पालक की खेती वैज्ञानिक विधि से      Publish Date : 25/11/2024

                                     पालक की खेती वैज्ञानिक विधि से

                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु

हरी सब्जियों की खेती में पालक का एक विशेष स्थान है और देश के लगभग समस्त भागों और रबी, खरीफ एवं जायद तीनों ही मौसम में पालक की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। देश के अलग अलग क्षेत्रों में देशी पालक और विलायती, दो प्रकार के पालक को उगाया जाता है। देशी पालक की पत्तियाँ चिकनी, अण्ड़ाकार, छोटी एवं सीधी होती हैं तथा विलायती पालक की पत्तियों के सिरे कटे हुए होते हैं। देशी पालक की दो प्रजाति होती है हैं जिनमें से एक लाल तथा दूसरी हरे सिरों वाली होती है, जबकि हरे सिरों वाली पालक को अधिक पसंद किया जाता है।.

                                                                       

विलायती पालक में कंटीले बीज वाली तथा गोल बीज वाली दो किस्में होती हैं। इनमें से कंटीले बीज वाली प्रजातियाँ देश के पहाड़ी एवं ठण्ड़े क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है तो गोल बीज वाली प्रजातियाँ देश के मैदानी भागों के लिए उपयुक्त होती हैं। इसके अलावा पालक पालक विटामिन-ए, प्रोटीन, एस्कार्बिक एसिड, थाईमिन, राइबोफ्लेविन एवं नियासिन का एक समृद्व स्रोत होता है।

पालक के लिए उपयुक्त जलवायु

हरी पत्तियों वाली सब्जियों में पालक एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और पालक की सफल खेती के लिए ठण्ड़ी जलवायु उपयुक्त रहती है। सर्दियों के मौसम में पालक की पत्तियों की बढ़वार अच्छी होती है तथा बढ़े हुए तापमान में इनकी बढ़वार रूक जाती है। यही कारण है जिसके चलते पालक की खेती मुख्य रूप से शीतकाल में करना अधिक लाभदायक होता है। हालांकि पालक की खेती मध्यम जलवायु अर्थात न तो पूर्ण सर्द और न ही पूर्ण गर्म मौसम में पूरे साल की जा सकती है।

पालक की खेती के लिए उचित मृदा

                                                               

पालक की खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से की जा सकती है, परन्तु इसकी उत्तम उपज प्राप्त करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे अधिक उपयुक्त माना जाता है। पालक का उत्पादन हल्की अम्लीय मृदा में भी किया जा सकता है और इसकी खेती के लिए भमि का पीएच मान 6.0 से 6.7 के बीच अच्छा रहता है।

खेत की तैयारी

पालक की बुवाई करने से पहले खेती की दो से तीन अच्छी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके लिए कल्टीवेटर या हैरो से खेत की दो-तीन जुताई करनी चाहिए तथा जुताई करते समय खेत में उपलब्ध खरपतवारों को भी बाहर निकाल देना चाहिए। जुताई के दौरान खेत में 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद  और एक क्विंटल नीम खली अथवा नीम की पत्तियों से निर्मित खाद को खेत में मिला देना चाहिए। इस प्रकार खेत को अच्छी तरह से तैयार कर खेत में क्यारियाँ बना लेनी चाहिए।

पालक की बुवाई करने का उचित समय

आमतौर पर किसान पालक की खेती को पूरे साल कर सकते हैं, लेकिन फरवरी से मार्च और नवंबर से दिसंबर के महीनों में पालक की बुवाई करना विशेष लाभकारी सिद्व होता है।

पालक की उन्नत प्रजातियाँ

                                                            

पालक की खेती से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान को अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार ही इसकी पालक की प्रजातियों का चयन करना चाहिए। इसके लिए पालक की कुछ प्रचलित प्रजातियों का विवरण प्रस्तुत लेख में किया जा रहा है जो कि इस प्रकार से हैं-

