करेले की बेमौसमी खेती      Publish Date : 23/12/2024

                              करेले की बेमौसमी खेती

                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

‘‘करेले की फसल एक महत्वपूर्ण एवं व्यवसायिक फसल है। करेले की खेती आर्थिक लाभ कमाने के लिए पॉलीहाउस सर्दियों के मौसम में भी की जा सकती है। इस तकनीक से शहरों और बाजारों के समीप स्थित गाँवों के किसानों के लिए बहुत अधिक लाभकारी साबित होती है। आमतौर पर यह फसल गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है, जबकि करेले की माँग बाजारों में सदैव ही बनी रहती है। अतः यदि करेले की फसल को पॉलीहाउस तकनीक की सहायता से सर्दियों के मौसम में भी उगाया जाए तो करेला मौसम के बिना भी मिल सकता है।’’

                                                                           

आमतौर पर पॉलीहाउस में खेत को मई माह के अंत से जून माह के दौरान मैदान क्षेत्रों खाली रखा जाता है। पूरे साल के लिए खेत की गहरी जुताई, समतलीकरण, खाद तथा दवाई आदि डालकर भूमि शोधन के अलावा पुराने पॉलीहाउस की रिपेयर, धुलाई, सफाई और क्यारी बनाने के जैसी क्रियाओं को किया जाता है। इन समस्त कृषि क्रियाओें का वर्णन इस प्राकर से है-

पॉलीहाउस में भूमि की तैयारी

पॉलीहाउस ऊँची और लम्बी क्यारियां बनो इन क्यारियों को अच्छी तरह से समतल बना लेना चाहिए और इसके बाद 5 कि.ग्रा. प्रतिवर्गमीटर की दर से गोबर, कम्पोस्ट की खाद अथवा वर्मीकम्पोस्ट खाद को अच्छी तरह सें खेत में फैलाकर 2-4 मिमी. प्रति लीटर पानी में फॉमेल्डीहाइड या दो चम्मच कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव कर इसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाने के बाद पुनः पारदर्शी पॉलीथिन से मिट्टी को दो सप्ताह तक ढक कर रखें। इस प्रकार से पॉलीहाउस के खेत में मृदा जनित रोग दूर हो जाते हैं और पूरे समय तक करेले का उत्पादन अच्छा बना रहता है।

पॉलीहाउस में जलवायु एवं सूक्ष्म वातावरण

पॉलीहाउस में करेले की खेती करने के लिए रात में 16-18 डिग्री सेल्सियस और दिन में 20-30 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं 60-80 प्रतिशत भूमि एवं वातावरण की आद्रर्गता की आवश्यकता होती है। यदि तापक्रम 10 डिग्री सेल्सियस से कम एवं आर्द्रता का स्तर 30 पगतिशत से कम होगी तो इससे करेले की परागण क्रिया प्रभावित होती है और इससे करेले के उत्पादन में गिरावट आती है तथा फलों का आकार भी अनियमित होता है।

पॉलीहाउस में करेले की बीज दर

औसतन कुल 1800 से 1850 बीज प्रति नाली (200 वर्ग मीटर क्षेत्रफल) या 10 ग्राम/नाली या 9 से 12 बीज प्रति वर्गमीटर की दर से करेले का बीज पर्याप्त रहता है। वहीं मैदानी क्षेत्रों के बड़े-बड़े पॉलीहाउससों में औसतन 1500 से 5000 बीज प्रति 1000 वर्ग मीटर वाले प्रति फसल की दर से पयाप्त रहता है।

करेले की रोपाई एवं बुवाई में उचित दूरी

पॉलीहाउस में करेला 30 से.मी. वाले ड्रिप लेटरल पर लगता है। यदि किसी कारण से ड्रिप लाइन नही भी लगती है तो करेले की पौध की आपसी दूरी 60 से.मी. एवं कतार से कतार की दूरी 90 से.मी. रखी जाती है।

पौध की रोपाई अथवा बुवाई करने का उचित समय

  • देश के मैदानी भागों में करेले की बुवाई करने का सबसे उचित समय सितम्बर और अक्टूबर का माह होता है।

पॉलीहाउस करेलाः पॉलीहाउस में करेला की फसल की शाखाओं की कटाई-छंटाई करना बहुत आवश्यक कार्य होता है। जिस समय पॉलीहाउस  में करेले की फसल 15 से 20 दिनों की हो जाए तो बेल की आरम्भिक एक दो शाखाओं को हटा देना चाहिए। इसके बाद मुख्य तने एवं शाखाओं को किसी रस्सी की सहायता से उसे निचले हिस्से को बाँध कर तने को रस्सी में लपेटते हुए पॉलीहाउस की छत की ओर ले जाते हुए बांध दिया जाता है।

करेले की कटाई-छंटाई के समय बरती जाने वाली सावधानियाँ

                                                        

  • पुरानी एवं रोग ग्रस्त शाखाओं को काटते रहना चाहिए, अन्यथा पोषक तत्वों के प्रति प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।
  • पौधों को लपेटने के लिए प्लास्टिक की रस्सी, पॉलीथीन टेप या सुतली की रस्सी का ही प्रयोग करें। छत में रस्सी को बांधने के लिए ऐसे जी. आई तार को बाधना चाहिए जिसमें पौधों के भार को सहन करने की क्षमता हो।
  • रस्सी को लपेटते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तने एवं शाखाओं पर लगे हुए फूल और पौधों के ऊपरी हिस्से आदि टूटने से बचे रहें अन्यथा करेले की उपज में कमी आ जाती है।
  • रस्सी को लपेटते हुए फूल रस्सी के नीचे दबने नही चाहिए, ऐसा होने से करेले का फल टूट जाएगा अथवा फल की गुणवत्ता भी खराब हो सकती है।

