पोषण वाटिका में सब्जी की खेती      Publish Date : 12/02/2025

                              पोषण वाटिका में सब्जी की खेती

                                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

सब्जियों की खेती को उसके उद्देश्य, उगाने के ढंग एवं बेचने के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

                                                               

  • रसोईघर के लिए सब्जी की खेती या पोषाहार बगीचा।
  • बाजार के लिए सब्जियों की खेती या व्यावसायिक तौर पर सब्जियाँ की खेती।
  • ट्रक गार्डनिंग या अदला - बदली की सब्जियों की खेती।
  • संसाधनों के लिए सब्जियों की खेती।
  • बल द्वारा सब्जियों की खेती।
  • बीज उत्पादन के लिए सब्जियों की खेती।
  • तैरती हुई सब्जियों की खेती।

रसोईघर के लिए सब्जी की खेती या पोषाहार बगीचा

                                                                     

सब्जी उगाने का यह प्राचीन ढंग है। प्राचीन समय से प्रत्येक व्यक्ति अपने उपभोग या खाने के लिए सभी भोज्य पदार्थ स्वयं उगाता था। यह खेती घर के पास स्थिति भूमि में की जाती है। अतः इसे रसोईघर की सब्जियों का उत्पादन या नया नाम पौष्टिक आहार का बगीचा कहते है। पोषाहार वाटिका से व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्ति संबंधित है चाहे वह शहर का रहने वाला हो या गाँव का। अंतर केवल इतना है कि शहर में जमीन की कमी के कारण मकान की छतों पर मिट्टी डालकर या बरामद में मिट्टी डालकर बर्तनों, गमलों इत्यादि में क्रमशः फूल एवं सब्जियों की खेती करते हैं। जबकि, गाँव में भूमि की प्रचुरता के कारण हल एवं बैलों का भी प्रयोग कर लेते हैं।

पौष्टिक गृह वाटिका के लाभ

1. स्वास्थ्य संबंधी लाभ - यह मनोरंजन एवं व्यायाम का अच्छा साधन है। इसमें शारीरिक श्रम करने से शरीर की की मांसपेशियां मजबूत रहती हैं तथा सब्जियों के सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है। इससे स्वच्छ वायु मिलती है। ताजी सब्जियाँ मिलती हैं, जिसमें प्रचुर मात्रा में खनिज लवण तथा विटामिन होते हैं, जो हमारे शरीर की तन्तुओं को स्वस्थ रखते हैं।

2. धन संबंधी लाभ - इससे बाजार से सब्जियाँ कम से कम खरीदनी पड़ती है जिससे पैसे की बचत होती है।

3. समय की बचत - चूंकि हम जब चाहें इसके माध्यम से ताजा एवं अच्छे गुणों वाली सब्जियों को प्राप्त कर सकते हैं साथ ही बाजार जाकर सब्जी खरीदने में जो समय बर्बाद होता है उससे बचा जा सकता है। अतः धन एवं समय दोनों की बचत करना बुद्धिमानी संबंधी लाभ हुआ।

4. प्रशिक्षण संबंधी लाभ -  यह प्रशिक्षण का अच्छा साधन है क्योंकी इसमें घर के बच्चों को इसे देखने का एवं प्रश्न पूछने का अवसर मिलता है। इससे कृषि के प्रति उनका शुरू से ही झुकाव पैदा होगा और आगे चलकर वे एक उन्नतिशील किसान बन सकते हैं। मनोविज्ञानिक दृष्टिकोण से अपनी उगाई हुई सब्जियाँ, बाजार की सब्जियों से कहीं अधिक स्वादिष्ट होती है।

गृह वाटिका का आकार-प्रकार

                                                               

एक आर्दश गृहवाटिका के लिए 25 मीटर लंबा ×10 मीटर चौड़ा यानी 250 वर्गमीटर क्षेत्र पर्याप्त होता है। इस भूमि से अधिकतर पैदावार लेकर पूरे वर्ष ऐसे परिवार के लिए सब्जियों की प्राप्ति की जा सकती है जिसमें पति, पत्नी के अतिरिक्त तीन बच्चें हों।

स्थिति एवं आकार - पौष्टिक गृह वाटिका की स्थिति घर के आस-पास होनी चाहिए। घर के आस-पास पर थोड़ा सा भी समय मिलने पर कार्य आदि करें में सुविधा रहती है। साथ ही रसोईघर का फालतू पानी सिंचाई के रूप में काम आ जाता है। जहाँ तक रसोईघर के बाद के आकार का संबंध है, वह भूमि की उपलब्धता, परिवार के सदस्यों की संख्या एवं फालतू समय आदि पर निर्भर करता है। लगातार खेती एवं अंतरू खेती को अपनाते हुए 250 वर्गमीटर जमीन से पांच व्यक्ति के लिए वर्ष भर ताजी सब्जी प्राप्त की जा सकती है। जहाँ तक संभव हो बाग़ का आकार आयताकार होना चाहिए ताकि कृषि कार्य करने में सुविधा हो सके।

