आर्थिकी सुधारने हेतु बेमौसमी सब्जियों का योगदान      Publish Date : 13/12/2024

                आर्थिकी सुधारने हेतु बेमौसमी सब्जियों का योगदान

                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं आकांक्षा

हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सब्जियों का विशेष महत्व है, जलवायु के ठण्डा होने के कारण यहाँ पैदा की गई सब्जियाँ मैदानी क्षेत्रों में की गई सब्जियों से अधिक सुगन्धित और स्वादिष्ट होती हैं। इसलिए ये सब्जियाँ बैमोसमी कहलाने के अलावा अधिक कीमती भी होती हैं। इसलिए पहाड़ी क्षेत्रों के किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है, क्योंकि इनकी प्रति इकाई पैदावार और लाभ कम समय में बहुत अधिक होता है।

                                                               

पहाड़ी क्षेत्रों की जलवायु भिन्नतापूर्ण होने से यहाँ की विभिन्न घाटियों में व दूसरे क्षेत्रों के सब्जियों के बीज उत्पादन के लिए अति उत्तम है। फलस्वरूप यहाँ सब्जियाँ, बेमौसमी सब्जियाँ वं उत्तम बीज उत्पादन उपयोग के लिए देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी उतना ही प्रसिद्ध है। हमारे भोजन में सब्जियों का विशेष स्थान है, क्योंकि इनमें विटामिन्स और खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं जो हमारे स्वस्थ शरीर के लिए एक वरदान स्वरूप ही हैं। भोजन को स्वादिष्ट व पाचन प्रणाली को ठीक करने के साथ-साथ शरीर को कई बीमारियों की रोकथाम करने में भी सहायक है।

1960 के दशक से पूर्व हमारा देश आत्मनिर्भर नहीं था। भोजन की जरूरत को पूरा करने के लिए विदेशों से अनाज तथा बीज करोड़ों रूपये खर्च करके मंगवाये जाते थे, लेकिन वैज्ञानिकों के भरसक प्रयत्नों से 1960-70 के दशक के बीच  ‘हरित क्रान्ति’ का आगमन हुआ। उत्तम किस्म के संकर बीज उपलब्ध हुए, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि हुई, सिंचाई की सुविधाएं बढ़ी व उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। धीरे-धीरे आयात कम होता गया तथा प्रतिवर्ष लाखों टन सब्जियाँ व बढ़िया किस्म का बीज, जिसका मूल्य करोड़ों रूपये आंका गया है, प्रदेश व अन्य पहाड़ी क्षेत्रों से बाहर देश के दूसरे भागों को भेजा जा रहा है तथा आज ऐसी स्थिती आ गई है कि हमारा देश आत्म निर्भर बन गया है।

प्रदेश व अन्य पहाड़ी प्रदेशों में विभिन्न जलवायु पाये जाने से वर्ष भर में सभी प्रकार की सब्जी एवं उत्तम बीज उत्पादन आसानी से किया जा रहा है, जिससे केवल प्रदेश का ही नहीं परन्तु यहाँ के छोटे व मझोले किसानों की आर्थिकी को सुधारने में दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति हो रही हैं। जैसे कि सोलन जिला के सपरून घाटी में किसान पछेती किस्म की फूलगोभी का बढ़िया बीज तैयार करके काफी लाभ अर्जित कर रहे हैं।

इसके साथ प्रदेश व अन्य क्षेत्रों के विभिन्न भाग बेमौसमी सब्जियों व विदेशी सब्जी उत्पादन के लिए काफी प्रसिद्ध हो रहे हैं। टमाटर, मटर, खीरा, बन्दगोभी, फूलगोभी, शिमला मिर्च, मूली, शलजम, गाजर और लौकी, इत्यादि किसानों की वित्तीय स्थिती सुधारने में विशेष योगदान कर रही है। कुछ सब्जियाँ जैसे मटर, बन्द गोभी और मूली इत्यादि तो वर्ष भर ही उपलब्ध रहती हैं।

इसके अलावा बगीचों के बीच खाली भूमि का भी उपयोग हो रहा है, बेमौसमी सब्जियों को उगाने के लिए तथा लगभग सभी सब्जियों की फसलें फसल चक्र के लिए उपयुक्त साबित हो रही हैं। पहाड़ी क्षेत्रों की ढलानदार व सीढ़ीदार खेतों की भूमि में अधिक सब्जियां उगाकर भू-क्षरण से हो रही हानि को भी रोका जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश में पिछले एक दशक में किसानों ने फसल विविधिकरण के अन्तर्गत बेमौसमी सब्जी उत्पादन को निरन्तर आगे बढ़ाने में विशेष योगदान दिया है। प्रदेश के लघु व सीमान्त किसानों ने विभिन कृषि जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप वैज्ञानिक विधि को अपनाकर अपनी कृषि आर्थिकी को मजबूत किया है।

