स्वदेशी के पथ पर समृद्ध होता हमारा विज्ञान

                    स्वदेशी के पथ पर समृद्ध होता हमारा विज्ञान

                                                                                                                                                                         डॉ0 आर. एस. सेंगर

हमारे देश में विगत कुछ वर्षों से विज्ञान शोध के माध्यम से अधिक समृद्ध होता जा रहा है और इसी का परिणाम है कि देश में विज्ञान नया आयाम भी प्राप्त कर रहा है। शोध क्षेत्र के डेटाबेस के आधार पर देखा जाए वर्ष 2017 से वर्ष 2022 की अवधि में रिसर्च आउटपुट 54 प्रतिशत बढ़ा है और इससे भी बड़ा तथ्य यह है कि भारत में शोध कार्यों में यह उपलब्धि वैश्विक वृद्धि से दुगनी रही है और विज्ञान तकनीकी के दिग्गज माने जाने वाले पश्चिमी देशों से भी आज हम हम आगे निकल रहे हैं। कुछ समय पहले तक शायद यह बात सोची जाती थी लेकिन अब हम सभी लोगों को परिचित होना होगा कि वास्तविकता में हम आगे बढ़ रहे हैं।

                                                                          

थोड़े और आंकड़े की तरफ हम बढ़ते हैं तो पाएंगे कि वर्ष 2017 से 2022 के बीच भारत के 13 लाख शोध पत्र प्रकाशित हुए जो विश्व में इसी अवधि में चौथी सबसे बड़ी संख्या रही। इसमें 45 लाख शोध पत्र प्रकाशन के साथ चीन सबसे आगे था, जबकि 44 लाख के साथ अमेरिका दूसरे और 14 लाख शोध पत्र प्रकाशन के साथ ब्रिटेन तीसरे स्थान पर रहा है। यानी हम केवल वैश्विक आर्थिक शक्ति ही नहीं बन रहे हैं बल्कि एक वैज्ञानिक शक्ति भी बन रहे हैं।

हमारे 19 प्रतिशत शोधकार्य, अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ होते हैं, जबकि वैश्विक आंकड़े 21 प्रतिशत के बहुत निकट हैं। केंद्र सरकार ने इंस्टीट्यूट आफ इमीनेंस को भी प्रमुखता दी है, जिसका उद्देश्य है कि हमारे 11 लाख में से डेढ़ लाख शोध पत्र छपे, जिन पर 14 लाख से अधिक सटेशन प्राप्त हुए हैं। अब कदम बढ़ चुके हैं बस गतिमान रहने की आवश्यकता है। कुछ अवरोध भी है लेकिन हमारी तैयारी और विज्ञान को की मेहनत आने वाले वर्षों में और अधिक सफल होगी और हम एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभर कर सामने आ जाएंगे।

स्वदेशी रणनीति से हम हो रहे हैं समृद्ध

                                                                     

शोध अनुसंधान के आंकड़े तो हमने देख लिए परन्तु अब इन्हें वास्तविकता के धरातल पर भी देखा जाना चाहिए। यदि हम रक्षा क्षेत्र की बात करते हैं तो हमारे देश में स्वदेशी डिजाइन और रक्षा उपकरणों के विकास पर तेजी से कम चल रहा है। इंडिजिनिशियली डिजाइंड डेवलप्ड एंड मैन्युफैक्चर्ड आईडीएम इसी दिशा में कदम बढ़ा रहा है। अप्रैल 2018 में इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस यानी आईडिक्स का गठन किया गया, ताकि रक्षा क्षेत्र में शोध नवन मिशन का इकोसिस्टम तैयार हो सके।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को रक्षा तकनीकी में प्रयोग करने के लिए डिफेंस आई काउंसिल और डिफेंस ए प्रोजेक्ट एजेंसी की स्थापना भी की जा चुकी है। स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप मॉडल बन चुका है ताकि वैश्विक रक्षा उपकरण निर्माता के साथ तकनीक साझा की जा सके। रक्षा अनुसंधान के बजट पर 25 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक के लिए आरक्षित कर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के द्वारा अब उद्योग स्टार्टअप और अकादमिक विशेषज्ञों के लिए खोले जा चुके हैं, इस विशिष्ट क्षेत्र की पहचान भी डीआरडीओ अब तक ही कर चुका है।

इन प्रभावी  नीतियों का ही परिणाम है कि बीते कुछ वर्षों में कई आधुनिक रक्षा प्रणालियों उपकरण हम विकसित कर चुके हैं। जैसे 155 एम आर्टिलरी गन सिस्टम, धनुष हल्का युद्ध विमान, तेजस्व, अर्जुन और टी 72 टैंक, आकाश मिसाइल, चीता हेलीकॉप्टर, आईएनएस कलवरी, खातेरी और चेन्नई तथा पनडुब्बी रोध़ी युद्ध प्रणाली और यह सूची बहुत लंबी है। जिसमें ब्लड ग्रुप वाहनों के साथ रडार और कंट्रोल सिस्टम भी हमारे देश में ही बनाए जा चुके हैं। डीआरडीओ का ड्रोन भी हमारी एक उपलब्धि है।

आयात पर निर्भर रहने वाला देश अब रक्षा प्रणालियों और हथियार अन्य देशों को निर्यात भी कर रहा है जो कि एक बड़ी उपलब्धि है। अतः कहा जा सकता है कि हम विज्ञान और शोध संस्कृति के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं।

