मटर की खेती और इसकी किस्में Publish Date : 14/10/2024
मटर की खेती और इसकी किस्में
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं आकाक्षा
मटर की खेती दोमट और बलुई मिट्टी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। जिन भूमियों में पानी की निकासी अच्छी होती है और वायू का संचार का अच्छा होना भी बहुत जरूरी होता है। वहीं मटर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6-7.5 के बीच होना चाहिए। अगर मिट्टी अम्लीय है, तो उसमें चूना मिलाकर उसके पीएच मान को बढ़ाया भी जा सकता है। बुवाई से पहले खेत को गहरी जुताई करनी चाहिए। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और जड़ों का विकास अच्छे से होता है। अगर मिट्टी में दीमक, तना मक्खी और लीफ माइनर जैसी कीटों का प्रकोप है, तो इनकी रोकथाम के लिए फोरेट 10 जी का छिड़काव करना लाभदायक होता है, इससे फसल को कीटों से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय मोदीपुरम, मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर ने बताया कि मटर की वैरायटी पंत मटर-484, एक ऐसी किस्म है, जिसकी किसान अगेती खेती करके काफी अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
यह तो हम जानते ही हैं कि हमारे देश में कई तरह की फसलों की खेती की जाती है और कुछ फसलों से किसान अच्छा खासा मुनाफा भी कमाते हैं तो मटर भी एक ऐसी सब्जी की फसल है, जो पोषक तत्वों से भी भरपूर होती है। मटर की खेती से कम समय में अधिक पैदावार मिलती है और यह भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाती है।
ऐसे में मटर की किस्म पंत मटर-484, किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। बेहद कम दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म न केवल किसानों के समय की बचत करती है, बल्कि यह मटर में लगने वाले कई रोगों से भी मुक्त होती है। इससे किसानों को फसल नुकसान से बचने में मदद मिलेगी और उनकी आय में पर्याप्त वृद्धि भी होगी।
डॉ0 सेंगर ने बताया कि मटर की पंत मटर-484 मटर की एक ऐसी किस्म है, जिसकी किसान अगेती खेती करके काफी अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। यह मटर की अन्य किस्मों की अपेक्षा पककर बहुत जल्दी तैयार हो जाती है। इसके साथ ही मटर की यह किस्म चूर्ण फफूंद और फली छेदक जैसे आम मटर के रोगों के प्रति प्रतिरोधी भी है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 23 क्विंटल तक पैदावार देती है। मटर की इस किस्म में प्रोटीन अधिक मात्रा में होता है, जो इसे एक पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य बनाता है।
यह किस्म सूखे की स्थिति में भी अच्छी पैदावार देने में सक्षम होती है, जो इसे वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाती है। इसकी उच्च गुणवत्ता और अच्छी पैदावार के कारण इसकी बाजारों में भी अच्छी मांग रहती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।