ऑल ग्रीन पालकः- इस प्रजाति के पौधों के पत्ते एक समान हरे, और मुलायम होते हैं जो 15 से 20 के अंतराल पर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। पालक की इस प्रजाति की 6 से 7 कटाईयाँ आसानी से की जा सकती हैं। यह एक अच्छी उपज देने वाली प्रजाति है तथा सर्दियों के दिनों में बुवाई करने के लगभग 2.5 महीने के बाद इसके बीज एवं डण्ठल आ जाते हैं।

पूसा पालकः- पालक की यह प्रजाति स्विसयार्ड से संकरण कराकर विकसित किया गया है। इस प्रजाति के पत्ते एक समान हरे होते हैं। इस प्रजाति में जल्द फूल बनने वाले डण्ठल बनने की समस्या नही आती है।

पूसा हरितः- पालक की इस प्रजाति को देश के पर्वतीय क्षेत्रों में पूरे सालभर उगाया जा सकता है। इस प्रजाति के पौधें ऊपर की ओर वृद्वि करने वाले, ओजस्वी, गहरे हरे रंग वाले और आकार में बड़े होते हैं तथा इसकी कटाई कई बार की जा सकती है। इस प्रजाति में बीज बनने वाले डण्ठल काफी विलम्ब से बनते हैं। पालक की इस प्रजाति की की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु एवं क्षारीय भूमि में भी आसानी से की जा सकती है।

पूसा ज्योतिः- यह पालक की एक प्रभावी किस्म है, जिसमें काफी संख्या में मुलायम, रसीली और बिना रेशे वाली हरी पत्तियां आती है। इसके पौधे भी काफी बढ़ने वाले होते हैं जिसके कारण इसकी कटाई बहुत कम अंराल पर की जा सकती है। पालक की इस प्रजाति में ऑल ग्रीन प्रजाति की अपेक्षा पोटेशियम, कैलिशयम, सोडियम एवं एस्कार्बिक एसिड की मात्रा अधिक पायी जाती है। इस प्रजाति के पौधों की कुल 6 से 7 कटाईयाँ आसानी से की जा सकती है।

जोबनेर ग्रीनः- पालक की इस प्रजाति में एक समान हरे, गहरे हरे, बड़ें मोटे, रसीले तथा मुलायम पत्ते आते हैं। इसकी पत्तियों को पकाते समय यह आसानी गल जाती हैं। पालक की यह प्रजाति क्षारीय भूमियों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।

हिसार सलेक्शन-23:- पालक की इस प्रजाति पत्तियाँ बड़ी, गहरे रंग की मोटी, रसीली और मुलायम होती है। यह कम समय में तैयार होने वाली प्रजाति है और इसकी पहली कटाई बुवाई करने के 30 दिन बाद की जा सकती है और इस प्रजाति की कुल 6 से 7 कटाई प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर आसानी से की जा सकती हैं।

बीज की मात्रा एवं बुवाई

पालक की उन्नत प्रजातियों में 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करने के लिए पर्याप्त होता है। पालक के अच्छे जमाव के लिए बुवाई करने से पहले इसके बीज को लगभग 6 से 7 घंटें तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए। बुवाई के समय खेत में उचित नमी के स्तर का होना भी बहुत आवश्यक होता है। यदि पालक की बुवाई पंक्तियों में की जा रही है तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी. ही रखना चाहिए। जब पालक की बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती है तो इस दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि पालक के बीज अधिक पास-पास न गिरें।

खाद एवं उर्वरक

25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 क्विंटल नमी की खली अथवा नीम की पत्तियों की सड़ी हुई खाद को बुवाई से पहले खेत में बिखेरकर जुताई कर अच्छी तरह से खेत में मिला देनी चाहिए। यदि किसान रासायनिक खाद का प्रयोग करना चाहते हैं तो 100 किग्रा. नाइट्रोजन, 50 किग्रा. फॉस्फोरस एवं 60 किग्रा. पोटेशियम प्रति हेक्टेयर की दर से पालक की फसल में करना चाहिए। अंतिम जुताई के समय 20 किग्रा. नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा को एक समान रूप से खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष 80 किग्रा. मात्रा को चार बराबर भागों में बाँटकर, पालक की फसल की प्रत्येक कटाई के बाद इसके एक भाग को खेत में डाल देना चाहिए।

