सब्जियो की स्वस्थ पौध नर्सरी में तैयार करने की तकनीक      Publish Date : 05/02/2025

         सब्जियो की स्वस्थ पौध नर्सरी में तैयार करने की तकनीक

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

नर्सरी एक ऐसा स्थान है, जहां अंकुर, पौधे, पेड़, झाड़ियाँ और अन्य पौध सामग्री को तब तक उगाया और बनाए रखा जाता है जब तक वे स्थायी स्थान पर रोपण के लिए तैयार नहीं हो जाते हैं। नर्सरी प्रबंधन एक तकनीकी और कौशल उन्मुख कार्य है, जिसमें गुणवत्तापूर्ण पौध के उत्पादन हेतु विभिन्न चरणों में उचित ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

                                                             

कुछ सब्जियों को उनकी शुरुआती वृद्धि अवधि के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। ये ऐसी सब्जियां हैं जिन्हें सीधे खेत में नहीं बोया जा सकता है। प्रारंभिक चरण के अंकुरों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है जो केवल नर्सरी में संभव हो पाता है।

सब्जीयो की नर्सरी या पौध का उद्देश्य

  • बेहतर गुणवत्ता एवं वांछित संख्या में पौध का उत्पादन।
  • सही समय एवं सस्ती लागत पर वांछित पौधों का उत्पादन।
  • नर्सरी में कम जगह पर आसानी से अधिक पौधे तैयार किए जा सकते है। कम जगह होने के कारण पौधों को उपयुक्त जलवायुवीय दशाएं आसानी से प्रदान की जा सकती है। जबकि खुली जगह में ऐसी सुविधाएं देना संभव नहीं होता है। कम क्षेत्र के कारण पौधों में होने वाली बीमारियों और कीटों का आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • नर्सरी में उगाई जाने वाली फसल की पौध काफी जल्दी तैयार हो होती है और बाजार में इसकी कीमत अधिक मिलती है और इसलिए आर्थिक रूप से अधिक लाभदायक होता है।
  • चूंकि सब्जियों के बीज महंगे होते हैं, खासकर संकर किस्म के इसलिए हम नर्सरी में बीज बोकर उनकी अंकुरण प्रतिशत वृद्धि कर सकते हैं।

नर्सरी स्थापना करने की प्रक्रिया

सब्जी नर्सरी के लिए स्थान का चयन

नर्सरी के लिए साइट चयन करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है इसके लिए आप निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखें।

  • नर्सरी क्षेत्र को पालतू और जंगली जानवरों से बचाने के लिए अच्छी तरह से बाड़ लगाई जानी चाहिए।
  • यह क्षेत्र जल स्रोत के पास होना चाहिए।
  • क्षेत्र जलभराव से मुक्त होना चाहिए।
  • रोपाई के लिए नर्सरी मुख्य खेत के पास होनी चाहिए।
  • नर्सरी क्षेत्र को दक्षिण.पश्चिम दिशा से सूर्य का प्रकाश प्राप्त करना सबसे उपयुक्त होता है।
  • जल निकासी की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए।

नर्सरी मिट्टी की गुणवत्ता

पौध उगाने के लिए उपजाऊ और स्वस्थ मिट्टी की आवश्यकता होती है। मिट्टी दोमट से बलुई दोमट होनी चाहिए। मिट्टी में अच्छा कार्बनिक पदार्थ और वातित होना चाहिए। मिट्टी की बनावट न तो अधिक खुरदरी होनी चाहिए और न ही बहुत महीन। मिट्टी का पीएच लगभग 6 से 7 के बीच होना चाहिए। मिट्टी सामान्य रूप से सभी आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होनी चाहिए।

नर्सरी मिट्टी की तैयारी कैसे करे

इसके लिए नर्सरी भूमि की गहरी जुताई या तो मिट्टी पलटने वाले हल से या कुदाल से और बाद में 2 से 3 बार कल्टीवेटर से करने की आवश्यकता होती है। उसके बाद खेत से सभी पत्थरों और खरपतवारों को हटा देना चाहिए और जमीन को समतल कर देना चाहिए।

2 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई और खेत की खाद/कम्पोस्ट या लीफ कम्पोस्ट या 500 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट प्रति वर्ग मीटर मिलाकर मिट्टी में मिला दें। यदि मिट्टी भारी है तो प्रति वर्ग मीटर 2 से 3 किलो रेत मिलाएं ताकि बीज अंकुरण में बाधा न हो।

सब्जी पौधशाला में क्यारियां तैयार करना

पौधाशाला में क्यारियां बनाते समय मिट्टी की अच्छी तरह से जुताई एवं गुडाई करके बारीक एवं भूरभूरी बना लेना चाहिए। पौधशाला क्षेत्र में से पूर्व फसल के अवशेष तथा खरपतवारों आदि को इक्ट्ठा करके दबाना या जला देना अच्छा रहता है। अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की  खाद 20 किग्रा प्रति वर्ग मी की दर से मिट्टी में बुवाई से 15 से 20 दिन पूर्व अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए।