वर्तमान आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में लगभग 72,000 है, क्षेत्र में सब्जी का भरपूर उत्पादन हो रहा है। जिससे किसान लगभग 14 लाख टन से अधिक विभिन्न सब्जियों का उत्पादन करके पड़ोसी राज्यों को ताजी एवं उच्च गुणवत्ता युक्त सब्जियाँ वर्ष भर उपलब्ध करवा रहे हैं।

बदलते मौसम के कारण सब्जियों की पैदावार व गुणवत्ता पर कुप्रभाव पड़ता है, जिसके कारण किसान भरपूर पैदावार नहीं ले सकते। पहाड़ी क्षेत्रों के किसान कुछ ऐसी तकनीकें अपना रहे हैं जिसके कारण वे खुले वातावरण की अपेक्षा अच्छी गुणवत्ता व अधिक सब्जी उत्पादन गुणवत्तायुक्त कर रहे हैं। इन्हीं तकनीकों में से पॉलीहाऊस तकनीक हिमाचल प्रदेश के किसानों में काफी लोकप्रिय हो रही है जिसमें किसान रंगीन शिमला मिर्च, टमाटर व पार्थिनोकार्षिक खीरे का बेमौसमी उत्पादन कर लाभ अर्जित कर रहे हैं।

                              सारणीः- हिमाचल प्रदेश में सब्जियों के

                                                     

सब्जी

क्षेत्रफल (हैक्टेयर)

उत्पादन (मीट्रिक टन)

टमाटर

2,366

53,578

शिमला मिर्च

1,044

9,563

मिर्च

800

6,400

बैंगन

1,252

4,960

भिण्डी

857

4,114

फ्रासबीन

2,037

19,200

खीरा वर्गीय

2,584

77,956

अदरक

3,800

55,590

मटर

8,000

80,000

फूलगाभी

1,690

23,800

बन्द गोभी

2,640

52,656

मूली

1,845

28,421

आलू

23,869

2,44,000

प्याज एवं लहसून

3,500

49,535

अन्य सब्जियाँ

15,716

6,29,776

 

प्रदेश के अनुकूल जलवायु के आधार पर सब्जियाँ उगाने के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का चयन किया गया है। कागंड़ा के समीप के क्षेत्र जैसे पपरोला, वैजनाथ, नगरोटा और जमानावाद तथा सोलन के समीप के क्षेत्र व अन्य स्थान जैसे चायल, राजगढ़, ठियोग, नंगवाई, बजौरा, चम्बा के डलहौजी, भरमौर मण्डी के जजैहली, गोहर व करसोग आदि बेमौसमी व विदेशी साब्जियों के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं।

इसके अतिरिक्त लाहौल, किन्नौर तथा सोलन के समीप क्षेत्र शीतोष्ण सब्जियों के उच्च गुणवत्ता वाले बीज उत्पादन के लिए उपयुक्त पाये गये हैं। मण्डी, सिरमौर, कुल्लु तथा चम्बा जिलों में भी बीज उत्पादन की क्षमता है। शीतोष्ण सब्जियों का बीज पहले विदेशों से आयात किया जाता था लेकिन अब हिमाचल प्रदेश पूरे राष्ट्र की मांग को पूरा कर रहा है। इसके अतिरिक्त बीज विदेशों को भी निर्यात किया जा रहा है। प्रदेश को जलवायु भूगोलिक स्थिति व सब्जी उत्पादन के आधार पर चार भागों में बांटा गया हैः

उप-उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र (निचले मैदानी क्षेत्र): इसमें प्रदेश के वे मैदानी क्षेत्र जिनकी ऊँचाई समुद्र तल से 914 मीटर तक की है तथा जहाँ पर 60-100 से.मी. वर्षा होती है। मैदानी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली सभी सब्जियाँ इस क्षेत्र में भी उगाई जाती है। परन्तु उनके बुआई के समय को थोड़ा पहले करना पड़ता है। यहाँ पर टमाटर, बैंगन, खीरा, शिमला मिर्च, फ्रासबीन तथा मटर का उत्पादन किया जाता है। इसके अतिरिक्त एशियन मूली (जापानीज व्हाइट और चाइनीज पिंक) शलजम (पर्पल टाप व्हाइट ग्लोब) और भिण्डी, मटर, मेथी व पालक का शुद्ध बीज पैदा किया जाता है।

उप समशीतोष्ण (मध्यवर्गीय पहाड़ी) क्षेत्रः इन क्षेत्रों में वे क्षेत्र आते हैं जो समुद्र तल से 915 से 1523 मीटर की ऊँचाई रखते हैं व वर्ष भर में 90 से 100 से.मी. वर्षा होती है। बेमौसमी सब्जियाँ जैसे टमाटर, फ्रासबीन, शिमला, मिर्च तथा अंदरक इत्यादि की खेती व्यापारिक स्तर पर कुछ चुने हुए क्षेत्रों में की जा रही है। फूलगोभी की पछेती किस्मों का बीजोत्पादन सोलन, सिरमौर तथा कुल्लु के आस-पास के क्षेत्रों में किया जा रहा है जहाँ पर ताजा सब्जियों को मण्डियों में भेजने की सुविधा कम है वहाँ पर शलजम, मूली, शिमला मिर्च, फ्रासबीन, भिण्डी और चुकन्दर इत्यादि का बीजोत्पादन किया जाता है।

