसका एक महत्वपूर्णं कारण हमउम्र लोगों से कम संपर्क और परिवार से दूरी का होना है।
इसके साथ ही अब नौकरियाँ भी ऐसी हो चली हैं कि जहाँ युवा अब चौबीस घटो के नौकर है। जहाँ उन्हें हर हाल में अपने टारगेट पूरे करने होते है। भले ही इसके लिए उन्हे कितने ही घंटे काम र्क्यों न करना पड़े। इस अतिरिक्त व्यस्तता के कारण वह अपने पास पडौस और दोस्तों से भी कट रहे हैं। इसके सम्बन्ध में आपको अमेरिका में रहने वाले सर्वश्रेष्ठ गुप्ता का केस तो याद होगा ही। यह युवा बहुत तेजस्वी और मेधावी था।
वह अमेरिका के एक बड़े संस्थान में काम करता था। वह दफ्तर में 16-18 घंटे काम करता था. फिर भी अधिकारी कहते थे कि और काम करो। इस प्रकार न तो उसके पास घर जाने का समय था और न ही सोने का। तो ऐसे हालात में परिवार और दोस्तों के लिए उसके पास समय कहां से आता। ऐसे में इस यवा ने एक दिन अपनी जिंदगी से ही हार मान ली। जिनके लिए उसने 16-15 घंटे तक काम किया, उन्हें भला इस सब क्या फर्क पड़ा। उसकी जगह कोई और आ गया क्योकि कंपनियों का तो यह नियम ही है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि अपनों से कट जाने का मतलब एक तरह की असामयिक मृत्यु ही है। अकेलापन धूमपान करने से भी अधिक खतरनाक है। कुछ दिन पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बढ़ते अकेलेपन पर चिंता प्रकट की। उसके अनुसार अकेलापन दुनिया में महामारी की तरह फैल रहा है।
डाक्टरों का कहना है कि अकेलेपन के कारण लोगों को नींद नहीं आती। उन्हें तरह-तरह की समस्याएं होती रहती है। उनमें अवसाद बढ़ जाता है। प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर हो जाती है। मानसिक स्वास्थ्य कमजोर जाता है। दिल की बीमारियों के खतरे बढ़ जाते हैं और उन्हें तरह-तरह के रोग भी घेर लेते हैं।
अकेलापन किसी गंभीर बीमारी के जितना ही खतरनाक होता है। अकेलापन हमारी भावनाओं पर आघात करता है। यह हमें हमेशा दुखी रखता है। दुखी होने से चिंता और तनाव बढ़ता है। यह जीवन की कठिनाइयों को बढ़ाता है। रही-सही कसर इटरनेट मीडिया ने पूरी कर दी है। इस प्रकार से युवाओं का अपने दफ्तर के कामकाज से जो भी समय बचता है, उसे वह इंटरनेट मीडिया पर ही व्यतीत करते हैं। इंटरनेट मीडिया भी विभिन्न प्रकार की प्रतिस्पर्धांओं से भरा हुआ है। किसको कितने रीच एवं लाइक्स मिले, यह एक चिंता का विषय बन चका है।
अकेलेपन के जो कारण बताए जाते हैं, उनमें अकेलेपन को बेरोजगारी और कम आय भी महत्वपूर्ण है। जो लोग नौकरी या अन्य किसी कारण से अकले रहते हैं, उन लोगों का अकेलापन भी बढ़ जाता है। गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोग भी अकेलेपन का शिकार होते हैं और बहुत से सामाजिक दबाव भी इसे बढ़ाने का काम करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अकेलेपन की समस्या से भाग समय रहते निपटा जाना चाहिए। इसके लिए इस प्रकार की आदतें डाली जानी चाहिए जो किसी को अकेला न रहने दें। अकेलेपन को दूर करने के लिए लोगों से मिले जले और दोस्ती के सम्बन्धो को बढ़ाव दें।
एक-दूसरे के सुख एवं दुख का हिस्सा बनें। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने से भी जीवन सार्थक लगने लगता है। इसलिए सामाजिक कार्यों से भी जुड़े रहना चाहिए। दोस्तों या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बाजार जाएं। दूसरी के अनुभवों से सीखें। यदि समय हो तो किसी अभिव्यक्ति को पूरा कर सकते हैं। बहुत से शौक अपनाए जा सकते हैं। जैसे बागवानी, पेन्टिंग और खेल आदि भी अकेलेपन को दूर करने मे बुत मदद कर सकते हैं।
हालांकि, संगीत सुनना और संगीत सीखना दोनों ही इसके लिए उपयोगी होते हैं। योग और व्यायाम के माध्यम से न केवल अकेलेपन को दूर किया जा सकता है, अपितु अपने स्वास्थ्य को भी अच्छा बनाए रखा जा सकता है।
आजकल माना जा रहा है कि युवाओं में पढ़ने की आदतें कम होती जा रही हैं, जबकि अच्छी किताबें उनकी सबसे अच्छी दोस्त होती हैं। मनपसंद किताबें कभी भी अकेला नही रहनें देती हैं। प्रकृति के साथ रहने से भी अवसाद कम होता है और यह हमें बहुत सी चिंताओं से मुक्ति प्रदान करता है। सबसे प्रमुख तो हमारा परिवार ही होता है, जो लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं और स्वजनों के साथ समय व्यतीत करना एक अच्छा विकल्प हो सकता है यदि आप अपने परिवार से दूर रहते हैं तो मोबाइल ने हमें यह सविधा प्रदान की है कि हम कभी भी और किसी भी समय अपने परिवारिक जनो के साथ बात कर सकते हैं।
वर्तंमान समय में तकनीकें हमे भले ही बहुत आकर्षिंत करती हो, लेकिन यह भी एक सत्य कि यह तकनीकें कभी मानवीय सम्बंधों का स्थान नही ले सकती। यह परिणाम जो कि हमारी तकनीकी उपकरणो से भरा पड़ा है, उससे न केवल दुख, बल्कि अधिकांश आबादी अकेलापन ढेलने के लिए विवश हो रही है। एक लम्बे समय तक इस अकेलेपन को आत्मनिभता और सफलता के रूप में पेश किया जाता रहा है। आज पश्चिम के लोग परिवार के हिस्सा बन रहे हैं वहाँ पारिवारिक सस्था एक नया रूप ग्रहण कर रही है। मगर अफसोस की बात है कि भारत मे आज भी अकेलेपन को किसी वरदान की तरह से ही देखा जा रहा है।
अकेलेपन को लेकर यह बताया जाता है कि इससे हम जो चाहे कर सकते हैं। भारत मे पहले संयक्त परिवार को छोड़कर एकल परिवार बनें। अब बहुत से युवा जिनमें लड़के तथा लड़कियाँ दोनो ही शामिल हैं, परिवार नाम की इस सस्था से दूर भाग रहें हैं। ऐसे लोगों को लगता है कि वह अकेले हैं तो आजाद हैं। यदि परिवार है तो फिर जिम्मेदारियों का बोझ है जिससे उनकी आजादी खतरे में है। थोड़े दिनो तक यह सोच बहु अच्छी लग सकती है, परन्तु एक समय के बाद यह लगने लगता है कि हमारा कोईं नही है और जब तक यह बात समझ में आती है कि शेयरिंग और केयरिंग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, तब तक बहुत अधिक देर हो चुकी होती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।