गर्मी में शकरकंद की खेती बनाएगी लखपति

                    गर्मी में शकरकंद की खेती बनाएगी लखपति

                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

शकरकंद की खेती किसानों के लिए किस्मत की चाभी बन सकती है। इसकी खेती करने में ज्यादा खर्च और ज्यादा परेशानी भी नहीं होती है। किसान इसकी खेती कर आसानी से लखपति बन सकते है और वहीं इसकी खेती साल में दो बार भी की जा सकती है।

                                                                        

वर्तमान समय में किसान पारंपरिक खेती के अलावा कई अन्य प्रकार की फसलीय की खेती को अपना रहे हैं। इसी प्रकार की फसलों में एक नाम शकरकंद का भी आता है, जिसकी खेती किसानों को मालामाल बना सकती है। शकरकंद की खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है। परन्तु जून और जुलाई का महीनो इसकी खेती के लिए सबसे अधिक उपयुक्त माने जाते है। ऐसे में हम आज की अपनी इस पोस्ट में जानते है शकरकंद के फसल के जुड़ी सभी जानकारी अपने विशेषज्ञ डॉ0 आर. एस. सेंगर से-

इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, इसमें बहुत ज्यादा मात्रा में तैयार होता है. कृषि वैज्ञानिक डॉ0 आर. एस. सेंगर ने बताया की शकरकंद की खेती के लिए किसान ग्रीष्मकालीन मौसम में रोपाई कर सकते हैं। इसके लिए जून से अगस्त माह के बीच का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। वहीं इसकी कटाई अक्टूबर नवंबर महीने में हो जाती है और किसान इस फसल को दोबारा दिसंबर से जनवरी के महीने में लगा सकते हैं।

हालांकि शरद ऋतु होने के कारण ये फसल उतना अच्छी तरह से तैयार नहीं होता है। इसके लिए 20-21 डिग्री तापमान का होना बेहद जरूरी होता है। तभी ये फसल अच्छा मुनाफा दे सकती है।

शकरकंद की प्रजातियों का चयन

शकरकंद की 400 से अधिक प्रजातियां उपलब्ध हैं. जिनमें एस10 प्रजाति बहुत अच्छी पैदावार देता है, अब और भी प्रजातियां उपलब्ध हैं जिनमें श्रीभद्रा, पूसा सफेद, कोंकण अश्विनी, पूसा सुनहरी, श्री अरुण, कालमेघ, श्री वरुण, श्री रत्न क्रॉस-4, श्री वर्धिनी, श्री नंदिनी, राजेंद्र शकरकंद-5, आदि के अलावा और भी कई किस्में हैं जो कि प्रमुख मानी जाती है। शकरकंद की उन्नत प्रजाति 110 से 120 दिन में तैयार हो जाती हैं।

एक एकड़ में प्राप्त होने वाला लाभ

                                                                   

एक एकड़ में 33000 से 33500 कटिंग लगाया जाता है, जिसकी लागत लगभग 10-12 हजार आती है। वहीं तीन से चार महीने में शकरकंद लगभग 10 टन प्रति एकड़ तैयार हो जाता है, जिससे किसानों को 2 लाख रूपये तक का सीधा लाभ मिल जाता है।

शकरकंद को लगाने के लिए किसान इसके शीर्ष का प्रयोग कर सकते हैं, यदि इसके शीर्ष को 20 सेंटीमीटर काटकर लगाया जाए तो यह फसल जल्द ही तैयार हो जाती है। वहीं किसान श्रीभद्रा प्रजाति को राष्ट्रीय बीज निगम के वेबसाइट पर जाकर 35 प्रतिशत सब्सिडी पर खरीद सकते हैं।

रोपाई के समय फसल की उचित दूरी

                                                     

शकरकंद के पौधों की रोपाई करते समय पौधे की पौधे की दूरी लगभग 20 सेंटीमीटर से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है। इसके साथ साथ एक पौधे को लगाते समय दो गांठ जमीन के अंदर डाल दी जाती है। इसके बाद 15 से 20 क्विंटल गोबर प्रति एकड़ के दर से खाद के रूप में डालें। खरपतवार से बने खाद का भी आप उपयोग कर सकते हैं। नाइट्रोजन, पोटास और फॉस्फेट जरूर डालें, जिसकी मात्रा 60ः60ः60 प्रति एकड़ की रखी जानी चाहिए।

बीज उपचार उपाय

                                                                       

शकरकंद की खेती से पहले बीज उपचार के साथ-साथ कीटनाशक उपचार भी जरूरी है। इसके लिए इमिडाक्लोरोपिड नमक दवा को 1 एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपचार करें। इसके लिए सभी शीर्ष को 15-20 मिनट तक मिश्रण में मिलाकर रखें। इसके बाद खेत में लगाएं।

शकरकंद में दीमक और वेविल आदि से बचाने के लिए फाइफ्रोनिल दवा को चार किग्रा. प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़काव करें। इससे विविल और दीमक से खतरे से बचा जा सकता है। विविल के हमले से शकरकंद में काला धब्बा बन जाता है, जिससे शकरकंद को खाने में तीखापन आता है अतः इससे बचाव के लिए हम फाइफ्रोनील दवा का छिड़काव करने की सलाह देते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।