
शिमला मिर्च के उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक Publish Date : 24/03/2025
शिमला मिर्च के उत्पादन की वैज्ञानिक तकनीक
प्रोफेसर आर. एस. सेगर एवं गरिमा शर्मा
भरत में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जी की में टमाटर एवं शिमला मिर्च (कैपसीकम एनम) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। गुणवत्ता की दृष्टि से भी शिमला मिर्च एक संरक्षित भोज्य (प्रोटेक्टिव फूड) पदार्थ माना गया है। शिमला मिर्च में कई औषिधीय गुण भी पाये जाते हैं। शिमला मिर्च में विटामिन ए, विटामिन सी, पोटेशियम, कैल्शियम, लौह तथा अन्य खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसमें एन्टीऑक्सीडेन्ट, लाइकोपिन आदि भी पाये जाते हैं।
शिमला मिर्च को सामान्यता बेल पेपर भी कहा जाता है। इसमें विटामिन-सी एवं विटामिन-ए तथा विभिन्न खनिज लवण जैसे आयरन, पोटेशियम, जिंक, कैल्शियम इत्यादि पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। जिसके कारण अधिकतर बीमारियों से बचा जा सकता है। बदलती खाद्य शैली के कारण शिमला मिर्च की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। शिमला मिर्च की खेती भारत में लगभग 4780 हेक्टयेर में की जाती है तथा इसका वास्तविक उत्पादन 42230 टन प्रति वर्ष होता है।
देश में शिमला मिर्च के उत्पादन को बढ़ाने की असीम सम्भावनाएं हैं। इसके लिए खेत की तैयारी, उन्नत संकर बीज का उपयोग, बीज उपचार, समय पर बुवाई, निर्धारित पौध संख्या, कीट और बीमारी का नियन्त्रण, निर्धारित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग और समय पर सिंचाई आदि उपज बढ़ाने में विशेष भूमिका अदा करते हैं। टमाटर एवं शिमला मिर्च की खेती देशवासियों को भोजन तथा खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के अलावा रोजगार सृजन तथा विदेशी मुद्रा का भी अर्जन का अवसर भी प्रदान करती है।
शिमला मिर्च की उत्पादन तकनीक
जलवायु एवं मृदा
शिमला मिर्च की खेती के लिए दिन का तापमान 22 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड एवं रात्रीकालीन तापमान सामान्यतः 16 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड उत्तम रहता है। अधिक तापमान के कारण इसके फूल झड़ने लगते हैं एवं कम तापमान के कारण परागकणों की जीवन उपयोगिता कम हो जाती है। सामान्यतः शिमला मिर्च की संरक्षित खेती पॉलीहॉउस में कीटरोधी एवं शेड नेट लगाकर सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। शिमला मिर्च की खेती के लिए सामान्यतः बलुई दोमट मृदा उपयुक्त रहती है, जिसमें अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ मौजूद हो एवं जल निकासी की उत्तम व्यवस्था हो।
शिमला मिर्च की खेती पॉलीहाउस में
आमतौर पर पॉलीहाउस पारदर्शी आवरण से ढ़के हुए ऐसे ढांचे होते हैं जिनमें कम से कम आंशिक या पूर्णरूप से नियंत्रित वातावरण में फसलें पैदा की जाती हैं। पॉलीहाउस तकनीक का बे-मौसमी सब्जियॉ पैदा करने में महत्वपूर्ण स्थान है। पॉलीहाउस की खेती के लिए सामान्यतः ऐसी फसलों का चयन किया जाता है। जिनका आयतन कम हो एवं अधिक मूल्यवान हो जैसे खीरा, टमाटर और शिमला मिर्च इत्यादि।
खेती के लिए भूमि की तैयारी
पौध रोपण के लिए मुख्य खेत को अच्छी तरह से 5-6 बार जुताई कर तैयार कि जाता है। गोबर की खाद या कम्पोस्ट अंतिम जुताई के पूर्व खेत में अच्छी तरह से खेत में मिला दिया जाना चाहिए। तत्पश्चात उठी हुई 90 से.मी. चौड़ी क्यारियां बनाई जाती हैं। पौधों की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 से.मी. की दूरी पर करनी चाहिए। एक क्यारी पर पौधों की सामान्यतः दो कतार लगाई जाती हैं।
उन्नत किस्मों का चयन
प्रमुख किस्में
कैलिफोर्निया वंडर, रायल वंडर, येलो वंडर, ग्रीन गोल्ड, भारत, अरका बसन्त, अरका गौरव, अरका मोहिनी, सिंजेटा इंडिया की इन्द्रा, बॉम्बी, लारियो एवं ओरोबेल, क्लॉज इंटरनेशनल सीडस-आशा, सेमिनीश की 1865 और हीरा आदि शिमजा मिर्च की उन्नत एवं किस्में प्रचलित हैं।
बीज दर
सामान्य किस्म- 750-800 ग्राम एवं संकर किस्म, 200 से 250 ग्राम प्रति हेक्टयेर रहती है।
पौध तैयार करना
शिमला मिर्च के बीज मंहगे होने के कारण इसकी पौध प्रो-ट्रेज में तैयार करनी चाहिए। इसके लिए अच्छे से उपचारित ट्रेज का उपयोग किया जाना चाहिए। ट्रेज में मीडिया का मिश्रण जैसे वर्मीकुलाइट, परलाइट एवं कॉकोपीट 1:1:2 की दर से तैयार करना चाहिए एवं मीडिया को भली-भांति ट्रेज में भरकर प्रति सेल एक बीज डालकर उसके उपर हल्का मिश्रण डालकर फव्वारे से हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए।