                                                              

आर्द्र समशीतोष्ण (ठण्डे ऊँचे पर्वतीय) क्षेत्रः इनमें वे क्षेत्र आते हैं जो समुद्र तल से 1523-2742 मीटर तक की ऊँचाई पर स्थित हैं। यहाँ की जलवायु ठण्डी व नम है तथा यहाँ जर्ज वर्ष भर 100 से 200 से.मी. मानसून ऋतु में वर्षा होती है। नवम्बर से मार्च तक बर्फ पड़ने और अधिक ठण्ड के कारण सब्जियों के उगने में बाधा आती है। मैदानी क्षेत्रों में सर्दियों में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण सब्जियाँ जैसे मटर, फूलगोभी, बन्दगोभी, मूली, शलजम, गाजर चुकन्दर और हरी पत्तेदार सब्जियों को गर्मियों के महीने में उगाया जाता है तथा इन्हें मैदानी क्षेत्रों में बेमौसमी सब्जी के रूप में उपलब्ध करवाया जाता है। इस क्षेत्र के कुछ भागों में समशीतोष्ण सब्जियों का बीज उत्पादन भी किया जाता है।

ठण्डे व शुष्क समशीतोष्ण (शुष्क ऊँचे पर्वतीय) क्षेत्रः यह क्षेत्र समुद्र तल से 2800 मीटर की ऊँचाई से ऊपर स्थित हैं। प्रदेश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र लाहौल-स्पीति, किन्नौर, पाँगी व भरमौर शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में ग्रीष्म में 25 से 40 सै.मी. वर्षा, शरद ऋतु में 3से 5 मीटर बर्फ पड़ती है। जहाँ पर सिंचाई की व्यवस्था है वहाँ पर गर्मी के मौसम में कुछ सब्जियों की खेती की जाती है। लाहौल घाटी में अधिकतम क्षेत्र मटर की फसल के अन्तर्गत आता हैतथा अन्य सब्जियाँ बन्दगोभी, फूल गोभी, प्याज और जड़ वाली सब्जियाँ भी उगाई जाती हैं। इस क्षेत्र में समशीतोष्ण सब्जियों के उच्च गुणवत्ता वाले बीज तैयार किये जाते हैं। उदाहरणतयाः बन्द गोभी, चुकन्दर, चिकोरी, गाजर, मूली, शलजम की शीतोष्ण किस्मों व फ्रांसबीन का उत्तम बीज तैयार किया जाता है।

प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में सफल सब्जी उत्पादन हेतु जरूरी बातें जिन पर उत्पादन निर्भर करता हैः-

  • प्रदेश का अनुकूल जलवायु एवं प्राकृतिक आबो हवा जो कि सब्जी, सब्जियों के बीज व बेमौसमी और विदेशी सब्जियाँ उगाने के लिए अनुकूल है।
  • पहाड़ी क्षेत्र व घाटियाँ जिनकी भूमि उपजाऊ होने के कारण कम समय में सब्जियों की अधिक उपज व आमदनी अच्छी मिलती है।
  • सिंचाई की सुविधा का प्राकृतिक कुहलो, नालों, झरनों इत्यादि द्वारा आसानी से होना वर्षा व बर्फ का समय पर पड़ना इत्यादि।
  • किसानों की आर्थिक स्थिति का अच्छा होना।
  • सब्जियों की 2 से 3 फसलें वर्ष भर में उसी भूमि पर उगाना।
  • ठण्डी जलवायु होने के नाते कीड़ों व बीमारियों का कम प्रकोपः।
  • प्रदेश में विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विभाग, राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा समय-समय पर नई तकनीकों की जानकारी व बढ़िया बीज उपलब्ध करवाना।
  • यातायात के साधनों का अच्छा होना जिससे पैदावार को आसानी से दूसरे भागों में भेजा जाना विशेषकर दूरं स्थित क्षेत्रों में व पिछड़े क्षेत्रों में जमीन कम होने से सब्जी, बेमौसमी सब्जी व बीज उत्पादन के उत्साह में बढ़ावा।
  • प्रदेश एवं पहाड़ी क्षेत्रों में छोटी-छोटी सहकारी एवंअन्य समितियों का पुर्नगठन व संगठित तौर से सब्जियों एवं बीजों का परिवहन व मण्डीकरण सही समय पर उपयुक्त बाजार में भेज कर ऊँचे व अच्छे दामों पर बेचने में सहायक होना इत्यादि।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।