यहाँ एक बात यह भी ध्यान करने योग्य है कि पहले दिन उर्वरक के छिड़काव के बाद दूसरे दिन खेत की सिंचाई हर हालत में कर देनी चाहिए। ऐसा करने से पौधों की जड़ें पोषक तत्वों की अपनी खुराक को सुगमता से ग्रहण कर लेती हैं और दूसरी कटाई के लिए फसल जल्दी ही तैयार हो जाती है।

पालक में सिंचाई की व्यवस्था

यदि किसी कारणवश फसल की बुवाई के समय खेत में नमी का स्तर कम हो तो पाक में बुवाई के तुरंत बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। पालक की फसल को पानी की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए समय समय पर निरंतर सिंचाई करते रहना चाहिए। सर्दियों के मौसम की फसल में 8 से 10 दिनों के बाद तथा जायद की फसल की हल्की सिंचाई 2 से 3 दिनों में करते रहना आवश्यक होता है क्योंकि पालक के अच्छे उत्पादन में सिंचाइ्र एक बड़ा योगदान रहता है।

यदि पाक की बुवाई गमलों में की है तो गमले में उपलब्ध नमी के अनुसार 2 से 3 दिन के बाद तथा जायद के मौसम में प्रतिदिन शाम के समय पानी देते रहने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। गमलों में पानी देते समय ध्यान रखें कि पानी की धार से पौधे टूट न पाएं अतः गमले में फव्वारे के ऊपर की ओर से पानी देना सुनिश्चित् करें।

पालक में खरपतवार नियंत्रण कैसे

यदि पालक की क्यारी में कुछ खरपतवार के पौधें हों तो उन्हें तुरत ही उखाड़ कर फेंक देना चाहिए। यदि पौधें कम संख्या में अंकुरित हुए हों तो उस समय खुरपी या कुदाल की सहायता से गुड़ाई करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। पालक की फसल में रबी के मौसम में खरपतवार अधिक हो जाते हैं तो इन खरपतवारों को पहली और दूसरी सिंचाई के बाद खेत की निराई गुड़ाई करते समय इन्हें तुरंत ही खेत से बाहर निकाल देना चाहिए। इस प्रकार पालक की फसल की 2-3 सिंचाई करना आवश्यक होता है। ऐसा करने से फसल की उपज अच्छी मिलती है।

पालक में कीट एवं रोग नियंत्रण

आमतौर पर पालक की फसल में रोग का आक्रमण कम होता है और यदि फसल की बुवाई बीजोपचार करने के बाद की जाती है तो रोग की संभावना और भी कम हो जाती है। इसके उपरांत भी फसल में रोग लग जाए तो इसके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत ब्लाईटॉक्स का 2 किग्रा. प्रति हेक्टर की दर से प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव करने चाहिए।

पालक की फसल में माहू, बीटल और कैटरपिलर आदि कीट इसकी फसल को नुकासान पहुँचाते हैं। इन कीटों के प्रबन्धन एवं रोकथाम के लिए 1 लीटर मैलाथियॉन को 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना उचित रहता है। इसके साथ ही मिथाईल पैराथियान 50 ई0 सी0 1.5 लीटर का 700 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर इस घोल का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना उचित रहता है।

फसल की कटाई

ब्ुवाइ्र करने के लगभग 20 से 25 दिनों के बाद पालक की पहली कटाई की जा सकती है और इसके बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 6 से 7 कटाई कर सकते हैं।

उपज

                                                              

यदि ऊपर बताए गए तरीके से पालक की खेती और उसकी सही प्रकार से देखभाल की जाए तो 100 से 125 क्विंटल तक हरी पालक प्रति हेक्टेयर तक आसानी से प्राप्त की जा सकती है। यदि पालक की खेती बीजोत्पादन के नजरिये से की जा रही है तो 10 से 17 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।