मटर की तैयार फलियों को नियमित रूप से तोड़ते रहें, नही तो हो सकता है पाउडरी मिल्डयू का प्रकोप      Publish Date : 31/01/2025

मटर की तैयार फलियों को नियमित रूप से तोड़ते रहें, नही तो हो सकता है पाउडरी मिल्डयू का प्रकोप

                                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

इस समय मटर की फसल की देखभाल कैसे करें इसके संबंध में कृषि विभाग में क्या एडवाइजरी जारी की है बता रहे हैं हमारे कृषि विशेषज्ञ-

                                                                    

रबी सीजन में मटर की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है। मटर की फसल का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मटर की फसल में फूल आने एवं शुरूआत के समय एक या दो सिंचाई करना लाभप्रद रहता है।

ऐसे में फूलों एवं पत्तियों की पाले से सुरक्षा करने के लिए भी सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। वहीं देर से बोई गई मटर की फसल में फली आने के बाद सिंचाई करनी चाहिए। अगेती फसल तो अब पकने की अवस्था में होगी, अतः उचित समय पर ही फसल की कटाई करनी चाहिए।

दिन के तापमान में बढ़ोतरी होने के कारण इस समय फसल की देखभाल करना अति आवश्यक होता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मटर की फसल पर इस समय पाउडरी मिल्डयू रोग का प्रकोप होने का खतरा हो सकता है।

इसके अलावा मटर में इस समय अन्य रोग भी हो सकते हैं। इनसे फसल को किस प्रकार बचाया जाए। इसके लिए कृषि विभाग में एडवाइजरी जारी की है, आईए जानते हैं इसके बारे में डिटेल से-

मटर में पाउडरी मिल्डयू रोग के प्रकोप की संभावना

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय मटर की फसल पर पाउडरी मिल्डयू रोग हो सकता है। इसमें पत्तियों के दोनों और व फलियों और तने पर सफेद चकते दिखाई देते हैं। मटर की फसल में यह रोग आने पर 500 ग्राम घुलनशील सल्फर या 80 मिली कैराथेन 40 ईसी को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना उचित रहता है।

मटर की तैयार फलियों को नियमित रूप से तोड़ते रहें और सिंचाई भी करते रहें। मटर के पत्तों में सुरंग बनाने वाले कीट और चेपा के आक्रमण से बचाने के लिए 400 मिलीलीटर रोगोर, 30 ईसी. को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। कीटनाशक के प्रयोग से पहले पकी हुई फलियों को तोड़ लें।

पत्ती में सुरंग बनाने वाला (लीफ माइनर) कीट

सरदाद वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मटर की फसल में इन दिनों पत्ती में सुरंग बनाने वाला (लीफ माइनर) कीट प्रकोप भी हो सकता है। इस कीट के लार्वा मटर के पौधों की पत्तियों पर सुरंग बनाकर पत्तियों का हरा पदार्थ खाते हैं। यह कीट मटर की फसल को काफी हानि पहुंचाता है। इसके प्रभाव से पत्तियों पर टेढ़ी-मेढ़ी पंक्तियां बन जाती हैं।

इसके नियंत्रण के लिए फरवरी के दूसरे सप्ताह तक या फूल आने से 15 दिनों पहले फसल पर 1.50 लीटर साइपरम्रेथिन या मिथाइल डैमीटान 0.025 प्रतिशत (100 मि.ली. मैटासिस्टॉक्स 25 ई.सी.) को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल पर 14 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। फलीबेधक कीट से मटर को इस प्रकार बचाएं

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि मटर की फसल में फलीबेधक कीट फलियों में छेद बनाकर मटर के बीजों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कारण फलियों पर सूक्ष्म छिद्रों से इनके मौजूद होने का पता लग जाता है।

फली निकलने की अवस्था में फसल पर इमिडाक्लोरोप्रिड 0.5 प्रतिशत या डाइमेथोएट 0.03 प्रतिशत का 400-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। शीघ्र पकने वाली प्रजातियों का उपयोग एवं समय से बुआई फलीबेधक के प्रकोप से बचाने में सहायक होते हैं।

माहूं कीट नियंत्रण

कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार मटर की फसल में माहूं कीट पत्तियों व मुलायम तनों से रस चूसकर एक ऐसा चिपचिपा पदार्थ भारी मात्रा में स्रावित करता है, जिसके द्वारा काली फफूंद का आक्रमण इन भागों में हो जाता है।

इसकी रोकथाम के लिए 0.05 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स या 0.05 प्रतिशत रोगोर के घोल का छिड़काव 15-20 दिनों के अंतराल पर फसल पर कीटों के दिखाई देते ही एक या दो बार आवश्यकतानुसार करें।

चूर्णिल आसिता रोग नियंत्रण कैसे करें

                                                                      

मटर की फसल में चूर्णिल आसिता रोग के कारण पत्तियों तथा फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है। रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते ही सल्फरयुक्त कवकनाशी जैसे सल्फेक्स 2.5 कि.ग्रा./हैक्टर या 3.0 कि.ग्रा./हैक्टर घुलनशील गंधक या कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या ट्राइडोमार्फ (80 ई.सी.) 500 मि.ली. की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल में 2-3 छिड़काव करें। रतुआ रोग से पौधों की वृद्धि रुक जाती है।

पीले धब्बे पहले पत्तियों पर और फिर तने पर बनने लगते हैं। धीरे-धीरे यह हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए हेक्साकोनाजोटा 1 लीटर या प्रोपिकोना 1 लीटर या डाइथेन एम-45 को 2 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर 2-3 छिड़काव करें एवं उचित फसल चक्र अपनायें।

लहसुन एवं सब्जी फसलों के लिए जारी की यह सलाह

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि लहसुन की नियमित रूप से सिंचाई भी करें और खरपतवार को भी निरंतर निकालते रहें। हानिकारक कीट व बीमारियों से भी फसल की रक्षा करें। इस समय लहसुन की फसल को देखना देखभाल करना अति आवश्यक है।

लहसुन की फसल पर पर्पल ब्लाच बीमारी के लक्षण जैसे जामुनी या गहरे भूरे धब्बे पतियों पर दिखाई दे तो 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत पर 10 से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करें। प्रयोग के समय घोल में चिपचिपापन होने पर 10 ग्राम सेल्वेट- 99 प्रति 100 लीटर घोल लाने वाला पदार्थ भी मिला लेना चाहिए।

पाले से प्रभावित बैंगन की फसल के पत्ते काट दें

बैंगन की पिछली फसल यदि पाले से मर गई हो तो उसकी पाला प्रभावित टहनियों व पत्तों को काटकर फेंक दें। खेत में उचित खाद व पानी दें। ऐसा करने से इन टहनियों में नए कल्ले फूटेंगे, जो बसंतकालीन अगेती फसल देंगे और इस फसल से अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।