आलू की अगेती फसल का उचित समय और इसकी उन्नत किस्में      Publish Date : 15/10/2024

आलू की अगेती फसल का उचित समय और इसकी उन्नत किस्में

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं गरिमा शर्मा

भारत के सबसे बड़े आलू उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले सीजन की तरह इस बार भी आलू की रिकार्ड पैदावार प्राप्त हो सके, इसके लिए प्रदेश के कृषि विभाग ने अभी से अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। आलू की अगेती किस्मों की बुवाई के लिए केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम, मेरठ ने किसानों के लिए एडवाइजरी भी जारी कर दी है।

                                                            

संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि आलू की अगेती किस्में कुफरी सूर्या, चंद्रमुखी, पुखराज, सूर्या, ख्याति, अलंकार और बहार आकिद की बुवाई करके किसान अधिकतम उपज और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

किसानों को आलू गोदामों से बीज निकाल कर 15 सितंबर के बाद से ही अपनी तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए। आलू बीज के अंकुरण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में पिछले रबी सीजन-2022-23 में 6 लाख 25 हजार हेक्टेयर में आलू की फसल बोई गई थी और इसके सापेक्ष उत्पादन अनुमानित लक्ष्य 147 लाख मीट्रिक टन से अधिक 155 लाख टन हुआ था। ऐसे में इस बार आलू का क्षेत्रफल और उसके उत्पादन दोनों को ही बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

आलू एक समतीषोष्ण जलवायु की फसल है। उत्तर प्रदेश में इसकी खेती रबी के मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है। आलू की खेती के लिए ऐसी जमीन उपयुक्त होती है, जिसका पीएच मान 6 से 8 के बीच होता है। बलुई दोमट और दोमट भूमि में आलू की खेती अच्छे से की जा सकती है।

                                                              

आलू की बुवाई से पहले खेत की तैयारी में 3-4 जुताई डिस्क हैरो या कल्टीवेटर से करें। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाने से खेत में मौजूद बड़े ढेले टूट जाते हैं और खेत में उपस्थित नमी भी सुरक्षित बनी रहती है। हालांकि, रोटावेटर से भी खेत की उचित तैयारी की जा सकती है। उत्तर प्रदेश उद्यान विभाग की ओर से किसानों को आलू के उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। आलू की अगेती किस्में चंद्रमुखी 80 से 90 दिन, पुखराज 60 से 75 दिन, सूर्या 60 से 75 और अलंकार 65 से लेकर 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है।

आलू की प्रमुख किस्में

                                                                 

वैसे तो भारत के कुछ भागों में तो पूरे वर्ष ही आलू की खेती की जाती है। ऐसे में आइए आपको बताते हैं कि इस समय आलू की खेती के लिए आलू की कौन-कौन सी किस्में इसकी सफल खेती के लिए उपलब्ध हैं।

केंद्रीय आलू अनुसंधान शिमला की ओर से आलू की विभिन्न किस्मों को विकसित किया गया हैं, जो इस प्रकार हैं-

कुफरी अलंकारः आलू की इस किस्म में फसल महज 70 दिनों में ही तैयार हो जाती है और यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी भी है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल तक की उपज देती है।

कुफरी चंद्रमुखीः आलू की इस किस्म की फसल 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी उपज 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

कुफरी नव-तालजी 2524: आलू की इस किस्म में फसल 75 से 85 दिनों में तैयार हो जाती है। इसमें 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है।

कुफरी बहार 3792 ईः इस किस्म में फसल 90 से 110  दिनों में तैयार हो जाती है, जबकि गर्मियों में 100 से 135 दिनों में इसकी फसल तैयार होती है।

कुफरी शीलमानः आलू की खेती की यह किस्म 100 से 130 दिनों में तैयार होती है, जबकि इस किस्म की उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

कुफरी ज्योतिः इस किस्म में फसल 80 से 150 दिनों में तैयार हो जाती। यह किस्म 150 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।

कुफरी सिंदूरीः इस किस्म से आलू की फसल 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है और 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।

कुफरी बादशाहः आलू की खेती में इस किस्म में फसल 100 से 130 दिन में तैयार हो जाती है और 250-275 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज तक दे देती है।

कुफरी देवाः इस किस्म के आलू की फसल 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है और 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है।

कुफरी लालिमाः इस किस्म में फसल सिर्फ 90 से 100 दिन में ही तैयार हो जाती है। यह अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी भी होती है।

कुफरी लवकरः इस किस्म की 100 से 120 दिनों में फसल तैयार हो जाती है और 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज देती है।

कुफरी स्वर्णः इस किस्म से फसल 110 दिन में तैयार हो जाती है और इसकी उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है।

आलू संकर किस्में

                                                                

कुफरी जवाहर जे एच 222: आलू की इस किस्म से 90 से 110 दिन में फसल तैयार हो जाती है और खेतों में अगेता झुलसा और फोम रोग की यह प्रतिरोधी किस्म है। इसमें 250 से 300 क्विंटल उपज प्राप्त हो जाती है।

ई 4486: 135 दिन में तैयार होने वाली फसल की यह किस्म जो कि 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्रदान करती है। यह किस्म हरियाणा, उ0प्र0, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और मध्य प्रदेश के लिए अधिक उपयोगी सिद्व होती है।

आलू की नई किस्में

इसके अलावा आलू की कुछ नयी किस्में भी हैं। इनमें कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2, कुफरी गिरिराज और कुफरी आनंद आदि शामिल है।

भारत में यूरोप से आया था आलू

                                                                  

केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के अनुसार आलू की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका को माना जाता है लेकिन भारत में आलू पहली बार सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप से आया था। देश में धान, गेहूं और गन्ना के बाद क्षेत्रफल के हिसाब से आलू की फसल का चौथा स्थान है। आलू एक ऐसी फसल है, जिसमें प्रति ईकाई क्षेत्रफल दूसरी फसलों के मुकाबले अधिक उत्पादन होता है। आलू में मुख्य रूप से 80 से 82 प्रतिशत पानी, 14 प्रतिशत स्टार्च, 2 प्रतिशत सुगर, 2 प्रतिशत प्रोटीन और 1 प्रतिशत खनिज लवण पाए जाते हैं। इसमें 0.1 प्रतिशत तक विटामिन भी होता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।