मक्का की नई किस्म विकसितः काले मक्के की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय

मक्का की नई किस्म विकसितः काले मक्के की खेती से बढ़ेगी किसानों की आय

                                                                                                                                                      डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

जायद सीजन में काले मक्का की खेती से किसान होंगे खुशहाल

                                                                            

मक्का की खेती कई कारणों से किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। मक्का की सफेद व लाल किस्म के अलावा बेवी कॉर्न और स्वीट कॉर्न की खेती के प्रति किसानों की दिलचस्पी लगातार बढ़ रही है। अब जायद सीजन में बुवाई के लिए काली मक्का की खेती भी किसानों द्वारा काफी पसंद की जा रही है। काली मक्का का भुट्टा देश के महानगरों में 200 रुपए प्रति नग के हिसाब से बिक रहा है।

ऐसी खबरें सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आने के बाद किसान काली मक्का की खेती के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं। तो आइए, अपने ब्लॉग किसान डॉट कॉम की इस पोस्ट में हम आपको बता रहे हैं काली मक्का की खेती कैसे करें। काली मक्का की खेती से कितना मुनाफा होगा आदि के बारे में विस्तार से-

काली मक्का की खेती ऐसे बढ़ाएगी आपकी इनकम

                                                           

देश की मंडियों में इन दिनों सफेद व लाल मक्का का औसत भाव 2050 रुपए प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि अधिकतम भाव 2700 रुपए प्रति क्विंटल है। अगर कोई किसान रबी फसल की कटाई के बाद जायद सीजन में काली मक्का की फसल लगाता है तो उसे 90 से 95 दिन में पैदावार मिल जाती है। मक्के की यह किस्म कुपोषण से लड़ने में कारगर है। इसमें आयरन, कॉपर और जिंक अधिक मात्रा में मिलता है।

यह मक्का की पहली किस्म है जो न्यूट्रीरिच और बायो फोर्टिफाइड है। इस किस्म का भुट्टा बाजार में महंगे दाम पर बिकता है। ऑनलाइन 200 रुपए का एक भुट़्टा बिक रहा है। सामान्य मक्का की तुलना में इसका भाव हमेशा अधिक ही मिलता है, क्योंकि बहुत कम किसान इस किस्म करते हैं।

काली मक्का की खेती रू खेत में कौन सी किस्म लगाएं

                                                                    

काली मक्का की खेती में कौनसी किस्म का बीज बोना चाहिए? इसकी जानकारी हर किसान को होनी चाहिए। काली मक्का की खेती पर देश में पहली बार छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र ने रिसर्च किया और मक्का की नई प्रजाति जवाहर मक्का 1014 विकसित की। कृषि वैज्ञानिक अब इस किस्म को लगाने की सलाह देते हैं। मक्का की यह किस्म अपने पोषक तत्वों के कारण कुपोषण से लड़ने में कारगर साबित होगी। कई स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों में इस उपयोग संभव हो सकेगा।

जवाहर मक्का 1014 से कितनी मिलेगी पैदावार

कृषि वैज्ञानिकों ने मक्का की यह प्रजाति मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित की गई है। किसान एक एकड़ जमीन में 8 किलो बीज से 26 क्विंटल तक पैदावार ले सकता है। मक्का की यह किस्म 90 से 95 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी सिल्क 50 दिन में आती है। काले मक्का की फसल के अच्छे विकास के लिए अधिक गर्म मौसम की जरूरत होती है। जब इसके पौधे पर भुट्टे तैयार होने लगते हैं तब इसे अधिक पानी की जरुरत होती है। इसकी खेती कतार में की जाती है और कतार में पौधे से पौधे की दूरी 60 से 75 सेमी होनी चाहिए। मक्का की यह प्रजाति तना छेदक रोग के प्रति सहनशील है। वर्षा आधारित पठारी क्षेत्र के लिए यह किस्म अधिक उपयुक्त है।

काली मक्का से मिलेगा शानदार स्वाद और अधिक पौष्टिकता

                                                                                  

काली मक्का अपने स्वाद और अधिक पौष्टिक गुणों के कारण धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है। पीली और सफेद मक्का के पत्तों का रंग हरा होता है लेकिन काली मक्का के पत्तों का रंग हल्का बैंगनी होता है। काली मक्का का भुट्टा 20 से 25 सेमी तक लंबा होता है और इनके पौधों की लंबाई 2.5 मीटर से 3 मीटर तक होती है। काली मक्का के दानों में स्टार्च अधिक होता है। इस किस्म की मक्का के पौधे पर भुट्टे में जब दाने तैयार होने लगते है तब काले पड़ना शुरू हो जाते हैं।

यह भुट्टे एक तरह का पदार्थ छोड़ते है और इन पर दाग लगना शुरू हो जाता है। इन दागों को हाथों से हटाया जा सकता है। काली मक्का के दानों को पकने में अधिक समय लगता है। पकने के बाद इसके दाने काले, चमकीले और आकर्षक दिखाई देते हैं। काली मक्का के दाने पीली व सफेद मक्का की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और मीठे होते हैं।

कुल मिलाकर, ब्लैक कॉर्न स्वादिष्ट होने के साथ ही पोषक तत्वों से भी भरपूर है जिसका उपयोग स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी फायदेमंद है। अभी तक हमारे देश में किसान सफेद और पीली मक्का की खेती कर रहे हैं, लेकिन काली मक्का की खेती के प्रति भी किसानों का रूझान बढ़ रहा है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।