दलहन की रानी मटर की खेती करने की वैज्ञानिक विधि Publish Date : 23/09/2024
दलहन की रानी मटर की खेती करने की वैज्ञानिक विधि
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
देश के रेगिस्तानी क्षेत्रों में किसान अब मटर की खेती कर रहे हैं, जो न केवल उनकी आय बढ़ा रही है बल्कि रोजगार के अनेक अवसरों का सृजन भी कर रही है। हालांकि देश के कुछ चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में मटर की खेती करने के लिए विशेष तकनीक और सावधानियों की आवश्यकता होती है।
चूँकि अब राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी किसान मटर की खेती कर रहे हैं, इससे उन किसानों की आय बढ़ ही रही है इसके साथ ही रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहे हैं। हालांकि, इस चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में मटर की खेती के लिए कुछ विशेष तकनीकों और सावधानियों की आवश्यकता होती है। अतः इस क्षेत्र के किसानों को सलाह दी जाती है कि वह कृषि वैज्ञानिकों की परामर्श के अनुसार ही मटर की खेती शुरू करें, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें मटर की बेहतर उपज प्राप्त होती है।
मटर की खेती में अगेती किस्मों के लिए प्रति एकड़ 50 से 60 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है, जबकि मध्यम और पछेती किस्मों के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज जनित रोगों से बचाव के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मेन्कोजेब के साथ उपचारित करना बहुत आवश्यक है, जिससे कि बीज पर किसी भी तरह का रोग न लगे सके। बीज का शोधन करने के बाद 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर 10 किलोग्राम बीज में मिलाकर छाया में सुखा लेने के बाद ही बीज की बुवाई करनी चाहिए।
मटर की उपलब्ध किस्में
डॉ0 सेंगर ने बताया कि मटर की अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक कर देनी चाहिए. तो वहीं, मध्यम और पछेती प्रजातियों की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक कर देनी चाहिए। बुवाई के दौरान लाइन से लाइन की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर तक रखनी चाहिए। बाजार में मटर की कई किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें अगेती किस्मों में ‘अगेता-6’, ‘अर्किल’, ‘पंत सब्जी मटर-3’, ‘आज़ाद पी.3’ आदि प्रमुख हैं तो वहीं, मध्यम और पछेती किस्मों में ‘आज़ाद पी.1’, ‘बोनविले’, ‘जवाहर मटर-1’ और ‘आज़ाद पी.2’ आदि शामिल हैं।
मटर की खेती करने का तरीका
किसान खेत तैयार करते समय खेत की अन्तिम जुताई में 200 से 250 क्विंटल अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। अच्छी फसल के लिए 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 15 किलोग्राम पोटाश मिलाना भी जरूरी हे जिससे कि फसलों को पूर्ण पोषण मिलता रहे। मटर की खेती में बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह एक कम पानी वाली फसल है। बुवाई के समय पलेवा करके अच्छी नमी में ही मटर की बुवाई करनी चाहिए।
हालांकि, फसल में फूल आने और फलियों में दाना बऩते समय भी खेत में अच्छी नमी का होना भी बहुत जरूरी होता है। मटर की फलियां फूल आने के तीन हफ्ते बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं और आमतौर पर 7 से 10 दिनों के अंतराल में 3 से 4 बार इनकी तुड़ाई की जाती है। अगेती किस्मों की पैदावार 20 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ और मध्यम और पछेती किस्मों की पैदावार 40 से 60 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।