अब है अधिक सुरुचिपूर्ण पठन और पाठन      Publish Date : 10/04/2024

                   अब है अधिक सुरुचिपूर्ण पठन और पाठन

                                                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर

बच्चों अथवा नौजवानों के लिए पढ़ाई-लिखाई पहले की तुलना में अधिक आसान हुई है। यह हो सकता है कि नौजवानों पर अच्छे रोजगार पाने का दबाव हो, इसलिए अब उन्हें पहले से कहीं अधिक मेहनत करनी पड़ती है, मगर बच्चे तो अब खेल-खेल में पढ़ते हैं, और सरकार भी नई शिक्षा नीति के तहत ऐसे ऐसे ही नियम बना रही है, जिससे कि पठन- पाठन काफी सरल हुआ है।

नई शिक्षा नीति में तो छात्रों को ज्यादा समय खेलने और अपनी रुचि के अनुसार अन्य काम करने का मौका मिलता है। यह बच्चों के विकास के लिए बेहद जरूरी है। इसी तरह, बच्चों के सामाजिक व आध्यात्मिक विकास पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है, जिससे न सिर्फ बच्चे कहीं अधिक कुशल बन रहे हैं, बल्कि देश की साक्षरता दर भी बढ़ती जा रही है।

अब जरा अपने पुराने दौर को याद करें, जब शिक्षक एक बेंत साथ में रखकर बच्चों को पढ़ाते थे। पिटाई होने का खौफ ऐसा होता था कि बच्चे दम साधे हुए पढ़ते थे। उनमें डर रहता था कि यदि कक्षा का कार्य या गृह कार्य नहीं किया, तो शिक्षक से पिटाई पड़ेगी। शिक्षक भी पीटने में शायद ही कभी कोई कमी करते थे परन्तु अब ऐसा कोई डर बच्चों में नहीं रहा।

                                                                  

यदि कोई शिक्षक बच्चों की पिटाई करता भी है, तो अभिभावक ही इसके खिलाफ खड़े जाते हैं। कानूनी प्रावधान भी शिक्ष बच्चों पर दबाव बनाने से रोकता।

वर्तमान की पढ़ाई-लिखाई में विभिन्न नई चीजें रखी गई हैं। यह सिर्फ बौद्धिक ही नहीं, बल्कि बच्चों के समग्र विकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है। बच्चों में आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता व समस्या समाधान कौशल बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। उनको अपनी रुचि के अनुसार करियर चुनने का मौका दिया जाता है।

                                                         

व्यक्तिगत शिक्षा को बढ़ावा दिया जाता है। पाठ्यक्रम का बोझ कम किया गया है और स्कूल-बैग के भार को कम किया गया है। प्रौद्योगिकियों का समावेश करते हुए शिक्षा को कहीं अधिक आधुनिक और सुगम बनाया गया है। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चे को पूरी तरह से निष्क्रिय बनाया जा रहा है।

वर्तमान में जो भी बच्चे पढ़ाई के दबाव में आत्महत्या करने के जैसे कदम उठाते हैं उनके सम्बन्ध में केवल यही कहा जा सकता है कि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता की आकांक्षाओं अथवा अपने परिवार के दबाव को नही झेल पा रहे हैं। उनके इस कृत्य में शिक्षा व्यवस्था का कोई दोष नही होता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।