पौधाशाला में क्यारियों को चौड़ाई 50 सेमी से 75 सेमी तथा लम्बाई सुविधा अनुसार रखना चाहिए, तथा क्यारियों की ऊँचाई 15 सेमी रखना अच्छा रहता है। दो क्यारियों के बीच उचित दूरी 50 सेमी रखनी चाहिए। जिससे खरपतवार निकालने गुड़ाई एवं सिंचाई में कोई बाधा उत्पन्न न हो। क्यारियों का मध्य भाग उठा होना चाहिए तथा किनारे का भाग थोड़ा सा ढालू होना चाहिए।

बीज शैय्या तीन प्रकार की होती है

(अ) समतल क्यारियां.

जिन क्षेत्रों में बसंत और गर्मी के मौसम में बरसात नहीं होती अथवा मिट्टी हल्की बलुई से बलुई दोमट होती है और पानी नहीं रुकता है उन क्षेत्रों में इस प्रकार की क्यारियाँ बनाई जाती है। इन क्यारियों के निर्माण के लिए पहले खेत की दो.तीन वार जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है। इसमें 10 किग्रा गोबर की अच्छी सड़ी खाद को प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिला दिया जाता है

(ब) उठी हुई क्यारियां

सामान्यतः इस प्रकार की क्यारियों का उपयोग नर्सरी में बीज बोने के लिए किया जाता है। उठी हुई क्यारी बारिश के दिनों में भी लाभदायक होती है। भारी मिट्टी में बारिश के दिनों में आद्र विगलन की अधिक समस्या पाई जाती है इस लिए इस प्रकार की क्यारी जमीन से 10 से 15 सेमी उठी हुई होने के कारण बीमारी का प्रकोप कम होता है।

क्यारी का निर्माण करते समय मिट्टी में से कंकड़, पत्थर पोधों की जड़े आदि को निकाल दिया जाता है फिर 10 किग्रा गोबर की अच्छी सड़ी खाद को प्रति वर्ग मीटर की दर से मिला दिया जाता है। दो क्यारियों की लाइनों के मध्य 50 से 60 सेमी की दूरी रखी जाती है, जिससे सिंचाई करने खरपतवार निकालने में उपयोग किया जाता है।

(स) गहरी क्यारी

गहरी क्यारियाँ गर्मी एवं सर्दी के मौसम में अधिक उपयोगी रहती है ऐसी क्यारियां जमीन से 10 से 15 सेमी गहरी होती है जिस से पोधे ठंडी हवा से बच जाते है अधिक सर्दी में क्यारी को पॉलिथीन की शीट से ढका भी जा सकता है।

बीज की क्यारियों में बुवाई

  • बुआई के लिए हमेशा रोगरहित बीज का उपयोग करना चाहिए।
  • बीज की बुवाई पक्तियों में तथा पंक्ति से पंक्ति पंक्ति की दूरी 5 सेमी रखना चाहिए।
  • बीज को 2 से 3 सेमी की गहराई पर बुवाई करना चाहिए।
  • बीजाई के समय क्यारियों में पर्याप्त नमी होना चाहिए अन्यथा बुवाई पूर्व अच्छे गुणवत्ता वाले पानी से क्यारियों की सिंचाई करके ही बुवाई करना चाहिए।
  • बीजों की बुवाई के बाद उथली क्यारियों को धान की पुआल या सुखी घास या पोलीथीन से ढकना चाहिए। जिससे नमी का ह्रास ना हो।
  • अकुंरण के बाद जब पौधे 2 से 3 सेमी के हो जायें जो बिछावन को उतार देना चाहिए।
  • बीज की बुवाई के बाद लाइनों को भूरभूरी मिट्टी या मिट्टी एवं खाद के मिश्रण से ढक कर समतल करना चाहिए।
  • क्यारियों में पानी फवारे से लगना चाहिए तथा खरपतवारों को समय-समय पर निकालना चाहिए।
  • पौधशाला को अधिक गर्मी तथा तेज धूप से बचाव के लिए दिन में सिरकी या छायादार नेट से ढकना चाहिए।
  • छायादार नेट, सिरकी से अधिक उपयोगी रहते हैं, क्योंकि इसमे से धूप पौधों को भी मिलती रहती है तथा गर्मी बचाव भी होता है।
  • पौधाशाला को पाले से बचाव के रात के समय पोलीथीन से ढक कर बचाव कर सकते है।