पॉलीहाउस में परागण क्रिया

करेले की बुवाई करते समय देश में उपलब्ध उत्तम प्रजातियों के बीज को ही लगएं। करेले में नर एवं मादा फूल एक ही पौधे पर अलग-अलग आते हैं। करेले में परागण क्रिया को अपने हाथों से करता हैं या फिर पालतू बम्बल मक्खी और मधुमक्खियों के डिब्बों को पॉलीहाउस के अंदर 1 से 2 घंटों के लिए रख देते हैं। हालांकि, करेले में परागण क्रिया प्रातः 7 से 10 बजे के बीच कराना अच्छा माना जाता है। वहीं हाथ से परागण क्रिया को कराने के लिए इसके नर फूल को तोड़कर मादा फूल के मुँह पर सटा देते हैं। इस प्रकार एक नरफूल से 2 मादा फूल का परागण करा देते हैं। इस प्रक्रिया को पौधों पर फूल आ जाने के बाद प्रतिदिन किया जाना चाहिए।

करेले में सिंचाई प्रबन्धन

पॉलीहाउस में यदि टपक सिंचाई प्रणाली उपलब्ध हो तो इसके माध्यम से घुलनशील उर्वरक एवं पानी दोनों एक ही साथ दिए जा सकते हैं। ध्यान रहे कि प्रारम्भ में पौधों को पानी कम मात्रा में ही दिया जाना चाहिए, नही तो फसल में कमर तोड़ (डेम्पिंग ऑफ) रोग के लगने की आशंका बढ़ जाती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबन्धन

पॉलीहाउस में खेत की तैयार करने से पहले 8 से 10 कि.ग्रा. प्रति वर्गमीटर की दर से गोबर की खाद, पत्ती की खाद आदि को मिलाकर देना चाहिए। इसी खाद के साथ 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 ग्राम पोटाश, 100 ग्राम नीम की खली और 1 से 2 चम्मच ट्राईकोडर्मा अथवा बाविस्टीन नामक फँफूदी नाशे दवा को मिलाकर एक सप्ताह के लिए छोड़ देना चाहिए और इसके बाद ही रोपण कार्य करें अथवा बीज लगाएं।

यदि यह सभी उर्वरक अलग-अलग नही मिल पा रहे हैं तो फसल में 200 ग्राम डी.ए.पी प्रति वर्गमीटर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए और यूरिया की 15-15 ग्राम की डोज पूरी फसल में प्रति वर्गमीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए। ध्यान रहे कि यूरिया का छिड़काव सदैव उस समय ही करे जब कि जमीन में नमी उपलब्ध हो।

पॉलीहाउस में करेला लगाना

                                                         

पॉलीहाउस के अंदर करेला दो प्रकार से लगाया जाता है। पहली विधि में सीधे बीज की बुवाई कर दी जाती है तो दूसरी विधि के अंतर्गत करेले की पौध बनाकर पौध रोपाई की जाती है। करेले की पौध बनाने के लिए प्लास्टिक की ट्रे, जिसको प्रो ट्रे अथवा नर्सरी ट्रे के नाम से भी जाना जाता है में, अथवा प्लास्टिक की छोटी-छोटी थेलियों में पौध को लगा दिया जाता है। इस प्रकार से करेले की नर्सरी पौध पॉलीहाउस के अंदर लगभग 20 से 25 दिन में रोपण करने के योग्य हो जाती है।

करेले के फलों की तुड़ाई करना

करेले की फसल बीज की बुवाई करने के लगभग 55 से 60 दिनों के बाद पहली तुड़ाई की जाती है और इसके बाद प्रति दूसरे या तीसरे दिन के अंतर पर करेले की तुड़ाई की जाती है। करेले के फलों को किसी तेज धार वाले चाकू अथवा कैंची आदि से काटना चाहिए। उत्तम खाद्य परिपक्वता अवस्था का ज्ञान व्यक्तिगत तौर पर और इसकी किस्म के ऊपर निर्भर करता है। आमतौर पर करले की तुड़ाई उसके कोमल और हरे बने रहने पर ही करना सही रहता है। करेले के फलों की कटाई विशेष रूप से प्रातः काल शाम के सामय ही करनी चाहिए।

करेले का भण्ड़ारण

करेले के फलों की तुड़ाई करने के बाद सामान्य रूप से 2 से 3 दिनों तक घरेलू कमरों में रखकर ही बेचा जा सकता है। परन्तु यदि करेले के फलों को शीतलन गृहों में भण्ड़ारित किया जाए तो इसके फलों की गुणवत्ता को लम्बे समय तक बनाए रखा जाना सम्भव है।

बेमौसमी करेले की खेती में लागत एवं प्राप्त होने वाला लाभ

                                                                       

पॉलीहाउस के अन्तर्गत प्रति हजार वर्ग मीटर में करेले की खेती से औसतन 100 से 120 क्विंटल की उपज प्राप्त हो जाती है। यदि इसे 30 रूपये प्रति कि.ग्रा. की दर से भी बचा जाए तो कुल 3,00,000 से 3,60,000 लाख रूपये तक प्राप्त हो जाते हैं। अब इस कुल आय में से 50,000 रूपये का खर्च निकाल दें तो लगभग 1,80,000 की शुद्व आय प्राप्त हो सकती है।

 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।