सूक्ष्म शैवाल की नई प्रजाति की खोज ‘‘डायटम’’ जो है ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत

सूक्ष्म शैवाल की नई प्रजाति की खोज  ‘‘डायटम’’ जो है ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत

                                                                                                                                                            डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक दल ने पूर्वी घाट क्षेत्र में सूक्ष्म शैवाल की एक नई प्रजाति की खोज की है। इस प्रजाति को अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, सावित्री बाई फुले पुणे विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोरेंडो के शोधकर्ताओं ने खोजा है। यह शोध अध्ययन जनरल साइकोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। पूर्वी घाट, भारत के पूर्वी तट पर पहाड़ों की एक असंतत तक श्रृंखला है। पूर्वी घाट उड़ीसा और आंध्र प्रदेश राज्यों से होता हुआ तमिलनाडु तक जाता है। यह कर्नाटक और तेलंगाना के कुछ हिस्सों से भी होकर गुजरता है।

                                                                   

प्रायद्वीपीय भारत की चार प्रमुख नदियां महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी इसे काटती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रजाति भारत के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों तक ही सीमित है। इस बात को अहमियत देते हुए इस प्रजाति को इंडिगोनेमा का नाम दिया गया है। यह प्रजाति मीठे पानी में पाई जाने वाली प्रजाति है। है। यह डायटम प्रजाति गोमफोनमॉाइड समूह से संबंध रखती है, लेकिन इसमें कई ऐसी विशेषताएं विद्यमान हैं जो कि इसे इस समूह के अन्य शैवाल सदस्यों से अलग करती है। इंडिकोनेमा की यह प्रजाति पूर्वी घाट में, जबकि दूसरी पश्चिमी घाट में पाई गई है। इसकी शारीरिक बनावट के बारे में बताया गया है कि इसके केवल पैर के धु्रव पर छिद्र होने के बजाय सिर और पैर दोनों धु्रवों पर एक क्षेत्र क्षेत्र पाया गया है।

सूक्ष्म शैवालों के समूह को डाइटम कहते हैं। डायटम ऐसे शैवाल होते हैं हैं जो कि कांच से बने घरों में रहते हैं। यह पृथ्वी पर एकमात्र ऐसा जीव है जिनकी कोशिका की दीवारें पारदर्शी, ओपलीन सिलिका से बनी होती है। डायटम कोशिका दीवारें सिलिका के जटिल और आकर्षक पैटर्न से संजी हुई होती हैं। यह सूक्ष्म जीव लिए अति महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह इंसान की हर चौथी सांस के लिए जिम्मेदार होती हैं। यानी कि दुनिया की 25 फ़ीसदी ऑक्सीजन के निर्माण में इनकी सक्रिय भूमिका होती है। यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया की सहायता से वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के लिए जाने जाते हैं।

                                                                    

कार्बन डाइऑक्साइड को करते हैं नियंत्रित

डायटम वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (Co2) को समुद्र के आंतरिक वातावरण से दूर रखते हैं और इनके काणों को गुरुत्वाकर्षण की मदद से डूबा देते हैं। अर्थात डयइटम बायोलॉजिकल कार्बन पंप की तरह भी काम करने में सक्षम होते हैं। वार्षिक तौर पर समुद्री डायटम हर साल करीब 1000 से 2000 करोड़ टन अकार्बनिक कार्बन को समाप्त कर देते हैं।

जलवायु परिवर्तन के अनुमान लगाने में किया जाता है उपयोग

                                                              

शोधकर्ताओं के अनुसार, जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी अनुमान लगाने के लिए इनका उपयोग बायोलॉजिकल प्रॉक्सी के रूप में भी किया जाता है। हालांकि इनको नंगी आँखों की सहायता से नही देखा जा सकता है। यह एक एकल कोशिका वाली एक पारदर्शी संरचना से युक्त होते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।