मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें Publish Date : 01/01/2025
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
मटर की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इसकी फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम करना भी बहुत जरुरी है। मटर की फसल के मुख्य रोग जैसे चूर्णआसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा आदि रोग काफी हानि पहुचाते हैं।
जबकि मटर के कीटों में तना बेधक मक्खी, पत्ती सुरंगक और फली बेधक आदि प्रमुख हानिकारक कीट हैं जो मटर की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यदि किसान भाईयों को इन सबका उचित समय पर नियंत्रण चाहिए, इससे वह मटर की फसल से अपनी इच्छित पैदावार प्राप्त कर सकते है। हमारे आज के इस लेख में मटर की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण करने की विधि की विस्तृत जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया गया है।
मटर की फसल के रोगों का नियंत्रण
चूर्णसिता रोग - रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों पर सफेद चूर्ण जो बाद में हल्के काले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे मटर की उपज पर काफी बुरा असर पड़ता है।
रोग नियंत्रण के उपाय -
1. पौधे पर रोग के लक्षण देखते ही कैराधीन 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी या वैटेवल सल्फर 200 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी या बाविस्टीन 50 डब्लू पी या मैविटस्टीन 50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी या बेयलेटॉन 50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी या टापस 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी का छिड़काव करना उचित रहता है। यदि आवश्यक हो तो 10 से 15 दिन बाद इसका पुनः छिड़काव करना चाहिए।
2. टेबूकानोजोल 0.05 प्रतिशत 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी या हैक्साकोनाजोल 0.05 प्रतिशत 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी का 15 से 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
एसकोकाईटा ब्लाईट - इस रोग के लक्षणों में रोग से प्रभावित पौधे मुरझा जाते हैं और पौधों की जड़े भूरे रंग की हो जाती हैं। पत्तों तथा तनों पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं और अंत में पूरा पौधा मर जाता है।
नियंत्रण के उपाय
1. मोटे तथा स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें।
2. टेबूकानोजोल 0.05 प्रतिशत 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी या हैक्साकोनाजोल 0.05 प्रतिशत 50 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी का 15 से 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
3. समय पर बुवाई करें।
4. खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें।
5. सिंचाई करते समय सिंचाई का पानी हल्का रखें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।