भारत में पेटेंट फाइलिंग भी काफी बड़ी

                                                                

अंतरिक्ष क्षेत्र में तो हम नित नए अन्वेषण कर ही रहे हैं चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने दम पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग हम कर ही चुके है। इसके अतिरिक्त मंगलयान हो या फिर सूर्य की टोह लेने निकला हमारा आदित्य मिशन भारतीय शोध एवं मेधा की सफलता ब्रह्मांड के हर क्षेत्र में छाई हुई है। क्रायोजेनिक इंजन को मिला प्रमाण इसकी सबसे ताजी सफलता है। कृषि में नैनो यूरिया इसका सबसे ताजा उदाहरण है। तकनीकी के प्रयोग और नित्य नए शोध में हमारे प्रसार का मध्य तेजी से फैला है।

इसके अलावा नई प्रजातियों का विकास मौसम के पूर्वानुमान की नई-नई विधियां, मिट्टी की जांच की बेहतर सुविधा हो या एआई के प्रयोग से मोबाइल ऐप पर फसलों की बीमारी पहचान व उपचार करने की सलाह हो। इसी के चलते कृषि  अब आधुनिक हो चली है। डॉ आर एस सेंगर ने बताया कि जैसे-जैसे हम चुनौतियों से निपटने का कार्य करते हैं। नए ज्ञान का मार्ग हमें दिखाई पड़ने लगता है। आज देश का माहौल विज्ञान और अनुसंधान के प्रति बहुत ही सकारात्मक हो चला है और इसी का परिणाम है कि इस शोध संस्कृति के चलते हमारा विज्ञान समृद्ध हो रहा है जिसका फायदा जन मानस को भी मिल रहा है।

डॉ0 सेंगर ने बताया कि भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा पेटेंट फाइलिंग में वृद्धि भी इसी का एक उदाहरण है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैक्सीन के मामले में हम वैश्विक पहचान प्राप्त कर चुके हैं। ऐंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध की घटती क्षमता को थामने के लिए हो रहे वैश्विक शोध में भारत की अहम हिस्सेदारी है। एम्स की बढ़ती संख्या, चिकित्सा उपकरणों की दिशा में नए शोध कार्य प्रसिद्ध करेंगे। संचार क्षेत्र में 5जी को देश में कोने-कोने में पहुंचने की तैयारी है।

                                                                       

अब ग्रामीण क्षेत्रों तक ब्रॉडबैंड सेवा पहुंचेगी। देश में स्टार्टअप, इनक्यूबेशन एंड इन्नोवेशन सेंटर के खुल जाने के कारण अब विभन्न प्रदेशों में नित नए अनुसंधान हो रहे हैं और नए-नए प्रोडक्ट बनाकर लोगों तक पहुंचाए जा रहे हैं। मजबूत इनोवेशन और नवाचार अनुसंधान के माध्यम से भारत पूरी दुनिया का अग्रणीय स्टार्टअप हब बनने के लिए तैयार हो गया है। नव प्रवर्तकों को सशक्त बनाकर हमारा लक्ष्य रोजगार सृजन और सामान विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है।

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 106 वे सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में एक विस्तारित शोध इकोसिस्टम की बात कही थी। कई अनुसंधान केंद्र ऐसे हैं जो शोध के क्षेत्र में रीड की तरह कार्य कर रहे हैं। अब शोध इकोसिस्टम को देश के विश्वविद्यालय तक ले जाने की बात कही गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा था कि देश के विश्वविद्यालय तक शोध एक सिस्टम को ले जाने की अहम वजह भी है। देश के 95 प्रतिशत विद्यार्थी इन्हीं विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए जाते हैं तो ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि इन विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध अनुसंधान की पहुंच देश की आधिकारिक युवा मेधा तक होगी।

प्रधानमंत्री ने इस विचार को सिर्फ संबोधन तक ही सीमित नहीं रखा, अगले दो वर्ष में ही केंद्र सरकार ने इसे आगे बढ़ाने के लिए वर्ष 2021-22 के बजट में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन यानी नर्फ के लिए 50,000 करोड रुपए की राशि आवंटित की गई थी। नर्फ का महत्व समझना हो तो भारत सरकार के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजय राघवन की बात पर गौर किया जा सकता है। नर्फ के गठन का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा था कि यह भारत में शोध अनुसंधान को विज्ञान की विभिन्न शाखों तक पहुंचाने का एक सेतु बनेगा। आज हम शायद इस और आगे बढ़ रहे हैं। इसी का परिणाम है कि देश के कई विश्वविद्यालयों के द्वारा अपने शोध अनुसंधान को बढ़ावा देने और उसे प्रोत्साहित करने की योजना बनाई गई है।

इस प्रकार से जिन वैज्ञानिकों के अनुसंधान के उपरांत रिसर्च पेपर प्रतिशत जनरल में प्रकाशित हो जाते हैं, उनको नगद पुरस्कार व सम्मान देने की पहले भी शुरू की गई है। निश्चित ही आने वाले समय में भारत में शोध संस्कृति और तेजी से बढ़ेगी, जिससे हम लोग स्वदेशी के पथ पर आबे बढ़ते हुए विज्ञान को और विकसित कर सकेंगे। इससे देश का और अधिक विकास होगा और लोगों एवं जीव जंतुओं के बीच में खुशहाली आएगी।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।