यदि आवश्यक हो तो मल्च का उपयोग भी किया जा सकता है। एक हेक्टयर क्षेत्रफल में 200-250 ग्राम संकर एवं 750-800 ग्राम सामान्य किस्म के बीज की आवश्यकता होती है।
पौधों की रोपाई
30 से 35 दिन में शिमला मिर्च के पौध रोपाई योग्य हो जाते हैं। रोपाई के समय रोप की लम्बाई तकरीबन 16 से 20 सेमी एवं 4-6 पत्तियां होनी चाहिएं। रोपाई के पूर्व रोप को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम में डुबो कर पूर्व में बनाए गये छेद में लगाना चाहिए।
पौधो की रोपाई अच्छी तरह से उठी हुई तैयार क्यारियों में करनी चाहिए। क्यारियों की चौड़ाई सामान्यतः 90 से.मी. रखनी चाहिए। पौधों की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 से.मी. की दूरी पर करनी चाहिए। एक क्यारी पर पौधों की सामान्यतः दो कतार लगाते हैं।
उर्वरक
25 टन/है. गोबर खाद एवं रासायनिक उर्वरक में एनःपीःकेः 250:150: एवं 150 किग्रा /है।
सिंचाई
गर्मियों के मौसम में 7 दिन तथा ठण्डे मौसम में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। ड्रिप इरीगेशन की सुविधा उपलब्ध होने पर उर्वरक एवं सिंचाई (फर्टीगेशन) ड्रिप विधि के द्वारा ही करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
शिमला मिर्च की 2 से 3 बार गुड़ाई करना आवश्यक है। अच्छी उपज के लिए 30 एवं 60 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए। शिमला मिर्च में अच्छी उपज के लिए मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। यह कार्य फसल की 30-40 दिन की अवस्था पर करना चाहिए। रासायनिक दवा के रूप में खेत तैयार करते समय 2.22 लीटर की दर से फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन) का छिड़काव कर खेत में कर देना चाहिए। या पेन्डीमिथेलिन 3.25 लीटर प्रति हेक्टयेर की दर से रोपाई के 7 दिन के अंदर छिड़काव कर देना चाहिए।
वृद्धि नियंत्रक
शिमला मिर्च की उपज बढ़ाने के लिए ट्राइकोन्टानॉल 1.25 पी.पी.एम. (1.25 मिलीग्राम/लीटर पानी की दर से) रोपाई के बाद 20 दिन की अवस्था से 20 दिन के अन्तराल पर 3 से 4 बार करना चाहिए। इसी प्रकार एन.ए.ए. 10 पी.पी.एम (10 मिलीग्राम/लीटर पानी की दर से) का 60 वे एवं 80 वें दिन छिड़काव करना चाहिए।
पौधों को सहारा देना
शिमला मिर्च में पौधों को प्लास्टिक या जूट की सूतली रोप से बांधकर ऊपर की ओर बढ़ने दिया जाना चाहिए जिससे फल गिरें भी नहीं एवं फलों का आकार भी अच्छा हो। पौधों को सहारा देने से फल मिट्टी एवं पानी के सम्पर्क में नही आ पाते जिससे फल सड़ने की समस्या नही होती है।
कीट एवं व्याधियाँ
शिमला मिर्च में कीटों में मुख्य तौर पर चेपा, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली एवं व्याधियों में चूर्णी फफूंद, एन्थ्रेक्नोज, फ्यूजेरिया विल्ट, फल सड़न एवं झुलसा का प्रकोप होता है।
समन्वित नाशीजीव प्रबन्धन क्रियाएं
नर्सरी के समय
- पौधशाला की क्यारियां भूमि धरातल से लगभग 10 सेमी ऊंची होनी चाहिएं।
- क्यारियों को मार्च अप्रेल माह में 0.45 मि.मी. मोटी पॉलीथीन शीट से ढ़कना चाहिए। भू-तपन के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
- 3 किग्रा गोबर की खाद में 150 ग्राम फफूंद नाशक ट्राइकोडर्मा मिलाकर 7 दिन तक रखकर 3 वर्गमीटर की क्यारी में मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
- पौधशाला की मिट्टी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिड़काव करें।
मुख्य फसल
- पौध रोपण के समय पौध की जड़ों को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी के घोल में 10 मिनट तक डुबो कर रखें।
- पौध रोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से 3 छिड़काव इमीडाक्लोप्रिड या एसीफेट के करें। माइट की उपस्थिति होने पर ओमाइट का छिड़काव करें।
- फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए इन्डोक्साकार्ब या प्रोफेनोफॉस का छिड़काव करें।
- ब्याधि के उपचार के लिए बीजोपचार, कार्बेन्डाजिम या मेंन्कोजेब से करना चाहिए। खड़ी फसल में रोग के लक्षण पाये जाने पर मेंटालेक्सिल + मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का धोल बनाकर छिड़काव करें। चूर्णी फफूँद होने पर सल्फर के धोल का छिड़काव करें।
फलों की तुड़ाई एवं उपज
शिमला मिर्च के फलों की तुड़ाई हमेशा पूरा रंग व आकार होने के बाद ही करनी चाहिए तथा तुड़ाई करते समय 2-3 से.मी. लम्बा डण्ठल फल के साथ छोड़कर फल को पौधों से काटा जाना चाहिए। वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर संकर शिमला मिर्च की औसतन पैदावार 700-800 क्विंटल प्रति हेक्टयेर तक प्राप्त हो जाती है ।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।