पौधे लगाने की योजना - बहुवार्षीय पौधों को एक तरफ लगाना चाहिए ताकि एक दुसरे पौधों के ऊपर छाया न पड़े तथा साथ ही एक वर्षीय सब्जियों के फसल चक्र एवं उनके पोषक तत्वों की मात्रा में बाधा न पड़े।

स्थान का अधिकतम उपयोग निम्न प्रक्रार से कर सकते हैं

1.   बाग़ के चारों तरफ बाड़ का प्रयोग करें जिसमें तीन तरफ वर्षा एवं गर्मा वाली, लतादार सब्जियों के पौधों को चढ़ाना चाहिए। इसके लिए जाड़े के मटर या सेम का प्रयोग करें।

2.   लगातार एवं साथ - साथ फसलों को उगाने की पद्धति को अपनाना चाहिए।

3.   मेड़ों पर (दो क्यारियों के बीच) जड़ों वाली सब्जियों को उगाना चाहिए।

4.   फसल चक्र को अपनाना चाहिए।

5.   बाग़ के दानों तरफ दो कोणों पर दो खाद गड्डे होने चाहिए।

6.   किनारे- किनारे छोटा फलदार वृक्ष जैसे पपीता, नींबू, केला, आम (आम्रपाली) अमरुद, अनार इत्यादि लगाना चाहिए।

फसल व्यवस्था

बाग की बोआई करने से पहले ही योजना बना लेनी चाहिए जिसमें निम्न बातें आती हैं-

1.   क्यारियों की स्थिति

2.   उगायी जाने वाली फसल

3.   बोने का समय

4.   पौधे एवं कतारों के बीच की दूरी

5.   प्रयोग की जाने वाली फसल की जातियाँ या किस्में

6.   अंतः फसलें

7.   लगातार फसलें लेना

इस तरह योजना ऐसी बनायें कि सालभर लगातार सब्जियों की उपलब्धि होती रहे।

निम्न प्रकार की फसल लेने की पद्धति रसोई बाग़ के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध हुई है

प्लाट न.              सब्जियों के नाम समय

1.   पत्तागोभी के साफ सलाद अंत: फसल एक रूप में ग्वारफली और फ्रेंचबीन नवंबर-मार्च

2.   फूलगोभी के साथ गांठगोभी अंत: फसल के रूप में सितंबर-फरवरी

    बोदी (ग्रीष्म ऋतु)    मार्च-अगस्त

    बोदी (वर्षा ऋतु) जुलाई-नवंबर

    मूली नवंबर-दिसंबर

    प्याज दिसंबर-जनवरी

3.   आलू नवंबर-मार्च

    बोदी मार्च-जून

    फूलगोभी (अगेती फसल)   जुलाई-अक्टूबर

4.   बैंगन (लंबा) के साथ पालक अंतः फसल के रूप में    जुलाई-अक्टूबर

    भिण्डी के साथ चौलाई अंतः फसल के रूप में    जुलाई-जून

5.   बैंगन (गोल) के साथ पालक अंतः फसल के रूप में अगस्त-अप्रैल

    भिण्डी के साथ चौलाई अंतः फसलों के रूप में    मई-जुलाई

6.   मिर्च     सितंबर-मार्च

    भिण्डी    जून-सितंबर

बहुवर्षीय प्लाट

निम्न पौधे उगाए जा सकते हैं

सहजन    एक कतार

केला एक कतार

पपीता    पांच कतार

टैपिओका  दो कतार

करीलिफ  एक कतार

एसपैरगास छोटी कतार

रास्ते के दोनों तरफ भूमि को, पट्टी वाली सब्जियों या अदरक को उगाकर उपयोग किया जा सकता है।

वाड के दरवाजे की तरफ सेम को चढ़ाना चाहिए। तभी अन्य तीन तरफ मटर और इसके बाद कद्दू, लौकी, नेनुआ, झींगी, खीरा तथा गर्मियों में ककड़ी को चढ़ाना चाहिए।

इस प्रकार उपर्युक्त बाग़ से 1.5 किलोग्राम ताजी सब्जी प्रतिदिन प्राप्त की जा सकती है।

बाजार के लिए सब्जियों की खेती

                                                         

यह सब्जी उत्पादन की वह शाखा है जिसके अंतर्गत सब्जियों के उत्पादन स्थानीय बाजारों के लिए किया जाता है। यह सब्जियों की खेती में सबसे गहनतम खेती की किस्म है। पहले जब यातायात के साधन का अभाव था तब इसकी उपयोगिता शहर के 15-20 किलोमीटर के क्षेत्र तक ही सीमित था। परंतु यातायात के साधन के विकास के साथ-साथ अब यह क्षेत्र, काफी बढ़ गया है। 500 किलोमीटर दूर-दराज इलाकों में सब्जी उगाकर बाजार में पहुंचाई जाती है। जैसे- राँची से सब्जियाँ कलकत्ता भेजी जाती हैं। यह सब यातायात के साधनों के ऊपर ही साधनों के ऊपर ही निर्भर है। इसमें ख्याल रखा जाता है कि गहन कृषि कार्य तो तथा अच्छा बाजार मूल्य प्राप्त हो।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।