बुवाई पूर्व बीज का उपचार

बीज को बुवाई से पूर्व कवकनाशी दवाओं जैसे केप्टान, थीरम, सेरेसन की 2 से 5 से 3 ग्राम दवा की मात्रा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बीज को बाविस्टीन की 2 ग्राम मात्रा प्रति किग्रा बीज की दर से पूरी तरह उपचारित करना चाहिए।

नर्सरी में शेडिंग का उपयोग

बीज अंकुरण के लिए मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए गर्म मौसम के दौरान धान के भूसे या गन्ने के कचरे या सरकंडा या किसी भी जैविक गीली घास की पतली परत के साथ बीज बिस्तर को कवर करें और ठंडे मौसम में प्लास्टिक गीली घास से ढक दें।

इसके निम्नलिखित फायदे हैं यह बेहतर बीज अंकुरण के लिए मिट्टी की नमी और तापमान को बनाए रखता है। यह खरपतवारों का दमन करता है। सीधी धूप और बारिश की बूंदों से बचाता है और पक्षी क्षति आदि से बचाता है।

नर्सरी में पानी का उपयोग

नर्सरी क्यारियों को बीज के अंकुरित होने तक गुलाब की कैन से हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त वर्षा जल या सिंचित जल को खेत से बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा पानी की अधिकता के कारण पौधे मर सकते हैं। क्यारियों में पानी देना मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि तापमान अधिक हो तो खुली सिंचाई करें। बरसात के दिनों में क्यारियों की सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं है।

नर्सरी में खरपतवार नियंत्रण

स्वस्थ अंकुर प्राप्त करने के लिए नर्सरी में समय पर निराई-गुड़ाई करना महत्वपूर्ण है. इसलिए उन्हें मैन्युअल रूप से हटा दें या बीज बोने के बाद नर्सरी बेड पर 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में स्टॉम्प जैसे शाकनाशी का छिड़काव करना चाहिए।

विटामिन और फ़ूड सप्लीमेंट

नर्सरी में कीट एवं रोग प्रबंधन

आमतौर पर कीड़ों एवं रोग से होने वाले नुकसान को नर्सरी क्षेत्र की बेहतर स्वच्छता बनाए रखने उपयुक्त रासायनिक और जैविक कीटनाशकों के आवश्यकता .आधारित अनुप्रयोग द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

पौधों को रोपाई के लिए कठोर एवं मजबूत बनाना

पौधों को खेत में रोपाई के 5 से 8 दिन पूर्व पोधशाला की क्यारियों में पानी लगना बन्द कर देना चाहिए तथा सिरकी या पोलीचीन या छायादार नेट आदि को भी हटा देना चाहिए। इस प्रक्रिया को हार्डनिंग कहते है। पौधों को क्यारियों से निकालने के एक दिन पूर्व पानी लगना चाहिए। जिससे पौधों के निकालते समय जड़ों को नुकसान न हो। सख्त होने से कम तापमान उच्च तापमान और गर्म शुष्क हवा जैसे प्रतिकूल वातावरण में पौधों का सामना करने में मदद मिलती है।

पौध को खेत में रोपाई करते समय सावधानियां

  • रोपाई के लिए उपयुक्त अवस्था एवं ऊचाई के स्वस्थ पौधों को रोपाई के लिए इस्तेमाल में लाना चाहिए।
  • पौध रोपण कार्य गर्मी के मौसम में शाम के समय तथा सदी के मौसम में किसी भी समय कर सकते हैं।
  • क्यारियों को समतल बनाकर रोपाई से 3 से 4 दिन पहले तैयार पलेवा करके रोपाई करना चाहिए।
  • रोपाई के समय पौध खेत में गिरना नहीं चाहिए।
  • रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए। तथा 3 से 4 दिन बाद मरे हुए पौधों को नये पौधों से बदल कर  पानी लगाना चाहिए।

नर्सरी के व्यवसाय में कमाई

                                                      

नर्सरी के व्यवसाय में कमाई लागत से दोगुनी से ज्यादा ही होती है। यह व्यापार आपकी मेहनत और मांग पर निर्भर करता है। कुछ पौधे बीज से पैदा होते है तो कुछ के लिए ग्राफ्टिंग करनी पड़ती है। दोनों ही कामों के लिए ज्यादा पैसे की जरूरत नहीं है, क्योंकि छोटे से छोटे पौधे की भी कीमत लगभग 50 रुपए तो होती ही है ।

अगर एक पौधे की लागत जोड़े तो मुश्किल से 10 से 15 रुपये आएगी। इस तरह इस बिजनेस में मार्जिन दोगुना से ज्यादा है। अगर आप एक दिन में 100 पौधे भी बेचते हैं तो आपकी इनकम रोजाना 5000 रुपये तक हो सकती है। लागत घटाने के बाद भी आपके हाथ में 300 से 3500 हजार रुपये आएंगे। इस तरह आप महीने में एक लाख रुपये तक कमा सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।