रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता कुफरी नीलकंठ आलू      Publish Date : 08/11/2024

           रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता कुफरी नीलकंठ आलू

                                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हम सब अच्छी तरह से जानते हैं कि आलू को सब्जियों का राजा कहा जाता है और शायद ही कोई ऐसा रसोईघर हो जिसमें आलू दिखाई न दे। आलू बहु उपयोगी होता है फिर चाहे उसे किसी सब्जी में डालना हो या फिर कोई अन्य रेसिपी बनानी हो, न जाने कितनी जगहों पर आलू का प्रयोग किया जाता है।

                                                                          

विशेषरूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आलू की फसल बहुतायत से ली जाती है। अक्सर धान की फसल के कटने के बाद आलू की बुवाई का काम शुरू हो जाता है और यह काम 20 नवंबर तक चलता है। जनवरी के अन्तिम सप्ताह में नया आलू बाजार में आना शुरू हो जाता है। मेरठ के केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम के वैज्ञानिकों की माने तो वेस्ट यूपी में उगाए जाने वाली आलू की किस्म कुफरी आलू खाने में तो स्वादिष्ट होती ही है इसके साथ आलू की यह किस्म मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्वि करने में सहायक होती है। आलू की प्रजाति कुफरी नीलकंठ में ऑक्सीडेंट और कैरोटिन एंथोसाइनिन नामक तत्व भी उपलब्ध होता है जो कैंसर जैसी बीमारी के विश्द्व कार्य करता है। सरदार वल्लभभाई पटेल  कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मोदीपुरम, मेरठ के प्रोफेसर एवं कृषि विज्ञानी डॉ0 आर. एस. सेंगर का कहना है कि इस संस्थान के द्वारा वर्तमान में आलू के 72 प्रकार के बीज तैयार किए गए हैं। वेस्ट यूपी में 42 प्रकार के आलू के बीजों की बुआई की जाती है, जिनमें कुफरी बहार, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-3, कुफरी सूर्या, कुफरी-86, कुफरी फ्राईसोना, कुफरी सूखयाती और कुफरी मोहन आदि प्रजातियाँ शामिल हैं। कुफरी सूखयाती और कुफरी मोहन प्रजाति का आलू लगभग 80 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाता है, जबकि कुफरी नीलकंठ के तैयार होने में 100 से 120 दिनों का समय लग जाता है।

बुआई के समय सावधानियाँ

                                                                  

कृषि विज्ञानी डॉ0 आर. एस. सेंगर के अनुसार खेत में बुवाई करने से पूर्व आलू के बीज को किसी खुले स्थान पर फैला देना चाहिए तथा बीज को उपयुक्त नमी वाले स्थान पर रखें। लगभग 36 घंटे के बाद इस बीज में अंकुरण शुरू होने के बाद खेत में आलू के अंकुरित बीज की बुवाई कर देनी चाहिए। ऐसा करने से आलू की उत्पादन क्षमता बढ़ती है और आलू में कोई बीमारी भी नही लगती है।

चालू वर्ष में बढ़ा आलू का क्षेत्र

                                                      

इस वर्ष बाजार में आलू की कीमतें अधिक रहने के कारण आलू के बुवाई के क्षेत्र में भी वृद्वि दर्ज की जा रही है। इस सम्बन्ध में उजिला उद्यान अधिकारी अरूण कुमार जी का कहना है कि गत वर्ष जिला मेरठ में लगभग 5,000 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की बुवाई की गई थी, जबकि इस वर्ष अब तक 5500 हेक्टेयर क्षेत्र में आलू की बुवाई की जा चुकी है।

अरूण कुमार का कहना है कि अभी बुवाई की जा रही है तो आलू के क्षेत्र में और वृद्वि हो सकती है, इसके सही क्षेत्र का पता तो 20 नवंबर के बाद ही चल सकेगा। गत वर्ष आलू का भाव 25 से 30 रूपये प्रति किलोग्राम तक रहा था तो अब भी यह भाव 35 से 40 रूपये प्रति किलोग्राम तक चल रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।