मधुमेह में लाभकारी सब्जी ककोड़ा      Publish Date : 21/09/2024

                     मधुमेह में लाभकारी ककोड़ा की सब्जी

                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

ककोड़ा सम्पूर्ण भारत में (1500 मीटर) से लेकर कन्याकुमारी तक पाया जाता है। यह आमतौर पर गर्म एवं नम स्थानों पर बाड़ों में मिलता है। ककोड़ा बिहार के पहाड़ी क्षेत्रों राजमहल, हजारी बाग एवं राजगीर तथा महाराष्ट्र के पहाड़ी क्षेत्र, दक्षिण राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीस, असम एवं बंगाल आदि के जंगलों में अपने आप ही उग आता है।  

ककोड़ा की उपयोगिता

                                                                             

ककोड़ के फल की सब्जी बड़ी स्वादिष्ट होती है। इसका फल जुलाई से अक्टूबर तक बाजार उपलब्ध रहता है। इसका बाजार मूल्य 18-20 रुपए प्रति किलोग्राम तक होता है। इसके फल के बीज से तेल निकाला जाता है जिसे रंग व वार्निश उद्योग में उपयोग किया जाता है। ककोड़ा की जड (कंद) मस्सों का खून रोकने तथा पेशाब की विभिन्न प्राकर की बीमारियों में दवा के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। इसके फल को मधुमेह के रोगियों के लिए बहुत उपयोगी पाया गया है और इसके फल करेले की भांति कड़वे भी नहीं होते हैं।

ककोड़ा की पौष्टिकता

                                                

ककोड़ा में मुख्य रूप से पाये जाने वाले तत्व इस प्रकार है- नमी 84.19 प्रतिशत, प्रोटीन 3.11 प्रतिशत, दूसरे तत्व 0.97 प्रतिशत, राख 1.10 प्रतिशत, वसा ०.66 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 7.70 प्रतिशत,क्रूडरेशा 2.97 प्रतिशत, कैलशियम 33 मिग्रा/100 ग्राम, फास्फोरस 42 मि.ग्राम/100 ग्राम, लोहा 4.68 मि.ग्राम/100 ग्राम, केरोटीन (विटामिन ए) 2.70 माइक्रॉन, थाइमिन 45.20 माइक्रॉन, राइबोफ्लोविन 178 मि.ग्राम और नाईवसीन 050 मि.ग्राम/100 ग्राम। इसके फल में एस्कॉरबिक अम्ल अधिक (275.10 मि.ग्राम/100 ग्राम) और आयोडिन 0.70 म.ग्राम/100 ग्राम की मात्रा में पाये जाते हैं।

ककोड़ की खेती कैसे करें

                                                           

(क) पौधे तैयार करने की विधि

ककोड़ के र्पाधों को बीज, कंद या तने की कटिंग द्वारा तैयार किया जा सकता है-

बीज के द्वाराः इसके बीजो में सुषुप्तता होती है। अतः ताजे बीजों को तोड़ने के 5-6 माह तक उगाया नहीं जा सकता। बीज के द्वारा पौधे तैयार करने के लिए सर्वप्रथम बीजों को 24 घंटे तक पानी के अंदर डुबोकर रखा जाता है। इसके बाद तैयार के खेत में बीज को बो दिया जाता है। बीज से प्राप्त पौधे मे लगभग 50-50 प्रतिशत नर व मादा पौधें पाये गए है,जबकि अधिक उत्पादन के लिए नर: मादा पौधे का अनुपात 1: 10 होना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक गड्ढ़े में 2-3 बीज बोये जाते है और फूल आने पर नर व मादा पौधे का अनुपा सही कर लिया जाता है।

जड़-कंद द्वाराः ककोड़ा के पौधों को जड़-कंद के द्वारा भी तैयार किया जा सकता हैं। कन्द माध्यम से तैयार पौधे काफी स्वस्थ होते हैं। सबसे पहले ककोड़ा के कन्द को तैयार खेत के अंदर बो दिया जाता है। रोपाई के 10 से 15 दिन के बाद पौधा जमीन से बाहर आ जाता है।

तने की कटिंग द्वाराः उपरोक्त दोनों विधियों के अलावा ककोड़ा के पौधों को हार्मोन में भिगोकर/डुबोकर रखा जाता हैए जबक कटिंग हमेशा पौधों के ऊपरीभाग की ही लेनी चाहिए। कटिंग को जुलाई-अगस्त के महीने में खेत में रोपना चाहिए। इसके पश्चात् इन कटिंग्स को तैयार खेत में रोप दिया जाता है और 10-15 दिन के बाद रापी गई कटिंग्स से पत्तियाँ निकलनी आरम्भ हो जाती हैं। 

(ख) भूमि की तैयारी तथा पौध-रोपण

सधारण रूप से ककोड़ा सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता हैलेकिन जिन भूमियों में पानी का भराव रहता है सकी खेता उस भूमि नही करनी चाहिए। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट म्ट्टिी उपयुक्त होती है। सबसे पहले भूमि कीे अच्छी प्रकार से तीन या चार बार जुताई करते है ताकि म्ट्टिी अच्छी तरह से भुरभुरी एवं बारीक हो जाए। अब खेत के अंदर 30 से 45 सेमी गोलाई के 30 से.मी. के गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए। प्रत्येक गड्ढ़े मे 02 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद, एन.पी.के. (15:15:15 ग्राम) और 03 ग्राम फ्यूरोडॉन डालनी चाहिए।

पौध रोपण से एक दिन पहले गड्ढ़े की अच्छी तरह से सिंचाई कर देनी चाहिए और जैसे ही वर्षा शुरू हो तो प्रत्येक गड्ढ़े में दो-दो पौधे एक साथ लगाकर इनकी सिंचाई कर देनी चाहिएजिससे कि पौधे मुर्झाए नहीं। यह रखना चाहिए कि अगर वर्षा नहीं होती है तो पौधों में पत्तियों के निकलने तक, प्रति दिन पौधे की सिंचाई करते रहन चाहिए।

इसी तरह बीज और कन्द के द्वारा भी पौधों को तैयार किया जा सकता है। सिचाई की सुविधा से युक्त क्षेत्रों में कन्द के द्वारा पौधों को फरवरी या मार्च के माह में भी लगाया जाता है। इस समय में लगाई गई फसल में अप्रैल के अंत से सितम्बर माह तक फूल आता रहता है और जल्दी ही फलों का उत्पादन आरंभ हो जाता है।

(ग) नाइट्रोजन उर्वरकों का छिड़काव

यूरिया 10 ग्राम, प्रति गड्ढ़े की दर से पौधों की 4 से 5 पत्तियों के निकलने के बाद डालना चाहिए। 20 दिन के अन्तराल पर 15 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढ़े के हिसाब से डालना चाहिए। ककोड़ा के पौधों पर फूल आने के लगभग 15 से 20 दिन के अन्दर ही इसका फल तैयार हो जाता है। यदि ककोड़ के फलों की तुड़ाई समय पर नही की जाए तो इसका फल पीला होकर पक जाता है, जो सब्जी के लिए उपयुक्त नही होता है।